आशारानी लाल की पुस्तक ‘यादों की गठरी’आत्मकथात्मक संस्मरणात्मक है–राजेश पाण्डेय.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
आदरणीय गुरु माता, आशारानी लाल, चरण स्पर्श।
आपकी पुस्तक ‘यादों की गठरी’ मुझे पढ़ने हेतु उपलब्ध है, मैंने इसे पढ़ ली है।
यह ग्रंथ आत्मकथात्मक संस्मरणात्मक है। आप मूलतः बलिया उत्तर प्रदेश की रहने वाली हैं।आपके पति प्रोफ़ेसर रामा शंकर लाल सीवान स्थित डी.ए.वी महाविद्यालय में ‘गणित’ विषय के आचार्य रहे।आपको भी सीवान स्थित विद्या भवन महाविद्यालय की प्रथम प्राचार्य होने का गौरव प्राप्त है।
आप प्रोफ़ेसर साहब के साथ विवाह कर 15 जून 1958 में आई और उनके साथ 23 दिसंबर 2019 तक रही। सर का निधन 14 वर्ष की लंबी बीमारी के बाद हुआ।आप के दो बेटे हैं बड़े बेटे आर.ए. राजीव आई.ए.एस व छोटे बेटे आर.ए. संजीव आईपीएस हैं। आप इन दिनों छोटे बेटे के पास दिल्ली में रहती हैं। लेकिन लंबे समय से आप भोजपुरी में लेखन कार्य करती रही। कई पुस्तकों के बीच यह आपकी श्रृंखला की एक अलगी प्रस्तुति है। आपकी पुस्तकों में ‘ए बचवा फूलअ फरऽ’, ‘काहे कहली ईया,’ हमहूं माई घरे गईनी’, ‘लाज लागेला’, ‘माटी के भाग’,’जय कन्हैया लाल’ इत्यादि प्रमुख पुस्तकें हैं।
उक्त पुस्तक आपने अपने बेटे को समर्पित की हैं, इन दिनों आप सीवान स्थित अपने सदन को बिक्री कर अपने बेटों के साथ दिल्ली में रहती हैं। आपकी प्रस्तुत पुस्तक कई मायनों में अनूठी है, इसके संस्मरण शब्द चित्र बनकर खड़े हो जाते हैं।
आपने अपने पति के साथ 41 वर्षों की सहज जीवन की कथा प्रस्तुत की है, इसे लेखनबद्ध किया है। हृदय की अतल गहराई से अपनी पति-परमेश्वर को अगाध-प्रेम करने वाली पतिव्रता लेखिका उस सेवा में विलीन हो जाती हैं, जो एक युग तक यानी 12 वर्षों तक पति की सेवा-सुश्रुषा करती रही, एक-एक क्षण को उन्होंने 58 वर्षों में उनके लिए जीया,जाना, समझा।
अब लेखिका अकेली हैं अपितु उस यादों की गहराई में कितनी डूब जाती हैं कि उन्हें केवल ‘वो’ दिखाई देते है।उन्हें यह टीस है कि वह मुझे छोड़कर क्यों चले गए, अपनी ‘बिंदु’ को अनाथ कर गए। बचपन में दादी व मां कहती थी कि पति की ही सेवा से परमेश्वर की प्राप्ति होती है यही अपना नारी का कर्म रूपी धर्म है उसका मैं कितना पालन किया यह तो ईश्वर के आकलन का विषय है। वह मेरे सब कुछ थे जो मुझे बांट गए,एक वह जीवन जो 1940 से 1958 तक का, दूसरा विवाह 15 जून1958 से 23 दिसंबर 2019 तक और उसके बाद का जीवन, उनकी यादों में गोता लगाता रहता है।
मेरे ‘एजी,,मेरे ‘वो’, मेरे शिव का संबोधन मेरे लिए मार्मिक एवं टिस भरा है।भेंट होने पर मै प्रोफेसर साहब को अवश्य ताना दूंगी।
मुझे विश्वास है कि आपकी यह पुस्तक समाज को जीवंत बनाए रखेगी। पति व पत्नी के जन्म-जन्मांतर के संबंध को एक नई ऊंचाई प्रदान करेगी। साहित्य में आपका अवदान अविस्मरणीय रहेगा।
आपका सदैव स्वस्थ रहें व दीर्घायु हो।
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