आखिर क्यों जरूरी है अपनी क्षमताओं को जानकर उसे जगाना?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
कोविड के ओमिक्रोन स्वरूप को लेकर इन दिनों समूचे देश में चिंता और अनिश्चितता का माहौल है। हालांकि इसी बीच पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की गतिविधियां भी रैलियों/चुनावी सभाओं पर निर्वाचन आयोग की रोक के बीच चल रही हैं। अच्छी बात यह है कि ओमिक्रोन के बढ़ते असर के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था पर इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा है।
हालांकि यदि छात्रों और नौकरी की तलाश कर रहे युवाओं की बात करें, तो उनमें एक बार फिर निराशा और अनिश्चितता की स्थिति देखने को मिल रही है। स्कूल-कालेज बंद होने से एक बार फिर जहां आनलाइन क्लासेज पर निर्भरता बढ़ गई है, वहीं प्रतियोगी परीक्षाओं की तिथियों के भी आगे बढ़ने की नौबत आ गई है। वैसे इस स्थिति से अधिक घबराने और चिंतित होने की जरूरत इसलिए नहीं है, क्योंकि विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना की तीसरी लहर अपने चरम पर पहुंचकर अब कम होने की ओर है।
यह भी सच है कि ओमिक्रोन का असर कम होने के कारण किसी तरह के हाहाकार की नौबत नहीं आई। हालांकि पिछले साल की भयावह स्थिति को देखते हुए सरकार और अस्पतालों ने पहले से ही ऐसी व्यवस्था कर रखी थी, जिससे कि किसी तरह की अव्यवस्था की स्थिति न उत्पन्न हो। चूंकि विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में बेशक ओमिक्रोन का प्रभाव कम हो जाए लेकिन कोरोना के नये-नये स्वरूपों के आगे भी आते रहने की आशंका बनी रहेगी,
ऐसे में हम सभी को कोरोना के साये में रहने के बावजूद बचाव के सभी साधनों को अपनाने और अपनी इम्युनिटी बढ़ाए रखने के साथ अपनी दिनचर्या को सुचारु रूप से आगे बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। उच्च शिक्षा हासिल करने या फिर अपने लिए उपयुक्त बेहतर नौकरी की तलाश में लगे युवाओं को भी सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ना होगा, ताकि उन्हें उनकी वांछित मंजिल मिल सके।
निकलें दुविधा से बाहर : एक काउंसलर के रूप में मेरे पास नियमित रूप से ऐसे पत्र आते हैं, जिनमें अपनी पढ़ाई और नौकरी की राह को लेकर चिंता जताई गई होती है। इनमें से ज्यादातर का विश्लेषण करने पर यही लगता है कि अधिकतर युवा दूसरों को देखकर या फिर जिस कोर्स में आसानी से दाखिला मिल जाता है, उसी को पढ़ने लगते हैं। लेकिन कुछ महीनों या एक-दो साल बाद ही उनका मन उससे उचट जाता है। जाहिर है उस कोर्स या विषय में मन न लगने के कारण उनका प्रदर्शन भी प्रभावित होता है। ऐसे में उन्हें समझ में नहीं आता कि आखिर वे करें तो क्या करें। इस बारे में उन्हें स्वजन से भी चर्चा करने में संकोच होता है।
दरअसल, भटकाव और ऊहापोह वाली स्थिति का सबसे बड़ा कारण प्राय: यही होता है कि हमने अपने मन की इच्छा यानी अपनी पसंद/नापसंद को जाने बिना ही उस कोर्स में प्रवेश ले लिया। शुरुआत में दाखिला मिलने के उत्साह में हम इस पर ध्यान नहीं देते, पर आगे आने वाले दिनों में जब किताबें पलटने और कक्षाएं करने पर ज्यादा कुछ पल्ले नहीं पड़ता, तब लगता है कि निर्णय लेने में कहीं कोई गलती हो गई।
कभी-कभी तो इसमें एक दो साल निकल जाते हैं और तब धर्मसंकट और बढ़ जाता है कि अब क्या करें। आगे बढ़ा नहीं जाता और पीछे लौटने पर जगहंसाई का डर सताता है। पर यही आपकी परीक्षा की घड़ी और जीवन/करियर का टर्निंग प्वाइंट है। यदि इस कठिन मोड़ पर दूसरों की परवाह करते हुए आप चुप रह जाते हैं और कोई कदम नहीं उठाते, तो यह तय है कि आप फिर नाकामी के दलदल में फंसते चले जाएंगे, जिससे निकलना मुश्किल हो जाएगा।
