घनश्याम शुक्ल:एगो निरभिमान कर्मयोगी

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स्मरणांजलि दिवस(2जनवरी 22 ) पर विशेष

आलेख – डा. सुनील कुमार पाठक

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

शेक्सपीयर कहले बाड़ें कि “कुछ लोग जन्मे से महान होला,कुछ लोग महानता अरजेला आ कुछ लोग पर महानता थोप दिहल जाला।” जे लोग जन्मे से महान होला ऊ लोग भाग्यशाली होला आ ओह लोग के महानता में उन्हके माता-पिता,कुल-परम्परा ,जातीय संस्कार आ देवता-पितर के आसिरबाद शामिल रहेला।जेकरा पर महानता लाद दिआला,ओमें कुछे होला लोग जे कोसिस करके एके निबाह लेला लोग ना त जादेतर लोग के एकरा के ढोअल-सम्हारल कठिन हो जाला।ओह लोग के डेग डगमगाए लागेला। एह डगमगाहट से ओह लोग के त जीवन-नैया डूबिये जाले,ऊ लोग दुनियो के डुबावे में कवनों कोर-कसर ना छोड़े।हमरा कबो- कबो बुझाला कि शेक्सपीयर जेकरा के दूसरकी कोटि में रखले बाड़ें उहे लोग उत्तम कोटि के महान लोग होला ,कारण कि प्रतिरोधी परिस्थितियन से पार पाके ,संघर्ष के बल पर दुनिया के समझत-समझावत आपन महद् उद्देश्य आ

 

लक्ष्य हासिल करनेवाला,बेशक महानता से सहजे गलबाहीं कर लेला।फोकट में कवनों चीज मजबूरिये गला में पड़ जाव ,ओह से जादा अनमोल चीज त ऊ होखबे करेला जवना के आदमी अपना बल-बूते,अपने विवेक-विचार, संवेदना,बोध आ सभकर कल्याण के कामना के साथे व्यापक सामाजिक समरसता आ बेहतर जीवन खातिर अरजेला। एह दोसरकी कोटि के महामानव ,’महामानव ‘ कहाये खातिर अपना तरफ से कवनों हड़बड़ी ना देखावे बलुक जमाना खुदे उन्हका के महान कहे लागेला।अइसन आदमी के महानता कबो- कबो उनकरा जीवन-काल के बादो परखाले। घनश्याम शुक्ल जी ना जन्मना महान रहलें ना महानता उन्हका पर थोपाइल रहे, ऊ महानता अपना कर्म,संघर्ष आ प्रगतिशील विचारन के बल पर हासिल कइलें।ई महानता घनश्याम जी में आपन वास अइसन बनवलस जइसे फूल में सुगंधि।

सीवान जिला के धरती देशरत्न डा.राजेंद्र प्रसाद, ब्रजकिशोर बाबू,मौलाना मजहरूल हक,खुदाबख्श खां,महामाया बाबू,दाढ़ी बाबा, आचार्य महेन्द्र शास्त्री आदि के जन्मभूमि आ कर्मभूमि रहल बिया।ओही परम्परा में घनश्याम जी के नाम आदर आ श्रद्धा से लिहल जाई।घनश्याम जी के बिधाता हमनीं के ओह बेरा छीन लिहले बाड़ें जवना बेरा उनकर जरूरत कुछ जादा रहल हटे।देस-दुनिया में जब दिखावा आ दंभ के बाजार गर्म होखे,छल-छद्म पूरा ताम-झाम के साथे झमकत होखे,शिक्षा आ ज्ञान के मरजादा से बढ़ि-चढ़िके बाहुबल के पूजा शुरु हो गइल होखे,जाति-धरम के नाम पर मनई-मन में दरार पड़ गइल होखे,शोसन आ दमन के चक्र में अभियो गरीब-गुरबा के पेराई-गराई जारी होखे आ किसान-श्रमिक लाचारी में अपना भाग्य के कोसत खाली निपोर भासन सुने खातिर मजबूर होखस,जहां के बेटी-पतोह अभियो दहेज ,अशिक्षा,असमानता,घरेलू हिंसा के मार झेलत जीवन-जापन खातिर मजबूर होखे,जवान बेरोजगारी,बेकारी आ नशाखोरी के शिकार होके आपन भविष्य चौपट करत दिखत होखे,बच्चा कुपोषण के शिकार होके स्वस्थ आ खुशहाल भारत के सपना मलिन करत लउकत होखे- ओह कशमकश दौर में घनश्याम गुरुजी अइसन हाड़-मांस के देवता के कमी त बहुते खली,एमें कहां तनिको शक बा।

