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साइबर सुरक्षा के लिए रखें इन बातों का विशेष ध्यान.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आज का भारत अधिक डिजिटल और कनेक्टेड हो गया है। देश में इंटरनेट यूजर्स की संख्या भी 80 करोड़ के पार पहुंच गई है। इस साल 5जी की शुरुआत के साथ डिजिटल भारत को और ज्यादा रफ्तार मिलने की उम्मीद है, लेकिन इसके साथ अभी भी सबसे बड़ी समस्या साइबर हमलों को लेकर है, बढ़ते यूजर बेस के साथ जिसके और बढ़ने की आशंका है। इस साल क्रिप्टो से संबंधित घोटाले, रैंसमवेयर और डीपफेक से जुड़े अपराध भी बढ़ने का अनुमान है। भोले-भाले आनलाइन यूजर्स को डिजिटल मंच पर और ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।

नार्टन लैब्स ने 2022 के लिए कहा है कि इसमें आनलाइन सुरक्षा पर और अधिक कार्य करने की जरूरत होगी, क्योंकि अब साइबर अपराधियों ने भी नये-नये तरीके खोज लिए हैं। हाल के साइबर हमलों की बात करें, तो आंकड़े कम चौंकाने वाले नहीं हैं। 2021 की पहली छमाही के दौरान लगभग 40.9 अरब ईमेल खतरों, मलिशस फाइलों और यूआरएल को ब्लाक किया गया। यह बात ग्लोबल साइबर सिक्योरिटी फर्म ट्रेंड माइक्रो की रिपोर्ट में सामने आई है। वैश्विक स्तर पर देखें, तो रैंसमवेयर सबसे बड़ा खतरा है। पिछले साल भारत में रैंसमवेयर के 12.98 प्रतिशत मामले रहे, जो एशिया में चीन के बाद दूसरा सबसे ज्यादा है।

क्रिप्टो घोटाले: क्रिप्टोकरेंसी में ज्यादा मुनाफा लोगों को आकर्षित करता है, लेकिन इसमें ठगी भी तेजी से बढ़ रही है। देश में क्रिप्टो के करीब 10.7 करोड़ से अधिक यूजर्स हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारत में इसमें निवेश करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है। साइबर क्रिमिनल्स लोगों के एकाउंट से क्रिप्टोकरेंसी उड़ाने के लिए नया स्कैम चला रहे हैं।

साइबर सिक्योरिटी फर्म चेक प्वाइंट रिसर्च ने लोगों को इस बारे में आगाह किया है। लोगों के क्रिप्टो वालेट में सेंध लगाकर उनकी करेंसी उड़ाने वाला नया बोटनेट वैरियंट ट्विजट है। रिपोर्ट के मुताबिक, क्रिप्टोकरेंसी की ठगी के इस तरीके का इस्तेमाल सबसे ज्यादा भारत, इथियोपिया और नाइजीरिया में हो रहा है।

नार्टन लैब्स के अनुसार, क्रिप्टोकरेंसी की खरीद और बिक्री ने लोकप्रियता हासिल की है। हालांकि अभी भी लोग क्रिप्टोकरेंसी की बहुत-सी बारीकियों से परिचित नहीं हैं। ऐसी स्थिति में साइबर अपराधी आसानी से लोगों को शिकार बना सकते हैं। साइबर सिक्योरिटी फर्म नार्टन लैब्स ने क्रिप्टोकरेंसी से संबंधित घोटालों में बड़ी वृद्धि की आशंका जाहिर की है। स्कैमर लोगों को टारगेट करने के लिए नये-नये तरीके भी अपना सकते हैं। साइबर सुरक्षा फर्म पालो आल्टो नेटवक्र्स के मुताबिक, क्रिप्टोकरेंसी खासकर बिटकाइन से रैंसमवेयर का खतरा और बढ़ सकता है।

फर्म का मानना है कि इसके डीसेंट्रलाइज्ड कैरेक्टर की वजह से नियामकों के लिए हैकर्स को ट्रैक करना मुश्किल होगा। बिटकाइन डीसेंट्रलाइज्ड करेंसी (विकेंद्रीकृत मुद्रा) है, जिसका अर्थ है कि यह किसी भी सरकार या संगठन द्वारा विनियमित नहीं है। हैकर्स रैंसमवेयर भुगतान के लिए क्रिप्टोकरेंसी की डिमांड कर सकते हैं, क्योंकि फिरौती के लिए भुगतान किए गए बिटकाइन का पता लगाना आसान नहीं है। बैंक एकाउंट के विपरीत क्रिप्टो वालेट हासिल करने के लिए व्यक्तिगत रूप से पहचान योग्य जानकारी की आवश्यकता नहीं होती है।

डीपफेक से बचना होगा : इंटरनेट की दुनिया में डीपफेक एक बड़ा खतरा बनकर उभरा है। डीपफेक वीडियो और फोटो को खास तरह के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से तैयार किया जाता है। इन दिनों डीपफेक की मदद से तैयार वीडियो वायरल होते रहते हैं। इसके लिए रिफेस एप या इस तरह के कई और एप्स काफी लोकप्रिय हैं। इन एप्स में आप अपनी या किसी अन्य की फोटो या वीडियो डालते हैं, तो ये एप्स फेशियल फीचर्स को एनालाइज करके सेलिब्रिटी वीडियो के फेस के साथ फेस स्वैप कर देता है। यह भी डीपफेक का ही एक उदाहरण है।

