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कोरोना ने सिखाया अपने संसाधनों को विकसित करना.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारतीय समाज ने अनेक झंझावात झेले। कोरोना वायरस की प्रलयंकारी शक्ति ने आधुनिकता के हमारे दंभ को चकनाचूर किया। कोरोना जनित मृत्यु के तांडव ने सभी संसाधनों को धता बता दिया। इसने भारतीय समाज के सतत प्रवाह और मूल वृत्तियों में भी काफी कुछ बदला। सामाजिक जीवन की सहजता, उन्मुक्तता और सामूहिकता को विखंडित किया तथा सामाजिक जीवन में भय एवं आशंका का भाव बढ़ाया।

इस साल जहां भारतीय समाज में मिलना-जुलना एवं प्रत्यक्ष संवाद कम हुए, वहीं पर्व, त्योहार, उत्सव की सामाजिकता और सामूहिकता अनेक नियंत्रणों के बीच संपन्न होने के लिए बाध्य हुई। सुख-दुख में शामिल होने की जो सामाजिक प्रथा रही, वह कोरोना जनित चेतावनियों के तहत नियंत्रित हुई।

राज्य द्वारा घोषित-अघोषित स्वास्थ केंद्रित आपातकाल ने समाज के अनेक तत्वों के सहज विकास को बाधित किया और हमारे समाज की सहज वृत्तियों को मारा। मेल-जोल और मदद से लेकर सामाजिक आयोजनों पर आघात किया। इसमें राज्य प्रवर्तित नियंत्रणों की भी भूमिका रही। हालांकि यह भी सच है कि विपदा एवं आपदा में मानव अपनी मूल वृत्तियों की रक्षा के रास्ते निकाल लेता है।

ऐसी स्थिति में बहुधा हमारी सहनशक्ति और टकराव की वृत्ति मजबूत हो जाती है। हमारे समाज में सेवा भाव की मजबूती इसका प्रमाण है। कई संस्थाएं और यहां तक कि कुछ दल भी कोरोना संकट प्रभावितों की मदद के लिए आगे आए। तमाम लोग अपनी जान की परवाह किए बिना भोजन से लेकर दवाओं का वितरण करते रहे। स्वास्थ्य कर्मियों को अपना जीवन गंवाना पड़ा। आरएसएस कार्यकर्ता अनेक स्थानों पर सेवा अभियान में लगे दिखे। इस क्रम में कई प्रचारक कोरोना से संक्रमित भी हो गए।

जहां गुजरता साल कई त्रासद स्मृतियों के नाम रहा वहीं सेवा भाव और मानवीय मदद की प्रवृत्ति का पुनर्नवा भी इस दौरान हुआ। इस विपदा से सीख लेकर हमारी सरकारों ने कोरोना रोधी टीकों का सफल अभियान चलाकर भारतीय समाज को नए मुकाबले के लिए तैयार किया। यह भी सुखद है कि इस वर्ष राज्य एवं समाज ने मिलकर इस विपदा से उबरने के अनेक रास्ते तलाशे।

इस वर्ष साक्षात संवाद की जगह आनलाइन संवाद की प्रवृत्ति कहीं तेजी से बढ़ी। भारतीय शिक्षा तो मुख्यत: आनलाइन माध्यम से ही चलती रही। इस परिदृश्य में समाज का एक वंचित तबका बेबस दिखा। स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्शन आदि की बाधाएं उनके लिए मुश्किलें खड़ी करती रहीं। उन्हें इससे उबारने में एक बार फिर राज्य और सेवाभावी संस्थाएं स्मार्टफोन, टैबलेट इत्यादि वितरण करती दिखीं।

खरीदारी भी आनलाइन मोड में जाती रही। वैसे आनलाइन शिक्षा, संवाद और व्यवसाय की अपनी खूबिया हैं तो अपनी खामियां भी। इस बीत रहे वर्ष में हम इन्हीं खूबियों एवं खामियों के साथ आगे बढ़ते रहे।

