शिक्षा प्रणाली में भारतीय ज्ञान परंपरा की अनिवार्यता क्यों है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत, संस्कृति और संस्कृत, ये तीनों शब्द मात्र शब्द नहीं, अपितु प्रत्येक भारतीय के भाव हैं। भारतीय संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन के लिए भारतीय ज्ञान परंपरा का ज्ञान परम आवश्यक है। अतएव राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)-2020 में भी बहुभाषावाद को प्रासंगिक बताते हुए शिक्षा क्षेत्र के सभी स्तरों पर संस्कृत को जीवन जीने की मुख्यधारा में शामिल कर अपनाने पर बल दिया गया है। अत: संस्कृत का अध्ययन कर छात्र-छात्राएं न केवल अपने-अपने अतीत से गौरवान्वित होकर वर्तमान में संतुलित व्यवहार की ओर अग्रसर होंगे, अपितु भविष्य के प्रति भी उल्लासित होंगे।
हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली ने व्यक्ति के सर्वांगीण विकास पर ध्यान केंद्रित किया तथा विनम्रता, सच्चाई, अनुशासन, आत्मनिर्भरता और सम्मान जैसे मूल्यों पर बल दिया। भारत में शिक्षा का स्वरूप व्यावहारिकता को प्राप्त करने योग्य और जीवन में सहायक है। इस प्रकार, यह ध्यातव्य है कि एनईपी 2020 ने न केवल प्राचीन भारत के गौरवशाली अतीत को मान्यता दी है, बल्कि प्राचीन भारत के विद्वानों जैसे-चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, मैत्रेयी, गार्गी आदि के विचारों एवं कार्यों को वर्तमान पाठ्यक्रम में प्री-स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक शामिल करने की ओर भी हमारा ध्यान आकृष्ट किया है।
संपूर्ण वैदिक-वांगमय, रामायण, महाभारत, पुराण, स्मृतिग्रंथ, दर्शन, धर्मग्रंथ, काव्य, नाटक, व्याकरण तथा ज्योतिष शास्त्र संस्कृत भाषा में ही उपलब्ध होकर इनकी महिमा को बढ़ाते हैं, जो भारतीय सभ्यता, संस्कृति की रक्षा करने में पूर्णत: सहायक सिद्ध होते हैं। संस्कृत से ही संस्कारवान समाज का निर्माण होता है। संस्कारों से कायिक, वाचिक, मानसिक पवित्रता के साथ-साथ पर्यावरण भी स्वच्छ होता है।
संस्कारों का वैज्ञानिक महत्व भी है। इसकी वैज्ञानिकता को नासा ने 1987 में ही संस्कृत को कंप्यूटर के लिए सर्वोत्तम भाषा के रूप में मान्यता प्रदान की, जिसका कारण संस्कृत भाषा को अंतरिक्ष में संदेश प्रेषण के लिए सबसे उत्कृष्ट माना है। आज भी अमेरिका, जर्मनी आदि अनेक देश संस्कृत के क्षेत्र में नित-नवीन अनुसंधान कार्य करके इसकी यशोवृद्धि में प्रयत्नशील हैं।
बदलते सामाजिक परिवेश और भारतीय मूल्यों के बीच हमारी शिक्षा व्यवस्था को समावेशी बनाना अत्यावश्यक है। यह समावेशी व्यवस्था भारतीय प्राचीन ज्ञान परंपरा को लिए बिना नहीं चल सकती है, क्योंकि एक तरफ तो हम आधुनिकता के दौर में सरपट भागे जा रहे हैं, वहीं हमारी संस्कृति में निहित ज्ञान विज्ञान परंपरा को भूलते जा रहे हैं। इस अंधानुकरण में हमारी वही स्थिति हो चुकी है जैसाकि उपनिषदों में कहा गया है कि यदि दृष्टिहीन को रास्ता दिखाने वाला भी दृष्टिहीन हो तो लक्ष्य कैसे प्राप्त हो सकेगा।
हमारी शिक्षा व्यवस्था में हमारे भारतीय मूल्यों और ज्ञान की स्पष्ट झलक दिखाई दे सके, इसी उपक्रम में एनआइओएस यानी राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान विभिन्न माध्यमों से ललित कला और संस्कृति की शिक्षा में निरंतर प्रयासरत है। यह कला एकीकरण को विभिन्न कार्यक्रमों में पाठ्येतर शैक्षणिक उपागम के रूप में प्रस्तुत करता है।