डीपफेक में आवाज के साथ चेहरे को बारीक तरीके से बदल दिया जाता है, जिससे आम यूजर्स के लिए पहचानना मुश्किल हो जाता है कि वीडियो नकली है या असली। इसे बेहद खतरनाक भी माना जा रहा है। इसका गलत इस्तेमाल इसे फेक न्यूज से हजारों गुना ज्यादा खतरनाक बना देता है। बराक ओबामा से लेकर टाम क्रूज तक का वायरल वीडियो भी डीपफेक के इस्तेमाल से बनाया गया था। यह दुष्प्रचार और अफवाहों को तेजी से फैलाने का नया विकल्प बनकर उभरा है।

डीपफेक को पहचान पाना किसी आम इंसान के लिए बेहद मुश्किल है। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का प्रयोग कर किसी मीडिया फाइल, जैसे- फोटो, आडियो व वीडियो की नकली कापी तैयार की जाती है, जो वास्तविक फाइल की तरह ही दिखती है। इसका इस्तेमाल लोगों को बदनाम करने के लिए किया जा सकता है।

नार्टन का अनुमान है कि साइबर अपराधी लोगों को ठगने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और एडवांस मशीन लर्निंग का उपयोग करना जारी रखेंगे, जबकि डीपफेक वीडियो लोगों के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है। नार्टन का मानना है कि जैसे-जैसे तकनीक बेहतर और उपयोग में आसान होती जाएगी, यह अपराधियों, स्कैमर आदि के लिए उपयोगी टूल बन जाएगा।

इलेक्ट्रानिक पहचान की चोरी : कोविड-19 ने लोगों को घर से काम करने के साथ डिजिटल दुनिया पर भरोसा करने के लिए मजबूर किया है। ऐसी स्थिति में आनलाइन पहचान की सुरक्षा भी जरूरी है। महामारी अभी भी जारी है, ऐसे में सुरक्षित और मजूबत क्रेडेंशियल सेट की अधिक जरूरत है। वैसे, डिजिटल दुनिया में पहचान चोरी कोई नई बात नहीं है, लेकिन यह आपको परेशानी में डाल सकती है।

स्कैमर्स आपकी सभी व्यक्तिगत जानकारियों और तस्वीरों का उपयोग नकली ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और लिंक्डइन एकाउंट बनाने के कर सकते हैं, जिसका इस्तेमाल वे ठगी के काम करने के लिए कर सकते हैं। पालो आल्टो नेटवक्र्स ने कहा है कि बुजुर्ग समूहों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। धोखाधड़ी के लिए वे अधिक संवेदनशील हो सकते हैं।

साइबर सुरक्षा के लिए रखें इन बातों का ध्यान : किसी अनजान नाम से भेजी गई ईमेल और वेबसाइट को खोलने से पहले उस पर लिखे गए टेक्स्ट की स्पेलिंग चेक करें। आमतौर पर फर्जी ईमेल और साइट पर शब्दों की स्पेलिंग गलत लिखी होती है। रियल साइट और ईमेल में इस तरह की गलतियां नहीं होती हैं। इससे फिशिंग हमले से बच सकते हैं।

  • अगर आनलाइन प्लेटफार्म, इंटरनेट मीडिया एप, डेटिंग एप पर कोई आपको अप्रोच करता है, तो सीधे दोस्त बनाने से बचें। प्रोफाइल इमेज की फोटो को गूगल रिवर्स इमेज की मदद से सर्च करें। इससे स्कैमर का पता लगा सकते हैं।
  • साइबर अपराधी एनीडेस्क, टीमव्यूअर जैसे एप का लिंक भेजकर डाउनलोड करने का झांसा देकर भी ठगी कर रहे हैं। इस तरह के किसी भी लिंक पर क्लिक करने से बचें।
  • साइबर अपराधी खासतौर पर बुजुर्गों को निशाना बना रहे हैं। अनजान लोगों के साथ आधार कार्ड, ओटीपी जैसी जानकारियां बिल्कुल भी साझा न करें। गूगल सर्च के जरिए कस्टमर केयर नंबर सर्च करते समय सावधानी बरतें। कस्टमर केयर के बजाय वह स्कैमर का नंबर हो सकता है।
  • अगर आपने क्रिप्टोकरेंसी में निवेश कर रखा है, तो अपने वालेट को सिक्योर रखने के लिए टू फैक्टर आथेंटिकेशन को एक्टिव रखें।
  • डिवाइस को सिक्योरिटी साμटवेयर से हमेशा अपडेट रखें। यदि किसी भी संदिग्ध गतिविधि पर संदेह है, तो लागइन क्रेडेंशियल बदल दें। आप चाहें, तो राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल (cybercrime.gov.in) पर भी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
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