कोरोना जनित आपदा ने इस वर्ष भारतीय समाज में विस्थापन की स्थिति उत्पन्न की। लाकडाउन की छाया में श्रमिकों को बार-बार विस्थापित होना पड़ा। आजीविका का संकट उत्पन्न हो गया। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा मुफ्त राशन, पेंशन और डायरेक्ट कैश ट्रांसफर रूपी कल्याणकारी योजनाओं ने गरीबों को इस संकट से उबारने में मदद की। इसी साल भारतीय समाज ने लंबे समय तक चले कृषि कानून विरोधी आंदोलन की उथल-पुथल देखी। उसने हमें यही सिखाया कि खुले मन से की जाने वाली संवाद की शक्ति किसी भी संकट में हमारी मदद कर सकती है।

यह सुखद है कि इस वर्ष भारतीय समाज ने सांप्रदायिक टकराव नहीं झेले, लेकिन कुछ स्थानों पर सांप्रदायिक एवं जातीय विद्वेष के भाव उभरते दिखे। जिस इंटरनेट मीडिया को हमने वैकल्पिक जनतांत्रिक संवाद का माध्यम समझा, वह हिंसा और अपमान बोध की भाषा से भरा दिखा। कई बार वह अदालतों के संज्ञान में भी आई।

ऐसे में आने वाले वर्ष की हमारी एक प्रमुख चुनौती यही होगी कि कैसे हम संवाद के इस माध्यम को आदर, सम्मान एवं जनतांत्रिक चाह के संवाद माध्यम के रूप में बदल पाएं। कैसे इसकी अफवाह रचने वाली बढ़ती भूमिका से हमें निजात मिल सके। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय समाज में विद्वेषभाव को घटाना एवं सामाजिक समरसता के भाव को बढ़ाना अभी एक बड़ी चुनौती है।

भारतीय समाज इस वर्ष भी गरीबी से उबरने के लिए संघर्ष करता रहा। इसके लिए सरकारें आजीविका सृजन से लेकर कौशल विकास के अनेक प्रयास कर रही हैं। यह जरूरी है कि हम उद्यमिता विकास के लिए प्रेरणा के स्नेतों की तलाश कर उन्हें लोगों के सामने लाना होगा। सरकारें विज्ञापनों और प्रोत्साहनों से ऐसे आइकान को प्रचारित तो कर ही रही हैं, वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शायद इसी रणनीति के तहत ही अपने मन की बात कार्यक्रम में सफल उद्यमियों को काफी महत्व देते हैं।

लगता है गरीबी नए वर्ष की बड़ी चुनौती बनी रहेगी। इस चुनौती का सामना करने के लिए राज्य, समाज एवं गरीब समूहों को साथ मिलकर काम करना होगा। कोरोना ने हमें यह सिखाया कि हम अपने देशज संसाधनों को विकसित करें। शरीर की इम्युनिटी के लिए भारतीय पारंपरिक जड़ी-बूटियों को उत्पादित करें। पर्यावरण, जल-जमीन एवं जंगल की रक्षा करें।

उनमें जीवनी शक्ति भरने की कोशिश करें। उनके दोहन एवं मात्र उनके उपयोग के भाव से मुक्त हों। अपनी जीवनदायी सामाजिक संपदा को युद्धस्तर पर संवर्धित करें। स्मरण रहे कि पश्चिमी आधुनिकता ने विकास के तमाम दावों और गर्व के बावजूद दुनिया के समक्ष एक संकट खड़ा कर दिया है। कोरोना के इस दुखद अनुभव ने इस सर्वग्रासी संकट के संदर्भ में हमें फिर से सचेत किया है।

इसने हमें बताया है कि आने वाले वर्ष में हमें भारतीय समाज के मूलभाव यथा सेवाभाव, मदद की प्रवृत्ति, समरसता, मानवीय संवेदना को और ज्यादा जीवंत करते रहना होगा। यही हमें विपदाओं से निकलने में साथ देगी। चूंकि आने वाला वर्ष भी कोरोना प्रसार के भय, सावधानियों एवं चेतावनियों में ही बीतेगा, इसलिए हमें भारतीय समाज को मात्र जैविक देह की जगह सामाजिक देह का समाज बनाए रखने की चुनौतियों से जूझना होगा।

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