बिरजू महाराज के पिता का निधन हुआ तो 12 साल की उम्र में नृत्य सिखाने लगे,अब नहीं रहे.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सिद्ध कथक नर्तक और पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज का रविवार-सोमवार की दरमियानी रात हार्ट अटैक से निधन हो गया है। वे 83 साल के थे। उन्होंने दिल्ली के साकेत हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली। बिरजू महाराज को सरोद और वायलिन बजाने का शौक था। नृत्य तो प्रमुख था ही। वो 500 ठुमरी जानते थे। उनके नए-नए क्रिएशन अनगिनत हैं। जिस उम्र में लोग सीखते हैं, महाराज ने सिखाना शुरू कर दिया था।
बृजमोहन था नाम
एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, ‘लखनऊ के एक अस्पताल में 4 फरवरी 1938 को जब मेरा जन्म हुआ, तो उस दिन सभी लड़कियां ही पैदा हुई थीं, इसलिए मेरा नाम बृजमोहन रख दिया गया। फिर बोले यानी गोपियों के बीच मैं बृजमोहन। बाद में मुझे बिरजू कहा जाने लगा। जिस घर में आंख खुली। उसे बिंदादिन घराना कहा जाता था।
पिता अच्छन महाराज और चाचा शंभू महाराज का नाम देश के प्रसिद्ध कलाकारों में था। बचपन से ही सुर-ताल से परिचय आंखों और कानों के मार्फत हुआ। मुझे पतंगबाजी अच्छी लगती थी, पर अम्मा को पतंग उड़ाना और गिल्ली-डंडा खेलना बिल्कुल पसंद नहीं था। अम्मा जिद करके बाबूजी की महफिल में भेजतीं। हाफिज अली खान और मुश्ताक खान जैसे संगीतज्ञों के पास जब कंठ खुलता, तो वो कहते लड़का लयदार है। शुरू से ही लय, ताल अच्छा रही, यह प्रभु की देन है, पर बाबूजी मना करते थे। अम्मा से कहते, पहले नजराना दिलवाओ। तब मैं छोटे-बड़े मंचों पर प्रस्तुति देने लगा था।’
महाराज ने आगे कहा था, ‘पहली बार, महज छह साल की उम्र में रामपुर नवाब के यहां मंच पर गाया। मंचों के जरिए जमा हुए 501 रुपए अम्मा ने बाबूजी को बतौर नजराना दे दिया। वो हंसते हुए बोले, तुम्हारा बेटा तो अमीर हो गया। इसके बाद उन्होंने मुझे अपना शार्गिद बना लिया। तब मैं साढ़े सात साल का था, लेकिन डेढ़ ही साल बाद 9 का हुआ, तो अच्छन महाराज (पिता) की डेथ हो गई। अम्मा को रोता देख, मैं भी रोने लगा। अब चाचा शंभू महाराज से तालीम लेने लगा। वहीं, 12 साल तक पहुंचते-पहुंचते लोगों को सिखाने भी लगा। नृत्य ही वो रास्ता है, जो प्रभु की तरफ ध्यान दिलाता है।’
फिल्मों से नहीं जुड़ना चाहते थे बिरजू महाराज
फिल्मों से जुड़ने पर महाराज ने कहा था, ‘मुझे प्रस्तुति देने के लिए विदेशों में बुलाया जाने लगा। लगभग सारी दुनिया घूम चुका हूं। बिस्मिल्लाह खान, अमीर खान और भीमसेन जैसे सभी बड़े उस्तादों के साथ प्रस्तुति दी। फिल्मों की तरफ नहीं जाना चाहता था, पर मन को समझने वाले मिलते गए, तो कई फिल्में कीं। सबसे पहले सत्यजीत रे ने यकीन दिलाया कि बाल से पैर के नाखून तक संगीत से छेड़छाड़ नहीं होगी, तभी उनकी फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ के लिए दो क्लासिकल डांस सीक्वेंस के लिए संगीत रचा और गायन भी किया। इसके बाद ‘दिल तो पागल है’, ‘देवदास’, ‘डेढ़ इश्किया’ और ‘बाजीराव मस्तानी’ में कोरियोग्राफी की।
माधुरी दीक्षित थीं फेवरेट
इंटरव्यू में बिरजू महाराज ने माधुरी दीक्षित की तारीफ करते हुए कहा था, वो तो मेरी फेवरेट हैं। उनमें कुदरतन भाव है। महाराज ने माधुरी को सबसे पहले किसी फिल्म में डांस सिखाया था तो वो फिल्म ‘दिल तो पागल है’ थी। इसमें जिस जुगलबंदी वाले डांस सीक्वेंस की तारीफ हुई थी, उसमें बिरजू महाराज ने ही माधुरी को डांस सिखाया था।
इस सीक्वेंस में शाहरुख खान ड्रम बजाते हैं और माधुरी स्पॉटलाइट में डांस करती दिखाई देती हैं। एक इंटरव्यू में माधुरी ने महाराज की तारीफ करते हुए कहा था, ‘महाराज जी में कमाल का सेंस ऑफ़ ह्यूमर था और वो अक्सर विदेश यात्रा से जुड़े फनी किस्से सेट पर सुनाया करते थे। जब उन्होंने देवदास के गाने ‘काहे छेड़ छेड़ मोहे’ गाने पर कोरियोग्राफी की तो मुद्राएं, अभिनय और बॉडी लैंग्वेज देखकर तो मुझे लगा कि मैं किसी सेट पर नहीं बल्कि स्वर्ग में हूं। उनकी आर्ट इंद्रधनुष की तरह थी सप्तरंगी, लेकिन नवरस से भरपूर।’
फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ के गाने ‘मोहे रंग दो लाल’ के लिए बिरजू महाराज को बेस्ट कोरियोग्राफी का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी दिया गया था।
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