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नागरिकता बोध ही देश के चरित्र का एकमात्र मानदंड है. - श्रीनारद मीडिया

नागरिकता बोध ही देश के चरित्र का एकमात्र मानदंड है.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत में संवत से गणना की जाती है। पंचांग से मुहूर्त निकाले जाते हैं। भृगु संहिता में अनेक लोगों के पूर्व जन्म का विवरण भी प्रस्तुत किया गया है। अधिकांश देशों में क्रिश्चियन कैलेंडर का उपयोग किया जाता है। यह आश्चर्य की बात है कि वैज्ञानिक सोच और तर्क सम्मत विचारधारा को मानने वाले जर्मनी में डॉक्टर वीज ने पुनर्जन्म पर बहुत शोध किया है।

अशोक कुमार और मधुबाला अभिनीत फिल्म ‘महल’ को पुनर्जन्म फिल्म नहीं माना जा सकता क्योंकि उसमें एक पात्र वसीयत हड़पने के लिए पुनर्जन्म की नौटंकी रचता है। मधुबाला अभिनीत पात्र तो महल के मालिक की बेटी है जो उस पुराने महल के गुप्त रास्तों और सुरंगों के बारे में जानती है इसलिए वह अशोक कुमार को दिखती है और सुरंग में कहीं छुप जाती है।

बिमल रॉय की दिलीप कुमार, वैजयंती माला, जयंत, प्राण और जॉनी वॉकर अभिनीत ‘मधुमति’ पुनर्जन्म अवधारणा पर बनी पहली फिल्म है। दिलीप कुमार अभिनीत ‘देवदास’ बॉक्स ऑफिस पर साधारण कमाई ही कर सकी और साधना अभिनीत ‘परख’ असफल रही। इसके बाद बिमल रॉय कलकत्ता जाकर बांग्ला भाषा में फिल्म बनाने का विचार कर रहे थे।

उन दिनों लेखक रित्विक घटक एक अन्य निर्माता के निमंत्रण देने पर मुंबई आए हुए थे। बिमल रॉय से उन्होंने बातचीत की और उन्हीं के दफ्तर में ‘मधुमति’ लिखी गई। रित्विक घटक को पूरा विश्वास था कि ‘मधुमति’ सफल रहेगी और बिमल रॉय को कलकत्ता नहीं लौटना पड़ेगा। सुभाष घई ने हॉलीवुड फिल्म ‘द रीइन्कारनेशन ऑफ पीटर प्राउड’ से प्रेरित पुनर्जन्म अवधारणा पर ऋषि कपूर और टीना मुनीम तथा सिमी ग्रेवाल अभिनीत फिल्म ‘कर्ज़’ का निर्माण किया।

सुनील दत्त और नूतन अभिनीत फिल्म ‘मिलन’ भी पुनर्जन्म अवधारणा से ही प्रेरित फिल्म थी। चेतन आनंद की राजेश खन्ना, हेमा मालिनी, अरुणा ईरानी और प्रिया राजवंश अभिनीत फिल्म ‘कुदरत’ भी अधिक धन नहीं कमा पाई। छोटे बड़े शहरों और कस्बों में भी वर्ष के अंत का उत्सव मनाया जाता है। महामारी और उसके नए वेरिएंट के चलते यह नागरिकों का कर्तव्य है कि इस वर्ष का अंत अपने ही घरों में अत्यंत सादगी से मनाएं। नागरिकता बोध ही देश के चरित्र का एकमात्र मानदंड है। सादगी में ही परम सुख और शांति है।

ओम शांति ओम का अर्थ होता है कि तमाम आवरणों को ठुकराने के बाद जीवन के अनुभव का मंथन ही मनुष्य को स्वयं को जान लेने में सहायता करता है। जानकारियों के संपर्क घोल को ज्ञान नहीं कहते। वर्तमान में तो ज्ञान परचून की दुकान पर पुड़िया में बांधकर बेचा जा रहा है। कुछ लोग अपने घर की दीवार पर लगे कैलेंडर में एक दिन पहले ही नया पृष्ठ लगा लेते हैं। क्या हम इन्हें आशावादी कहें? दीवार तो वही रहती है मगर उस पर लिखी इबारत बदलती रहती है।

वक्त के बदलते ही कुछ लोग अपने घर की दीवार पर लगी नेताओं की तस्वीर भी बदल देते हैं। देवी देवताओं की तस्वीरें कायम रखी जाती हैं। जब हम खुश होते हैं तो दिल को पंख लग जाते हैं और जब हम परेशान होते हैं समय दिल पर आरी सा चलता है। कहीं कोई अंतिम सत्य नहीं है। अकीरा कुरोसावा की एक फिल्म में एक अपराध के चार चश्मदीद गवाह हैं। अदालत के एक कथन में चारों घटना का विवरण देते हैं जिससे आभास होता है कि चार अलग घटनाएं घटी हैं। हम हर घटना को अपनी मूल प्रवृत्ति के अनुसार अपने नजरिए से परिभाषित करते हैं।

जब पूरब में दिन का समय होता है तो पश्चिम में रात होती है। दोनों ही सत्य हैं। सामान्य घड़ी समय बताती है। दिल की घड़ी कोई और समय बताती है। बर्फ से ढके पर्वत पर भी धूप छांव की सहायता से समय का बहुत अनुभवी पट लेते हैं। ग्रामीण लोग वृक्ष पर चीटियों को घर की ओर लौटते हुए देखकर शाम के आने का अनुमान लगा लेते हैं।

गणेश उत्सव पर समवेत स्वर में प्रार्थना की जाती है की बप्पा अगले बरस लौट कर आना। जिसका अर्थ यह है कि समय आनंद से बीते और शीघ्र ही हम गणेश उत्सव पुनः मना सकें।

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