वायु ही नहीं ध्वनि प्रदूषण भी कर रहा बीमार.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वायु प्रदूषण के बाद ध्वनि प्रदूषण भी देश के लिए बड़ी समस्या बनता जा रहा है, लेकिन इसकी रोकथाम को लेकर सभी स्तरों पर लापरवाही देखी जा रही है। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के अधीन सीएसआइ आर-एनपीएल (काउंसिल आफ साइंटिफिक एंड इंडस्टि्रयल रिसर्च- नेशनल फिजिकल लेबोरेट्री) द्वारा हाल ही में ध्वनि प्रदूषण पर रखी गई अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में भी इस पर चिंता जताई गई। कार्यशाला में सामने आया कि खासतौर पर महानगरों में ध्वनि प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन इसकी निगरानी भर हो रही है। रोकथाम के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किए जा रहे।

सात शहरों में 70 लोकेशन पर निगरानी

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा सात शहरों दिल्ली, बेंगलुरु, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद और लखनऊ में 10-10 लोकेशनों पर ध्वनि प्रदूषण की निगरानी की जा रही है। सभी जगह यह तय सीमा को पार कर रहा है। ध्वनि प्रदूषण की स्वीकृत सीमा (डीबी-डेसिबल में) -औद्योगिक क्षेत्र : 75 डीबी (दिन), 70 डीबी (रात)-व्यावसायिक क्षेत्र : 65 डीबी (दिन), 55 डीबी (दिन)-आवासीय क्षेत्र : 55 डीबी (दिन), 45 डीबी (दिन)-साइलेंस जोन (अस्पताल-स्कूल इत्यादि के आसपास) :

50 डीबी (दिन), 40 डीबी (रात)यह है स्थिति -आइटीओ दिल्ली (व्यावसायिक क्षेत्र) में ध्वनि प्रदूषण का स्तर दिन में 74 जबकि रात को औसतन 70 डीबी दर्ज हो रहा है। अर्जुन नगर (डा. हेडगेवार अस्पताल, दिल्ली के पास) में ध्वनि प्रदूषण का स्तर दिन में औसतन 65 जबकि रात में 55 डीबी दर्ज हो रहा है। सड़कों पर ध्वनि प्रदूषण का स्तर अमूमन 75 से 85 डीबी, रेलवे लाइन के आसपास 90 से 95 डीबी और एयरपोर्ट के आसपास 120 से 130 डीबी तक दर्ज हो रहा है।

तय सीमा से ज्यादा दर्ज हो रहा है ध्वनि प्रदूषण

एक औसत अनुमान के मुताबिक यह सभी सातों शहरों की कमोबेश हर लोकेशन पर तय सीमा से ज्यादा दर्ज हो रहा है। ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख स्रोत -वाहन, निर्माण कार्य, सामुदायिक स्तर पर उत्पन्न शोर और पटाखे स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव -ऊंचा सुनना, बहरापन, तनाव, घबराहट, मांसपेशियों में जकड़न, उच्च रक्तचाप और नींद में खलल।

तय हैं रोकथाम के प्रविधान

सबसे पहले फैक्ट्री एक्ट 1948 में ध्वनि प्रदूषण के मानक तय किए गए थे। वायु प्रदूषण नियंत्रण एवं रोकथाम अधिनियम 1981 के तहत ध्वनि प्रदूषण को भी वायु प्रदूषण का ही हिस्सा माना गया।

  • 1988 में वाहनों से होने वाले ध्वनि प्रदूषण के अलग मानक बनाए गए।
  • 2000 में ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के अलग से प्रविधान तय किए गए।
  • जेनरेटर सेट से होने वाले शोर पर नियंत्रण के लिए 2002 में मानक तय किए गए।
  • सीआरपीसी की धारा 133 और आइपीसी की धारा 268, 290 और 291 में भी इस पर नियंत्रण का प्रविधान है।

कार्यशाला का निष्कर्ष

सीएसआइआर-एनपीएल की कार्यशाला में भारत सहित जापान, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी और नीदरलैंड के विशेषज्ञों ने महानगरों में लगातार बढ़ते ध्वनि प्रदूषण की मैपिंग, प्रबंधन और रोकथाम के उपाय अपनाने पर बल दिया। साथ ही इस मुददे पर गंभीरता से काम करने की वकालत की गई। डा. एस के त्यागी, पूर्व अपर निदेशक, सीपीसीबी ध्वनि प्रदूषण अब विकराल रूप ले रहा है, लेकिन वायु प्रदूषण की ओर सभी का ध्यान है, जबकि इस ओर कोई गंभीर ही नहीं है। हैरत की बात यह है कि मानक व प्रविधान भी पहले से हैं, सिर्फ सख्ती से क्रियान्वयन करने की देर है।

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