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कोरोना काल में भी नवजात शिशुओं के लिए जीवन रक्षक बन रहा सदर अस्पताल एसएनसीयू इकाई

कोरोना काल में भी नवजात शिशुओं के लिए जीवन रक्षक बन रहा सदर अस्पताल एसएनसीयू इकाई
• एसएनसीयू में 0-28 दिनों के बच्चों का किया जाता है इलाज
• नवजात शिशुओं के लिए उपलब्ध है सभी आवश्यक उपकरण और दवा
• कोविड प्रोटोकॉल का किया जा रहा है पालन

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श्रीनारद मीडिया‚ गोपालगंज (बिहार):

वैश्विक महामारी कोरोना काल में भी नवजात शिशु स्वास्थ्य को सुदृढ और गुणवत्तापूर्ण बनाने का प्रयास किया जा रहा है। तमाम चुनौतियों के बावजूद शिशु स्वास्थ्य सेवा मुहैया करायी जा रही है। सदर अस्पताल के एसएनसीयू में 0-28 दिनों के बच्चों का इलाज किया जा रहा है। बच्चों को इलाज करने के लिए 6 डॉक्टर और 15 नर्स उपलब्ध रहते हैं। एसएनसीयू में आरडीएस सिजर, जॉन्डिस, गैस्टिक इसके अलावा छोट बच्चों के अन्य बीमारियों का भी इलाज किया जाता है। कोरोना को लेकर विशेष सावधानी बरती जा रही है। सभी प्रोटोकॉल का पालन किया जा रहा है। विभाग के द्वारा मास्क, ग्लब्स, सैनिटाइजर अन्य आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध करवायी गयी है। नवजात शिशुओं को छूने से पहले माँ औ अन्य परिजनों को हाथों की धुलाई और मास्क का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। सदर अस्पताल में एसएनसीयू में नवजात शिशु के उपचार के लिए तमाम व्यवस्थाएं मौजूद हैं। जिले के नवजात शिशुओं के लिए एसएनसीयू संजीवनी साबित हो रही है।

ब्रेस्ट फीडिंग कक्ष बनाया गया:
जिला स्वास्थ्य समिति के डीपीएम धीरज कुमार ने बताया कि एसएनसीयू में नवजात शिशुओं को बेहतर सुविधा मुहैया करायी जा रही है। ब्रेस्ट फीडिंग के लिए एक अलग रूम की व्यवस्था है। जिससे मां अपने बच्चे को दूध नियमित पिला सके। अभी 12 बच्चें एडमिट हैं । अधिकतम 17 बीमार बच्चों को एडमिट किया जा सकता है। बीमार बच्चे को माता- पिता द्वारा अस्पताल में लाने पर डाक्टरों द्वारा बच्चे को पहले चेकअप किया जाता है। बच्चे की स्थिति चिंताजनक होने पर बच्चे को एडमिट किया जाता है। बच्चे की स्थिति नार्मल होने पर ट्रीटमेंट करने के बाद बच्चे के साथ माता पिता को घर भेज दिया जाता है। सामान्य दिनों की तहर एसएनसीयू में बच्चों की भर्ती होने का सिलसिला जारी है।

बर्थ एसफिक्सिया के अधिक शिशु आते हैं एसएनसीयू:
सिविल सर्जन डॉ. वीरेंद्र प्रसाद ने बताया कि नवजात बच्चों में सबसे सामान्य बीमारी और सबसे अधिक होने वाली बीमारी बर्थ एसफिक्सिया है। इसके केस एसएनसीयू में 60 प्रतिशत तक आते हैं। जिले में प्रीमेच्योर बच्चे की संख्या भी अधिक है। असमय प्रसव होने के कारण ऐसे बच्चों का वजन कम हो जाता है। साँस से पीड़ित नवजात को एसएनसीयू की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। जहाँ बच्चे की सुरक्षा के मद्देनजर स्वास्थ कर्मी पूरी सतर्कता के साथ नवजात को यह सुविधा उपलब्ध कराते हैं। ताकि नवजात को अन्य परेशानियाँ से नहीं जूझना पड़े। इस दौरान अस्पतालों में कर्मियों द्वारा साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखा जाता है । नवजात के परिजनों को भी आवश्यक जानकारी देते हुए जागरूक किया जाता है। साथ ही साथ सरकार के गाइलाइन का भी पालन किया जाता है।

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