टाड़ी हाईस्कूल आ मीडिल स्कूल में पढ़ावेवाला मोती माट्साहेब आ घनश्याम गुरूजी के जिनिगी खाली मास्टरिये ले ना सिमटल रहे,लइका-लइकिन के पढ़ावे के अलावे ओकनी के जिनिगी पुरहर ढंग से कइसे विकसित होखो ताकि समाज आ देश के ओकर लाभ मिल सके-इहे दूरदर्शी सपना ई दूनू आदमी में पलत रहे।थोरिके आगे पीछे मोती माट्साहेब आ घनश्याम गुरू जी के एह धरा-धाम से महाप्रयान ना केवल सीवान जिला बलुक पूरा बिहार खातिर एगो बड़हन नुकसान के रूप में सामने आइल। ना अब अइसन माट्साहेब लोग बानीं ना अब ऊ समाज बा।

सीवान जिला में डीपीआरओ गिरी के दौरान घनश्याम शुक्ला जी के नाम हमरा खूब सुने के मिलल।मुलाकात त उहां से कई बेर भइल बाकिर उहां के रघुनाथपुर-सिसवन के इलाका में शिक्षा-प्रसार के जवन बीड़ा उठवले रहनीं ओकर प्रभाव नवकी पीढ़ी पर खूब बढ़िया तरे पड़ल साफ लउकत-बुझात रहे।ओह क्षेत्र के कुछ पुरनिया लोग जे सामाजिक परम्परा आ धार्मिक कर्मकांड आदि के सहजे ठुकरावे खातिर तइयार ना दिखत रहीं,उहों सभे घनश्याम जी के प्रगतिशील समाजवादी विचारधारा के देश आ समाज के सम्यक विकास खातिर महत्वपूर्ण मानत रहनीं।

घनश्याम जी के विरोधो करेवाला खुल के कुछ बोल ना पावत रहे आ उहां के अनादर के बात त सपनो में ना सोंच सकत रहे ,चूँकि ऊ सभे जानत रहे कि सामाजिक बदलाव के एह प्रक्रिया के अब ना त रोकल जरूरी बा ना ई संभवे बा। समय-रथ के पहिया में अंगुरी पेसला पर अंगुरिये पिचराई, रथ ना रूकी-ई जान के समझदार ज्ञानी सभे घनश्याम जी के विचार के साथे अपना के जोड़ लेत रहे आ उहां के कारवां में शामिल हो जात रहे।

घनश्याम माट्साहेब, जेकरा आदर से ओह जवारे ना जिला-कमीश्नरी भर में गुरूजी के नाम से ख्याति मिलल,के जीवन में कवनो तरे के बहुरूपियापन ना रहे।भीतर से कुछ आ बाहर से कुछ आउर -अइसन व्यक्तित्व उहां के ना रहे।बाहर-भीतर में एकरूपता,पारदर्शिता-विरले लोग में आज पावल जा रहल बा,बाकिर गुरूजी के साथ ई बात ना रहे।उहां के ‘सीवान के गांधी’कहल जाला त एकरा पीछे कारण इहो बा कि उहां के जवना बात के अपना मुंहे उचारत रहनीं ओकरा के सबसे पहिले अपने आचरण में उतार के दिखावत रहनीं।बापू कहले रहनीं कि ‘गांधीवाद नाम के कवनों दर्शन नइखे,सत्य के साथे जवन हमार प्रयोग रहल बा,उहे हमार दर्शन मानल जाई।” घनश्याम शुक्लो जी के साथ इहे बात रहे-उहां के व्यक्तिते उहां के जीवन-गीता भा कविता रहे।

घनश्याम शुक्ल जी के व्यक्तित्व अगर जे केहू से मेल खात रहे त ऊ जिला के एगो दोसर महापंडित,जेकरा के सीवान के ‘राहुल बाबा’कहल जाला-आचार्य महेन्द्र शास्त्री से मिलत-जुलत रहे।दूनू जने ब्राह्मण परिवार से रहला के बावजूदो धार्मिक बाह्याडम्बर आ कर्मकांड के निरर्थकता से उबारके समाज के जगावे के अथक प्रयास कइनीं।

