बदलते मौसम में आलू को झुलसा से बचाने के लिए बैज्ञानिको ने किया सतर्क
श्रीनारद मीडिया‚ एम सावर्ण‚ भगवानपुर हाट , सीवान (बिहार)
कृषि विज्ञान केन्द्र ने किसानों को आलू को झुलसा रोग से बचाने के लिए किया सतर्क । वरीय बैज्ञानिक सह अध्यक्ष डॉ अनुराधा रंजन ने कहा है कि आकाश में बादल छाए रहने कुहासे की स्थिति एवं रात में तापमान लगातार गिरने से आलू की फसल में अगेती एवं पीछेती झुलसा का प्रकोप देखा जा रहा है। ऐसी स्थिति में अगेती झुलसा का प्रकोप प्रायः फसल के नेत्र जन, फास्फोरस एवं पोटाश की मात्रा के असंतुलित मात्रा में प्रयोग से होता है । इस रोग का लक्षण सबसे पहले निचली पत्तियों पर दिखाई देता है ।बाद में ऊपर की पत्तियों पर दिखाई देने लगता है । ऊपर की पत्तियों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के गोलाकार धब्बे पड़ जाते हैं एवं पत्तियां झुलस कर सूख जाते हैं ।
जब वातावरण में तापमान 10 से 25 डिग्री सेल्सियस हो, आद्रता 80% से अधिक हो, बादल छाई रहे तथा रुक रुक कर बूंदाबांदी पड़ रही हो तो रोग का फैलाव तीव्रता से होता है । इसलिए इस रोग का समय से उचित प्रबंधन अधिक उपज लिया जा सकता है। इसके बचाव के लिए मैनकोज़ेब 75% घुलनशील 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर अथवा कॉपर ऑक्सिक्लोराइड 50% घुलनशील चूर्ण का ढाई किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोलकर छिड़काव कर अगेती झुलसा से बचा सकते हैं । इस प्रकार आलू की फसल को आगेती झुलसा से बचाया जा सकता हैं।
पीछेती झुलसा रोग के लक्षण सबसे पहले पत्तियों के किनारे व सिरे पर तथा तने पर हल्के भूरे रंग के या बैगनी रंग दिखाई पड़े तो समझना चाहिए कि पीछेती झुलसा का प्रकोप है फसल को बचाने के लिए किसान 10 से 15 दिन के अंतराल पर मैनकोज़ेब 75% घुलनशील चूर्ण 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोलकर छिड़काव करें ।
संक्रमित फसल में मैनकोज़ेब एवं मीटालेकजील अथवा कार्बेंडाजिम एवं मैनकोज़ेब का संयुक्त उत्पाद का 2 ग्राम प्रति लीटर या 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोलकर छिड़काव करें ।
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