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उमाशंकर बाबू की 82 जयंती पर बीजेपी नेता ने किया यादों को साझा

उमाशंकर बाबू की 82 जयंती पर बीजेपी नेता ने यादों को किया साझा

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श्रीनारद मीडिया, सीवान(बिहार)

पूर्व सांसद उमाशंकर बाबू की 82 वीं जयंती ,उमाशंकर सिंह अनुग्रह नारायण महिला महाविद्यालय महाराजगंज में कुंवर वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जितेंद्र स्वामी व भूमिदाता खोभाड़ी सिंह की अगुवाई में धूमधाम से श्रद्धापूर्वक मनायी गयी।

इस मौके पर प्रो सुबोध सिंह,प्रो अलखदेव सिंह,प्रो दीनेश्वर सिंह आदि मौजूद थे। इस मौके पर पत्रकार वकील प्रसाद,डब्बू सिंह,धर्मेंद्र उपाध्याय आदि सम्मानित किया गया। उनकी जयंती पर अपना उद्गार प्रकट करते हुए भाजपा नेता दिलीप कुमार सिंह ने कहा कि कुछ लोग जन्म से महान होते हैं, जिन्हें महानता विरासत में मिली होती है। वहीं समाज में ऐसे भी लोग जिनपर महानता थोपी जाती हैं। लेकिन सही मायने में महानता अपने कर्मों से अर्जित करने वाले लोग कालजयी और युग पुरुष बन जाते हैं।

 

ऐसी ही महान विभूतियों में एक थे स्व उमाशंकर सिंह उर्फ नेताजी। उनका सम्पूर्ण जीवन परमार्थ हेतु त्याग और तपस्या का पर्याय दृष्टिगोचर होता है। सामान्य गृहस्थ परिवार में उत्पन्न होकर उनकी राजनीति एवं समाज सेवा के क्षेत्र में अपनी पहचान बना लेना आमजन के लिए अनुकरणीय है। स्थानीय शैक्षणिक संस्थानों से प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने वाले उमाशंकर बाबू का रूझान विद्यार्थी जीवन से ही सामाजिक गतिविधियों की तरफ थी।

 

लोक व्यवहार में इतने कुशल कि जो एक बार उनके सम्पर्क में आता सदा के लिए उनका हो जाता। एक बार की बात है कि सन् 1991 में मैं दिलीप कुमार सिंह और मेरे गांव पोखरा के निवासी व वर्तमान गौर राजकीय मध्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक अखिलानंद पांडेय सिवान के स्टेशन रोड स्थित उनके डेरे पर गए। हमलोग यूपी के मदनमोहन मालवीय पीजी कॉलेज,भारपार रानी में ग्रेजुएट पार्ट वन में नामांकन में उनसे पैरवी करने गये थे। उन्हें हम दोनों ने बताया कि हम दोनों लोग महाराजगंज क्षेत्र के पोखरा से आए हैं। उस समय वे महाराजगंज के विधायक थे।

 

उन्होंने तुरंत एक चिट्ठी हम लोगों के नामांकन दाखिल करने हेतु कॉलेज के प्रबंधक सह भाटपार रानी के तत्कालीन विधायक अपने समधी रघुराज प्रताप सिंह को लिखा। और उन्हें बिहार विधानसभा की एक डायरी भी देने हेतु दिए। हम लोग चिट्ठी लेकर वहां गए। और कॉलेज के तत्कालीन प्रबंधक सह विधायक जी को दिया। और हम दोनों का नामांकन हो गया। जबकि उस समय नामांकन बंद हो गया था।हम बहुत बिलंब कर पहुंचे थे। यह उनकी मदद करने की कार्यशैली थी।उनकी अभिरूचि सामाजिक गतिविधियों में होने के कारण उस समय स्वतंत्रता आंदोलन से निकलकर आने वाले सभी प्रकार के विचार धाराओं के लोगों से उनका सम्पर्क स्थापित होने के विषय में भी सुनने को मिलता है।

 

जब वर्ष 1977 में लोकनायक श्री जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में देश व्यापी आंदोलन हुआ तो उसमें उमाशंकर बाबू शरीक ही नहीं हुए,बल्कि सीवान उस आंदोलन की अगुवाई भी की। उमाशंकर बाबू ने अपने नेतृत्व की क्षमता से आवाम को अचंभित कर दिया। क्षेत्रीय स्तर पर आम जनमानस में उनकी लोकप्रियता इस कदर थी कि 1977 से लगातार पांच बार विधायक के रूप में और एक बार सांसद के रूप में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी किया।

 

यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि तब से लेकर उनके देहावसान तक सीवान- छपरा जिले की राजनीति उनके इर्द-गिर्द चलती रही।वे किसी खास वर्ग के नेता नहीं थे। बल्कि समाज का हर वर्ग उन्हें अपना सिरमौर मानता था।यही कारण है कि उन दिनों किसी भी दल के कादावर नेता जब सिवान आने पर उमाशंकर बाबू से मिलने और उनको जानने कि बेचैनी रहती थी। मुझे याद है जब एक बार सीवान की जीरादेई विधानसभा के उपचुनाव में सीवान में मोतिहारी के सांसद म राधामोहन सिंह जी जिरादेई विधानसभा के उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी स्व ध्रुपशंकर सिंह मुखिया के चुनाव प्रचार में आए थे। और उस समय रेनुआ गांव का भ्रमण करना था।

 

सांसद राधामोहन सिंह सीवान में श्री ओंकार मल जी के यहां रूके थे।साथ में मैं भी था।उस समय मै भाजपा युवा मोर्चा में था। और श्री व्यास देव प्रसाद जी भाजपा के जिलाध्यक्ष थे। मुझे सुबह में राधामोहन बाबू ने कहा कि दिलीप पता करो कि उमाशंकर बाबू हैं।फिर उनसे सांसद राधामोहन सिंह जी ने बात की।आज आपके गांव रेनुआ में मेरा चुनावी भ्रमण होगा। जब हम लोग सुबह 10 बजे रेनुआ पहुंचे तो उन्होंने सभी के लिए खाना बनबा दिया था।सभी सभी को पहले खाना खिलाये। और उसके बाद में बोले कि हम तो गांव में साथ नहीं घुम सकते हैं।

 

क्यों कि हम किसी दूसरे दल में हैं। फिर हम लोग माननीय सांसद श्री राधामोहन सिंह जी के साथ रेनुआ गांव का भ्रमण किया। फिर उमाशंकर बाबू स्टेशन स्थित अपने डेरे पर उन्हें लाए। और स्टेशन तक उन्हें छोड़ने गए।उनका जीवन संघर्षों से भरा था लेकिन उन्होंने दृढ़ता पूर्वक मुकाबला किया।

 

जब समय उनके प्रतिकूल हुआ करता तभी वे अपना आपा नहीं खोते थे। ऐसे दृढ़ व्यक्तित्व,तेजोमय मुखमंडल, ओजपूर्ण वाणी और मृदृल ह्रदय के स्वामी उमाशंकर बाबू की मृत्यु की सूचना हम सभी की आंखें नम कर गई थीं। उन्हें बार-बार नमन है।

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