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प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना: महत्त्व और चुनौतियाँ.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वर्ष 2017 के आरंभ में भारत सरकार द्वारा प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY) शुरू की गई थी जिसके तहत गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को परिवार के पहले जीवित बच्चे के लिये 5,000 रुपए का नकद प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है।

इस योजना का उद्देश्य स्वस्थ में सुधार लाना और गर्भवती महिलाओं की मज़दूरी में क्षति (विशेषकर असंगठित क्षेत्रों में) की आंशिक क्षतिपूर्ति करना है।

हालाँकि योजना का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है, जो इस दिशा में तत्काल सुधार की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है, विशेष रूप से कोरोना वायरस महामारी के वर्तमान परिदृश्य में जहाँ 260 लाख महिलाओं को (जो भारत में प्रतिवर्ष औसतन एक बच्चे को जन्म देती हैं) आर्थिक आघात सहना पड़ा है।

भारत में मातृ स्वास्थ्य देखभाल और PMMVY

  • मातृ स्वास्थ्य देखभाल: भारत विश्व में कुल प्रसव के पाँचवें भाग की हिस्सेदारी रखता है, जहाँ प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों पर 113 की मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate) विद्यमान है।
    • वर्ष 2020 में अप्रैल और जून के बीच राष्ट्रीय लॉकडाउन के दौरान वर्ष 2019 की इसी अवधि की तुलना में निम्नलिखित परिदृश्य उत्पन्न हुए:
      • चार या अधिक प्रसव-पूर्व जाँच सेवा प्राप्त करने वाली गर्भवती महिलाओं की संख्या में 27% की गिरावट आई।
      • संस्थागत प्रसव (Institutional Deliveries) में 28% की गिरावट।
      • प्रसव-पूर्व सेवाओं में 22% की गिरावट।
    • मातृ स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा प्रदान करने हेतु भारत सरकार द्वारा की गई पहलों में शामिल हैं:
      • लक्ष्य कार्यक्रम (LaQshya program)
      • सुरक्षित मातृत्व आश्वासन (सुमन-SUMAN) पहल
      • जननी सुरक्षा योजना
      • जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK)
      • पोषण अभियान
      • मातृ एवं शिशु सुरक्षा कार्ड
      • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY)
  • PMMVY के VISHAY विषय में: यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसे महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है।
    • लाभार्थियों में वे सभी गर्भवती महिलाएँ और स्तनपान कराने वाली माताएँ (PW&LM) शामिल हैं, जो केंद्र/राज्य सरकारों या सार्वजनिक उपक्रमों के साथ नियमित रोज़गार में संलग्न नहीं हैं या समय विशेष के लिये प्रवर्तित किसी कानून के तहत सदृश लाभ प्राप्त नहीं कर रही हैं।
    • अपनी शुरुआत से लेकर अब तक PMMVY ने राष्ट्रीय स्तर पर 2.01 करोड़ महिलाओं को कवर किया है और कुल 8,722 करोड़ रुपए का वितरण किया है।
  • संबंधित राज्य-विशिष्ट योजनाएँ: ओडिशा, तेलंगाना और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने क्रमशः ममता (2011), केसीआर किट (2017) और डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी मातृत्व लाभ योजना (MRMBS) के रूप में अपेक्षाकृत अधिक कवरेज और उच्च मातृत्व लाभ के साथ राज्य-विशिष्ट मातृत्व लाभ योजनाएँ कार्यान्वित की हैं।
    • ओडिशा की ममता (MAMATA) योजना दो जीवित बच्चों तक के लिये मातृत्व लाभ के रूप में 5,000 रुपए का सशर्त नकद हस्तांतरण प्रदान करती है।
    • वर्ष 2020-21 के लिये PMMVY और ममता योजना के बीच के एक तुलनात्मक विश्लेषण से पता चलता है कि PMMVY ने कवर किये गए लाभार्थियों की संख्या में 52% की गिरावट के साथ खराब प्रदर्शन किया है, जबकि ममता योजना के अंतर्गत सभी किश्त प्राप्त करने वाली महिलाओं की संख्या में 57% वृद्धि हुई है।