एनआइओएस ने वैदिक शिक्षा, संस्कृत भाषा और साहित्य, भारतीय दर्शन और प्राचीन भारतीय ज्ञान के कई अन्य क्षेत्रों को पुनर्जीवित करने के लिए ‘भारतीय ज्ञान परंपराÓ नामक एक नए स्ट्रीम की शुरुआत की है। इंडियन नालेज ट्रेडिशन स्ट्रीम के अंतर्गत, एनआइओएस ने पहले से ही माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तरों पर संस्कृत और हिंदी माध्यम में पांच पाठ्यक्रम विकसित किए हैं- वेद अध्ययन, संस्कृत व्याकरण, भारतीय दर्शन, संस्कृत साहित्य, संस्कृत (भाषा विषय)।
एनआइओएस ने ‘भारतीय ज्ञान परंपराÓ के अंतर्गत तीन माध्यमों- संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी में कई विषयों में मुक्त बेसिक शिक्षा (ओबीई) कार्यक्रम के विविध स्तरों पर पाठ्यक्रम और स्व-अध्ययन सामग्री को भी विकसित किया है। संस्कृत/ हिंदी माध्यम में भाषा विषय के रूप में संस्कृत विषय को भी विकसित किया गया है। इन पाठ्यक्रमों में रामायण, महाकाव्यादि कथाएं शामिल हैं।
इन विषयों का उद्देश्य शिक्षार्थियों को हमारे समृद्ध भारतीय संस्कृति के प्रति जागृत करना है। योग के विषय में पतंजलि योग सूत्र, सूर्य नमस्कार, आसन, प्राणायाम, क्रोध प्रबंधन अभ्यास, एकाग्रता और स्मृति विकास विषयक अभ्यास शामिल हैं। शिक्षार्थियों के समग्र विकास के साथ-साथ सभी के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए ये अभ्यास बहुत महत्वपूर्ण हैं।
माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तरों पर निम्नलिखित सात नए पाठ्यक्रमों का निर्माण किया जा रहा है- आयुर्वेद, योग, वेदपाठ, न्यायशास्त्र, ज्योतिष शास्त्र, अनुप्रयुक्त संस्कृत व्याकरण, नाट्यकला। एनआइओएस ने भारतीय ज्ञान परंपरा के क्षेत्र में नवीन पाठ्यक्रमों के विकास के लिए विभिन्न गुरुकुलों/ संस्थानों से प्रस्ताव भी आमंत्रित किए हैं। इन पाठ्यक्रमों का उद्देश्य शिक्षार्थियों को हमारी समृद्ध भारतीय संस्कृति से अवगत कराना और मूल्यों को विकसित करना है।
हमारे शिक्षार्थियों को योग का ज्ञान देने के लिए मुक्त बेसिक स्तर पर योग विषय का पाठ्यक्रम भी उपलब्ध है। इस प्रकार हमारे देश के भविष्य का निर्माण करने वाली भावी पीढ़ी के लिए यह अभ्यास बहुत महत्वपूर्ण हैं। भारत की सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखना देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे देश की पहचान बनती है।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसके महत्व को समझते हुए तथा विदेश के साथ सांस्कृतिक संबंध विकसित करने के लिए एनआइओएस ने प्रवासी अध्ययन केंद्र स्थापित किया है। इसका लक्ष्य वसुधैव कुटुंब की भावना के आलोक में शांति, बहुलता और सार्वभौमिक बंधुत्व को बढ़ावा देना है।
शिक्षा जैसे सशक्त माध्यम के साथ एनआइओएस का यह प्रवासी अध्ययन केंद्र अन्य देशों में भी भारतीय प्रवासी केंद्रों को सशक्त करने के लिए कार्य करेगा। यह भारतीय ज्ञान परंपरा को एक गत्यात्मक तथा व्यापक जीवन प्रणाली के रूप में प्रस्तुत करते हुए भारत की गौरवशाली संस्कृति और परंपरा को स्थापित करेगा।
- यह भी पढ़े……
- डॉ. द्विवेदी ने संस्कृत में 100 पुस्तकें-ग्रंथ लिखे,कैसे?
- भारतीय वैज्ञानिकों की अंतरिक्ष में ऊंची उड़ान.
- वाराणसी की छह विभूतियों को पद्म पुरस्कार, एक पद्म विभूषण, एक पद्म भूषण और चार पद्मश्री सम्मान.
- सिधवलिया व बैकुंठपुर के चार हजार डिफाल्टर उपभोक्ता के खिलाफ अब सर्टिफिकेट केस की तैयारी