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क्या है IAS कैडर नियम 1954, जिसमें संशोधन करना चाहता है केंद्र?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

12 जनवरी को सभी राज्यों के चीफ सेक्रेटरी को लिखे पत्र में कहा गया है कि अधिकारियों की कमी को देखते हुए केंद्र सरकार आईएएस कैडर रूल 1954 में संशोधन कर ऐसा प्रावधान करने पर विचार कर रही है जिसमें राज्य से अधिकारियों को बुलाने के लिए संबंधित राज्य सरकार से अनुमति लेने की जरूरत नहीं। केंद्र सरकार के इस प्रस्ताव का पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र सरकार ने लिखित रूप से विरोध किया है।

आईएएस (कैडर) नियम, 1954 क्या है?

वैसे तो अधिकारियों की भर्ती केंद्र सरकार की तरफ से की जाती है। लेकिन  जब उन्हें राज्य कैडर आवंटित किए जाते हैं तो वे राज्य सरकार के अधीन आ जाते हैं। आईएएस कैडर नियमों के अनुसार एक अधिकारी को संबंधित राज्य सरकार और केंद्र सरकार की सहमति से ही केंद्र सरकार या किसी अन्य राज्य सरकार के अधीन सेवा के लिए प्रतिनियुक्त किया जा सकता है। इस नियम के मुताबिक किसी भी असहमति के स्थिति में केंद्र सरकार फैसला लेती है और राज्य सरकार द्वारा केंद्र सरकार के निर्णय को लागू किया जाता है। केंद्र को अधिक विवेकाधीन अधिकार देने वाले प्रतिनियुक्ति के मामले में यह नियम मई 1969 में जोड़ा गया था। 1 जनवरी, 2021 तक देश के करीब 5,200 आईएएस अधिकारियों में से 458 केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर थे।

क्या हैं प्रस्तावित संशोधन?

20 दिसंबर को कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने विभिन्न राज्य सरकारों को लिखा कि तमाम राज्य सरकार अपने राज्यों से तय मानकों के अनुसार आईएएस अधिकारियों को डेपुटेशन पर नहीं रही है। जिससे यहां अधिकारियों की कमी हो जा रही है। पत्र में नियम 6(1) में एक अतिरिक्त शर्त जोड़ने का प्रस्ताव किया गया है। नियमों में बदलाव के लिए केंद्र ने प्रस्ताव दिया है कि प्रत्येक राज्य सरकार मौजूदा नियमों के तहत निर्धारित केंद्रीय प्रतिनियुक्ति रिजर्व की सीमा तक विभिन्न स्तरों के पात्र अधिकारियों को केंद्र सरकार को प्रतिनियुक्ति के लिए उपलब्ध कराए नियमों में बदलाव के लिए केंद्र ने प्रस्ताव दिया है।

नये नियम संबंधी प्रस्ताव के अनुसार केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति में भेजे जाने वाले अधिकारियों की वास्तविक संख्या केंद्र सरकार संबंधित राज्य सरकार के साथ परामर्श से तय करेगी। इसमें कहा गया है कि किसी तरह की असहमति की स्थिति में निर्णय केंद्र सरकार करेगी और संबंधित राज्य सरकारें निश्चित समय में केंद्र सरकार के निर्णय को लागू करेंगी। मौजूदा शर्त के लिए कि “किसी भी असहमति के मामले में … राज्य सरकार या संबंधित राज्य सरकारें केंद्र सरकार के निर्णय को प्रभावी करेंगी”, प्रस्तावित संशोधन में “एक निर्दिष्ट समय के भीतर” शब्द शामिल हैं।

केंद्र ने 25 जनवरी के भीतर टिप्पणी मांगी है और राज्य सरकारों को रिमाइंडर भेजा है। इसमें लिखा है कि “विशिष्ट परिस्थितियों में, जहां केंद्र सरकार द्वारा जनहित में कैडर अधिकारियों की सेवाओं की आवश्यकता होती है, केंद्र सरकार पोस्टिंग के लिए ऐसे अधिकारियों की सेवाएं ले सकती है। कुछ राज्यों ने प्रतिक्रिया दी है, जिसमें पश्चिम बंगाल भी शामिल है, जिसने आपत्ति जताई है।

केंद्र की दलील

केंद्र का कहना है कि अगर यही रुख रहा तो आने वाले समय में अधिकारियों के कैडर बंटवारे में दिक्कत हो सकती है। मौजूदा नियम के अनुसार आईएएस अधिकारियों को जॉइट अधिकारी के पैनल में आने के लिए अपने पहले साल के सेवा में कम से कम दो साल सेंट्रल डेपुटेशन में काम करना होता है। इसके बाद ही वे अडिशनल सेक्रेटरी या सक्रेटरी के लिए पैनल में आते हैं। यह दो साल का डेपुटेशन टॉप ब्यूरोक्रेसी में आने की सबसे बड़ी शर्त है।

राज्यों को क्या है आपत्ति

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आपत्ति जताई है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिर से चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में उन्होंने लिखा है कि ऐसा करने से संघीय तानाबाना और संविधान का मूलभूत ढांचा नष्ट हो जाएगा। सिर्फ ममता बनर्जी ही नहीं, बल्कि जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने इस पर चिंता जताई है। उन्होंने न्यूज एजेंसी से कहा कि ये फैसला संघीय ढांचे के ताबूत में एक और कील साबित होगा।

विवाद पुराना

केंद्र-राज्यों के बीच यह विवाद नया नहीं है। कुछ साल पहले उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, राजस्थान सहित 12 राज्यों के आईएएस असोसिएशन ने डीओपीटी को पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप करने को कहा था। पिछले साल पश्चिम बंगाल के तात्कालीन चीफ सेक्रेटरी अलपन बंदोपाध्याय के दिल्ली बुलाने के मामले में भी में राज्य-केंद्र सरकार का टकराव हुआ था।

अधिकारी क्या चाहते हैं?

राज्यों में तैनात आईएएस अधिकारियों की शिकायत है कि राज्य सरकार उनका नाम समय पर जॉइंट सेक्रेटरी के लिए नहीं भेजती है। साथ ही जिस अधिकारी की उम्र 54 साल से ऊपर हो गई हो उन्हें आम तौर पर केंद्र डेपुटेशन पर नहीं बुलाता है।

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