कुख्यात कैदखाना, जहां हिटलर ने 60लाख यहूदियों को उतारा मौत के घाट,कैसे?
होलोकॉस्ट दिवस पर विशेष
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
1939 में जर्मनी द्वारा विश्व युद्ध भड़काने के बाद हिटलर ने यहूदियों को जड़ से मिटाने के लिए अपने अंतिम हल (फाइनल सोल्यूशन) को अमल में लाना शुरू किया। उसके सैनिक यहूदियों को कुछ खास इलाकों में ठूंसने लगे। उनसे काम करवाने, उन्हें एक जगह इकट्ठा करने और मार डालने के लिए विशेष कैंप स्थापित किए गए, जिनमें सबसे कुख्यात था ऑश्वित्ज।
पोलैंड का ऑश्वित्ज हिटलर की हैवानियत का सबसे बड़ा सेंटर था। यह नाजी हुकूमत का सबसे बड़ा नजरबंदी शिविर था। नाजी खुफिया एजेंसी एसएस यहां पर यूरोप के सभी देशों से यहूदियों को पकड़कर ले आती थी। जहां पहुंचते ही उनमें से कई लोगों को गैस चेंबर में डालकर मार दिया जाता था। वहीं कई ऐसे भी थे जिन्हें काम करने के लिए जिंदा रखा जाता था। उनकी पहचान मिटाकर उनके हाथ पर एक नंबर अंकित कर दिया जाता था जिससे उनकी पहचान होती थी।
इस दौरान उन्हें मरने तक यातनाएं दी जाती थी। उनके सिर के बाल उतार लिए जाते थे। कपड़ों की जगह चीथड़े पहना दिए जाते थे। इसके बाद उन्हें बस जिंदा रहने के लिए जरूरी खाना दिया जाता था। इतना ही नहीं उन्हें तब तक यातना दी जाती थी जब तक वे निष्क्रिय नहीं हो जाते थे।
जो ज्यादा कमजोर हो जाते थे, जिनसे काम नहीं लिया जा सकता था। उन्हें बारी-बारी से गैस चैम्बर में ले जाकर मार दिया जाता था। युद्ध के छह साल के दौरान नाजियों ने तकरीबन 60 लाख यहूदियों की हत्या कर दी, जिनमें 15 लाख बच्चे थे।
नाजी नेतृत्व का कहना था कि दुनिया से यहूदियों को मिटाना जर्मन लोगों और पूरी इंसानियत के लिए फायदेमंद होगा। हालांकि असल में यहूदियों की ओर से उन्हें कोई खतरा नहीं था। इसके लिए उन्होंने उम्र, लिंग, आस्था या काम की परवाह नहीं की।