लें कड़े फैसले : बेहतर यही होगा कि जब भी आपको लगे कि आपसे गलत फैसला हो गया है और आप अभी भी यूटर्न ले सकते हैं, तो ऐसा करने में कतई देरी न करें। हिम्मत करके अपने स्वजन से इस बारे में चर्चा करें और उन्हें बताएं कि आप इस राह पर अब और आगे नहीं चल सकते। आपको अपने मन की राह तलाशने और उस पर आगे बढ़ने देने में उन सभी का सहयोग और समर्थन चाहिए। आपके माता-पिता, भाई-बहन आपके सच्चे हितैषी होते हैं। आप उन्हें अपनी उलझन बताकर उन्हें समझाएंगे, तो वे निश्चित रूप से आपका साथ देंगे और आपका मनोबल बढ़ाएंगे।
अपने अंदर झांकें: अब पहले की गलतियों पर पछताने और बाहर/दूसरों की तरफ देखने के बजाय अपने भीतर झांकें। ईमानदारी और गंभीरता से इस बात की तलाश करें कि आपको खुद क्या पसंद और नापसंद है। आपके भीतर वे कौन-सी खूबियां हैं, जिन्हें तराश कर आप स्वयं को तरक्की की राह पर आगे बढ़ा सकते हैं। वैसे कभी-कभी यहां भी दुविधा होती है।
हम ठीक-ठीक समझ ही नहीं पाते कि हमें क्या अच्छा लगता है और क्या नहीं। यदि इस दुविधा के शिकार आप भी हैं, तो आपको इससे निकलने के लिए हम यहां कुछ व्यावहारिक नुस्खे बता रहे हैं, जिन पर आपको अगले एक सप्ताह या अधिक से अधिक दस दिन तक अमल करना होगा। इसके बाद आपके लिए अपनी आगे की राह तलाशना और उस पर आगे बढ़ना काफी हद तक आसान हो जाएगा।
जानें और जगाएं खुद को : कोई भी इंसान ऐसा नहीं होता, जिसकी अपनी कोई पसंद या नापसंद नहीं होती। फिर भी अपने मन की बात को, अपनी रुचियों को ठीक-ठीक समझने के लिए आप एक नोटबुक और पेंसिल लें। उसमें हर रोज उस दिन अपने दिमाग में आने वाली रुचि (जो आपको अच्छे लगते हैं) के कुछ क्षेत्रों को क्रम से लिख लें। सोच-विचार करके कम से कम दस क्षेत्रों के बारे में लिखें। जिसमें सबसे अधिक रुचि हो, उसे सबसे पहले लिखें। अगले दिन फिर से इसी तरह करें।
लेकिन ऐसा करते हुए पहले दिन लिखी गई बातों/क्रम को न देखें, ताकि दूसरे दिन आप अपने दिल-दिमाग में आने वाली रुचियों को नये सिरे से लिख सकें। इस तरह संयम के साथ लगातार एक सप्ताह या दस दिन तक करें। दस दिन के बाद इन सभी पन्नों को एक साथ रखकर देखें कि इनमें शुरू के तीन स्थानों पर कौन-सी रुचि/रुचियां कामन हैं। अब इन तीन पर अगले कुछ दिनों (करीब एक सप्ताह तक) और मनन-चिंतन करें। इसके बाद निष्कर्ष निकालें।
चाहे तो अब इस पर अपने स्वजन और करीबी मित्रों से विचार-विमर्श करके अपने लिए उचित निर्णय लें। इस तरह का विश्लेषण और आकलन दसवीं से बारहवीं की पढ़ाई के दौरान हर वह युवा कर सकता है/करना भी चाहिए, जिसे अपने आगे के लक्ष्य को लेकर जरा भी दुविधा है।
रखें अपने जुनून का खयाल : हर किसी की अपनी पसंद और नापसंद होती है, लेकिन अपनी पसंद के उसी क्षेत्र में करियर बनाना/खुद को आगे बढ़ाने के बारे में सोचना उचित हो सकता है, जिस पसंद को आप अपना जुनून बना सकें। जुनून होगा, तभी आप उसमें भूख-प्यास भुलाकर दिन-रात उसके बारे में सोच सकते हैं, उसमें मेहनत कर सकते हैं। जुनून होने पर ही उस क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने की आपमें तड़प होगी। यदि आप ऐसा करियर चुनना चाहते हैं, जिसमें अपनी पहचान बना सकें, तो आपको अपनी पसंद को जुनून तक पहुंचाने की अनथक कोशिश करनी होगी। जुनून होगा, तो कामयाबी भी जरूर मिलेगी।
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