कई देशों के न्यूक्लियर साइंटिस्ट की किलिंग मशीन है मोसाद,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बात 1986 की है। दुनिया के कई टॉप अखबारों ने लिखा कि इजराइल के पास दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु जखीरा है और वो अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम को तेजी से आगे बढ़ा रहा है। इस खबर के सामने आने के बाद दुनिया भर में तहलका मच गया। इजराइल हैरान था कि इतनी टॉप सीक्रेट जानकारी लीक कैसे हुई?
यहां पर एंट्री हुई इजराइल की इंटेलिजेंस एजेंसी मोसाद की। मोसाद के एजेंटों ने फौरन पता लगा लिया कि ये जानकारी इजराइल के ही परमाणु वैज्ञानिक मोर्दचाई वानुनु ने लीक की है। इसके बाद मोर्दचाई वानुनु के साथ मोसाद ने क्या किया ये हम आगे जानेंगे। इससे पहले जानते हैं कि आज 35 साल बाद हम ये किस्सा क्यों बता रहे हैं?
दरअसल, 2 जनवरी 2022 को स्विस अखबार न्यू जुर्चर जितुंग ने इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद को लेकर एक बड़ा दावा किया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि मोसाद ने 1981 में पाकिस्तान के परमाणु हथियार बनाने के इरादे पर पानी फेरने के लिए एक नहीं, बल्कि तीन हमले किए थे।
इजराइल नहीं चाहता था कि पाकिस्तान परमाणु हथियार हासिल करे। उसने अपनी खुफिया एजेंसी मोसाद को काम पर लगा दिया। रिपोर्ट के मुताबिक मोसाद ने जर्मन और स्विस कंपनियों के परमाणु प्लांट पर हमले किए थे, जहां से पाकिस्तान को मदद मिल रही थी।
मोसाद पर न्यूक्लियर प्लांट या साइंटिस्ट पर हमले करवाने का ये कोई पहला आरोप नहीं है। एक दौर में मोसाद को न्यूक्लियर साइंटिस्ट की किलिंग मशीन कहा जाता था। मोसाद ने अपने खुफिया ऑपरेशनों में ईरान, ईराक, सीरिया और फिलिस्तीन के कई न्यूक्लियर साइंटिस्ट्स को मौत के घाट उतार दिया और न्यूक्लियर प्लांट पर हमले किए। भास्कर इंडेप्थ में आज हम मोसाद के ऐसे ही कुछ कारनामों को बता रहे हैं…
अब एक बार फिर से मोर्दचाई वानुनु के उसी किस्से पर चलते हैं, जहां से इस आर्टिकल की शुरुआत हुई है। इजराइल के टॉप सीक्रेट जानकारी को लीक करने के बाद मोर्दचाई लंदन पहुंच गए। लंदन के कड़े नियम-कानून की वजह से मोसाद के लिए मोर्दचाई वानुनु को पकड़ना आसान नहीं था।
मोसाद ने हनी ट्रैप के जरिए न्यूक्लियर साइंटिस्ट को पकड़ने का फैसला किया। इस काम को ‘सिंडी’ नाम की एक अमेरिकी ब्यूटिशियन ने अंजाम दिया। वानुनु सिंडी के साथ डेट पर रोम पहुंचे। यहां से ही मोसाद ने उन्हें 30 सितंबर 1988 को किडनैप कर लिया। बाद में वानुनु को इजराइल ले जाया गया, जहां उन्हें 18 साल की कैद की सजा हुई। 2004 में कई बंदिशों के साथ वे जेल से बाहर आए।
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