PMMVY से संबद्ध समस्याएँ

  • अपूर्ण कवरेज़: जबकि भारत में गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं (PW&LM) की अनुमानित पात्र जनसंख्या 128.7 लाख थी (वर्ष 2017-18), सरकार द्वारा इस योजना के तहत केवल 51.70 लाख लाभार्थियों का ही लक्ष्य निर्धारित किया गया जो कि पात्र आबादी का केवल 40% है।
    • यह वर्ष 2017 से अब तक कम-से-कम 60% गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को योजना से बाहर करता है, क्योंकि निर्धारित लक्ष्य तब से अपरिवर्तित ही बना रहा है।
  • नामांकन और संवितरण में गिरावट: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों से पता चलता है कि इस योजना के तहत नामांकन और संवितरण में पिछले दो वर्षों में गिरावट आई है।
    • वर्ष 2020-21 में 50% से अधिक पंजीकृत लाभार्थियों को सभी तीन किश्तें प्राप्त नहीं हुई और योजना के तहत नामांकन में 9% की गिरावट आई।
  • बजटीय आवंटन में गिरावट: सरकार द्वारा मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पर निरंतर बल देने के बावजूद वर्ष 2021-22 के लिये महिलाओं और बाल विकास हेतु समग्र बजट में 20% की कटौती की गई।
    • इसके अतिरिक्त, PMMVY को सामर्थ्य (SAMARTHYA) योजना के साथ संबद्ध किये जाने से PMMVY के लिये बजट आवंटन में गिरावट आई है।
      • उल्लेखनीय है कि सामर्थ्य योजना का कुल बजट 2,522 करोड़ रुपए है, जबकि पिछले वित्तीय वर्षों में अकेले PMMVY के पास ही लगभग इतना बजट था।
  • अपर्याप्त मातृत्व लाभ राशि: अधिकांश महिलाएँ गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद की अवधि में काम करना जारी रखती हैं, क्योंकि वे मज़दूरी खोने का जोखिम नहीं उठा सकती हैं। इसके अलावा, गर्भावस्था के दौरान वे फुटकर व्यय (Out-of-Pocket Expenses) का वहन भी करती हैं।
    • एक वर्ष में प्रदान की जाती 5,000 रुपए की धनराशि उनके महज एक माह की मज़दूरी क्षति के बराबर है (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम के अनुरूप 202 रुपए प्रतिदिन मज़दूरी दर के आधार पर)।
  • कार्यान्वयन अंतराल: PMMVY में कार्यान्वयन अंतराल (Implementation Gaps) कवरेज की कमी की ओर ले जाते हैं।
    • ये अंतराल लक्षित लाभार्थियों के बीच जागरूकता की कमी और प्रक्रिया स्तर की चुनौतियों से उत्पन्न हुए हैं।

आगे की राह

  • मातृत्व लाभ का विस्तार: सरकार को PMMVY योजना के तहत प्रदत्त मातृत्व लाभ को दूसरे जीवित जन्म तक विस्तारित करने पर विचार करना चाहिये।
    • विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र की महिलाओं के लिये मातृत्व लाभ कवर के अंतर्गत दूसरे जीवित जन्म को शामिल करना अनिवार्य है जो प्रत्येक प्रसव के दौरान आर्थिक आघात और पोषण हानि के प्रति अधिक सुभेद्य होती हैं।
  • मातृत्व लाभ राशि में वृद्धि करना: चूँकि PMMVY का प्राथमिक उद्देश्य मज़दूरी की आंशिक क्षतिपूर्ति करना है, अतः योजना के तहत दी जाने वाली मातृत्व लाभ राशि की पर्याप्तता पर पुनर्विचार करना उपयुक्त होगा।
    • मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 (जो महिलाओं को 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश देना अनिवार्य बनाता है) की भावनाओं के अनुरूप और मनरेगा के तहत निर्धारित न्यूनतम मज़दूरी के आधार पर PW&LM  के लिये 15,000 की राशि (12 सप्ताह की मज़दूरी क्षतिपूर्ति के बराबर) देय होनी चाहिये।
  • राज्यों से सीखना: ओडिशा की ममता (MAMATA) जैसी योजना मातृत्व लाभ कार्यक्रम के समावेशी और कुशल कार्यान्वयन की मिसाल प्रस्तुत करती है जिससे केंद्र सरकार को भी प्रेरणा लेनी चाहिये और ममता योजना की तर्ज पर PMMVY में आवश्यक सुधार लाना चाहिये।
  • प्रक्रियाओं को सरल बनाना: वर्तमान पंजीकरण फॉर्म के लिये मातृ एवं बाल सुरक्षा कार्ड (MPC Card), पति के आधार कार्ड, बैंक पासबुक और तीन किस्तों में से प्रत्येक के लिये पंजीकरण फॉर्म भरने की आवश्यकता होती है, जिससे देरी, अस्वीकृति या विलंबन की समस्या उभरती है।
    • प्रक्रिया के सरलीकरण के परिणामस्वरूप लाभार्थियों के पंजीकरण में वृद्धि हो सकती है।

निष्कर्ष

  • मातृ स्वास्थ्य में सुधार के सतत् विकास लक्ष्य के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की पूर्ति हेतु महत्त्वाकांक्षी प्रधानमंत्री समग्र पोषण योजना (POSHAN) अभियान और राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना केंद्र द्वारा की गई आशाजनक पहल है।
  • लेकिन लक्ष्य तभी प्राप्त किये जा सकते हैं जब हम योजना के डिज़ाइन और कार्यान्वयन पर पुनर्विचार करें और ओडिशा जैसे राज्यों से सबक लें जो व्यावहारिक रूप से मातृ स्वास्थ्य और पोषण को सफलतापूर्वक प्राथमिकता दे रहे हैं।

 

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