दूनू आदमी शिक्षा के महत्व समझावल,कला-संस्कृति के विकास में आपन महत्वपूर्ण योगदान दिहल आ मातृभाषा भोजपुरी के विकास खातिर समर्पित रहल।कन्याशिक्षा के अलख जगावत दहेज- प्रथा आदि के भरपूर विरोध कइल आ धार्मिक रूढ़ियन के मुखालफत कइल।एगो अन्तर दूनू आदमी में साफ झलके-ऊ ई कि शास्त्री जी के विरोध के स्वर में जहां क्रोध आ उग्रता समाहित रहत रहे ओजवे घनश्याम जी आपन वैचारिक प्रतिबद्धता के पूरा दृढ़ता आ विनम्रता से राखे के प्रयास करत रहनीं।उहां के नाराजगी में निराशा ना बलुक सुभग समाज के निरमान के सुगबुगाहट आ अपना सपना के एक-न-एक दिन साकार हो जाये के विश्वास साफ झलकत रहे।खादी के कुरता-पयजामा, एगो कान्ह पर लटकत झोरा आ साइकिल के सवारी-घनश्याम जी के ई छवि -ओह जिला-जवार में त छाइये गइल रहे , ओकर छाप आज पूरा देश पर पड़त दिख रहल बा।गुरूजी के चेला लोग पूरा भारत के कोना-कोना में नोकरी- चाकरी, रोजगार- व्यापार पाके गुरूजी के विचारन के अनुरूप देश -समाज गढ़े के कोशिश में लागल बाड़ें।

घनश्याम माट्साहेब ‘प्रभाप्रकाश’ नाम से जब पंजवार (सीवान)में कालेज खोलनीं त ओहू में नारी के प्रति उहां के विशेष पक्षधरते झलकल ,’मेरीकोम’ के नाम से जब खेलकूद के संस्था खोलनीं भा ‘विस्मिल्ला खां’ के नाम से संगीत विद्यालय स्थापित कइनीं त उहां के धार्मिक सदाशयता खुल के सामने आइल।कवनों तरह के निरर्थक विरोध के आगे उहां के कबो ना झुकनीं आ सार्थक प्रतिवाद के स्वीकारहूं में तनिको देर ना करत रहनीं।नवकी पीढ़ी से मिल रहल वैचारिक समर्थन के ना उहां के कवनों दंभ भा गरूर रहे ना दकियानूसी विचार वाला से फरिया लेबे के कवनों बेचैनी।उहां के जानत रहनीं कि समाज कवना दिशा में आगे बढ़ रहल बा आ एह दिशा में बढ़त समाज के आगे का-का चुनौती झेले के पड़ी,कइसन-कइसन विसंगति से एकरा उबरे के पड़ी आ का-का कालांतर में एकरा स्वीकार कर लेबे के पड़ी

।सीवान जवना बेरा एगो सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल के दौर से गुजरत रहे,ओहू बेरा घनश्याम जी का ई भरोसा रहे कि इलाका एह से जल्दिये मुक्ति पा ली।उहां के भरोसा सांच में बदलल।उहां के कहत रहीं कि हर तरे के सामाजिक समस्या आ संकट से उबरे के एके गो महौषधि बिया-शिक्षा।शिक्षा खाली भौतिक समृद्धिये ना ले आवेले बलुक नैतिक आ बाहर-भीतर हर दिसाईं आदमी के एगो अइसन प्राणी बनाई देले जवना के बल पर समाज आ देश के मजबूती मिलेला,एकर ताना-बाना बरिआर होला।अइसन महामानव के शवयात्रा में सैकड़न के संख्या में जब छात्रा लोग शामिल भइल आ बिना कवनो कर्मकांड के उहां के दाह -संस्कार भइल-त ई साफ बुझाइल कि एह चिता में शुक्ल जी के भौतिक काया भले भस्म हो रहल बिया बाकिर उहां के यशःकाया आउरो अजर-अमर बन के बहरी निकल रहल बिया। हं , एह चिता में अगर कुछ आउरो भस्म भइल दिखल त ऊ सामाजिक जड़ता आ विकृति रहली सं,जवना के भस्म कर देबे के कोशिश में शुक्ल जी आजीवन लागल रहनीं।शुक्ल जी के आपन श्रद्धांजलि अर्पित करत हम उहें खानीं वैचारिकता में पगल आ बिहार शिक्षा सेवा के अधिकारी रहल सारन प्रमंडल वासी भोजपुरी के एगो विद्वान आ प्रखर विचारवान कवि स्व.सिपाही सिंह श्रीमंत के पंक्तिया के सहारा लेब-

“गुमसुम-गुमसुम तनिको ना भावे हमें/आंधी हईं आंधी अंधाधुंध हम मचाइले/नाटक लेके आइये कि नया निरमान होखे/नया भीत उठेला पुरान भीतर ढाहिले।”
-सामाजिक जड़ता के पुरान भीत त शुक्ल जी ढाई के चल गइनीं,अब उहां के सपना के संस्कृति-सदन बनावे के जिम्मेवारी नयकी पीढ़ी के उठावे के समय आ गइल बा।हमरा भरोसा बा नयकी पीढ़ी एह खातिर तइयार बिया।
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(पत्राचारीय-जी-3,आफिसर्स फ्लैट, न्यू पुनाईचक, पटना-23,मोबाइल-7261890519)

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