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आखिर लॉकडाउन में भी क्यों बढ़ा प्रदूषण? - श्रीनारद मीडिया

आखिर लॉकडाउन में भी क्यों बढ़ा प्रदूषण?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कोरोना वायरस के चलते देश भर में लगाए गए लॉकडाउन के चलते आर्थिक गतिविधियां बंद होने से वायु प्रदूषण में कमी आई थी और कई शहरों में हवा साफ हो गई थी। लेकिन वैज्ञानिकों के मुताबिक, सेटलाइट से ली गई तस्वीरों से पता चला है कि मध्य, पश्चिम और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में लॉकडाउन के बावजूद वायु प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ा। इस तरह के बढ़ने वाले प्रदूषण को लेकर वैज्ञानिकों ने चिंता जताई है। वैज्ञानिकों ने ऐसे इलाकों की पहचान कर वहां वायु प्रदषण से होने वाली सांस की बीमारियों के खतरे के बारे में लोगों को चेताया है।

वैज्ञानिकों ने रिमोट सेंसिंग तकनीक के जरिए सेटेलाइट से ली गई तस्वीरों में पाया कि पिछले एक दशक में हवा में प्रदषण का स्तर तेजी से बढ़ा है। सेटेलाइट से ली गई तस्वीरों में पाया गया कि लॉकडाउन के दौरान वायुमंडल में ओजोन, NO2 और कार्बन डाइ ऑक्साइड गैसें व अन्य जहरीली गैसों की मात्रा में कमी आई थी। लेकिन पश्चिमी, मध्य और उत्तर भारत के कुछ इलाकों और हिमालय के कुछ दूर दराज के इलाकों में लॉकडाउन के दौरान भी हवा में ओजोन और कुछ अन्य जहरीली गैसों की मात्रा में बढ़ोतरी देखी गई। इन गैसों के हवा में बढ़ने से वहां रहने वाले लोगों को सांस सहित कई अन्य तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), और आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज (एआरआईईएस) के वैज्ञानिकों ने वर्ष 2018, 2019 और 2020 के लिए EUMETSAT और NASA के सेटलाइट से मिलने वाली तस्वीरों के जरिए लॉकडाउन के दौरान ओजोन, CO, और NO2 की हवा में स्थिति के बदलाव पर अध्ययन किया।

इनवायरमेंटल साइंस एंड पॉल्यूशन रिसर्च में ARIES Nainital के सीनियर रिसर्च फैलो प्रज्वल रावत और रिसर्च सुपरवाइजर डॉक्टर मनीष ने अपने अध्ययन में दिखाया है कि लॉकडाउन के दौरान भी मध्य और पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में हवा में मौजूद ozone, CO और NO2 की मात्रा में 15 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई। वहीं लॉकडाउन के दौरान ऊंचाई वाले इलाकों में हवा में कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा में 31 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई।

वहीं हिमायल और कुछ तटीय इलाकों के पास मौजूद शहरों में हवा में प्रदूषण का स्तर लॉकडाउन में भी तेजी से बढ़ा। वैज्ञानिकों के मुताबिक हवा में ओजोन बढ़ने की मुख्य वजह NOx और अन्य प्रदूषक गैसों की मात्रा हवा में बढ़ना रहा। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस अध्ययन से देश में इस तरह के इलाकों के बारे में पता करने में मदद मिलेगी जहां प्रदूषण के चलते लोगों को स्वास्थ्य का ज्यादा खतरा है।

खतरानाक है ओजोन

जमीनी स्तर की ओजोन एक हानिकारक वायु प्रदूषक है, क्योंकि इसका लोगों और पर्यावरण पर खराब असर पड़ता है और इसकी “स्मॉग” या “धुंध” में अहम भूमिका होती है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के अनुसार ट्रोपोस्फेरिक या जमीनी स्तर की ओजोन सीधे हवा में उत्सर्जित नहीं होती है, लेकिन यह नाइट्रोजन (एनओएक्स) और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (वीओसी) के ऑक्साइड के बीच रासायनिक प्रतिक्रियाओं के द्वारा बनती है।

यह तब बनती है जब कार, बिजली संयंत्र, औद्योगिक बॉयलर, रिफाइनरी, रासायनिक संयंत्र और अन्य स्रोतों से उत्सर्जित प्रदूषक रासायनिक रूप से सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रतिक्रिया करते हैं। शहरी वातावरण में खिली धूप खासकर गर्मी के दिनों में ओजोन के खराब स्तर तक पहुंचने की आशंका अधिक रहती है, यह आपके स्वास्थ्य को हानि पहुंचा सकती है, लेकिन यह ठंड के महीनों के दौरान भी सबसे अधिक खराब स्तर तक पहुंच सकती है। ओजोन को हवा द्वारा लंबी दूरी तक पहुंचाया जा सकता है, इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में भी खराब ओजोन स्तर का अनुभव किया जा सकता है।

ओजोन का स्वास्थ्य पर पड़ता है बुरा प्रभाव

हवा में ओजोन होती है, जिसमें हम सांस लेते हैं यह हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती हैं। ओजोन युक्त हवा में सांस लेने से लोगों को सबसे अधिक खतरा होता है, जिसमें अस्थमा की बीमारी वाले लोग, बच्चे, बूढ़े और ऐसे लोग शामिल होते हैं जो घर के बाहर काम करते हैं। इसके अलावा, कुछ अनुवांशिक विशेषताओं वाले लोग और कुछ पोषक तत्वों, जैसे विटामिन सी और ई के कम सेवन करने वाले लोगों को ओजोन के अधिक खतरा होता है।

हवा में ओजोन बढ़ने से कई तरह की समस्याओं को बढ़ा सकती है, जैसे छाती में दर्द, खांसी, गले में जलन और गले में सूजन। यह फेफड़ों के कार्य को धीमा कर सकता है और फेफड़ों के ऊतकों को नुकसान पहुंचा सकता है। ओजोन ब्रोंकाइटिस, वातस्फीति/वायुस्फीति और अस्थमा को खराब कर सकता है, जिससे बीमार को चिकित्सा देखभाल की अधिक आवश्यकता हो जाती है।

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