नवीकरणीय ऊर्जा: महत्त्व और संबद्ध समस्याएँ क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
पारंपरिक ईंधन की तुलना में नवीकरणीय ऊर्जा पर यूरोप का अधिक ज़ोर देना वैश्विक खाद्य संकट का कारण बन सकता है। अगस्त 2021 से पश्चिमी यूरोप को नवीकरणीय ऊर्जा से संबद्ध समस्या का सामना करना पड़ा है जहाँ कभी पवन ऊर्जा के लिये पवन की गति कम पड़ी, तो कभी सौर ऊर्जा के लिये सूर्य का प्रकाश उपलब्ध नहीं हो सकी।
विश्व भर में कमोडिटी बाज़ार, मांग और आपूर्ति के संतुलन पर काम करते हैं; दोनों में से किसी में मामूली परिवर्तन भी कीमतों में तीव्र वृद्धि या गिरावट का कारण बन सकता है। प्राकृतिक गैस के लिये यूरोप की मांग में अचानक आई वृद्धि ने तरलीकृत प्राकृतिक गैस (Liquefied Natural Gas- LNG)—जिस रूप में वैश्विक स्तर पर गैस का कारोबार होता है, के मूल्यों में वृद्धि कर दी है।
‘ऑस्ट्रेलियन कम्पटीशन एंड कंज़्यूमर कमीशन’ द्वारा प्रकाशित LNG मूल्य, दीर्घकालिक औसत की तुलना में वर्तमान (जनवरी 2022) में लगभग चार गुना अधिक है। उल्लेखनीय है कि ऑस्ट्रेलिया विश्व के प्रमुख LNG निर्यातकों में से एक है।
नवीकरणीय ऊर्जा के लाभ
- संवहनीय: नवीकरणीय स्रोतों से उत्पन्न ऊर्जा स्वच्छ एवं हरित और अधिक संवहनीय होती है।
- रोज़गार के अवसर: नई प्रौद्योगिकी को शामिल करने का स्पष्ट अर्थ है देश की कामकाजी आबादी के लिये रोज़गार के अधिक अवसर उपलब्ध होंगे।
- बाज़ार आश्वासन: अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से नवीकरणीय स्रोत बाज़ार और राजस्व आश्वासन प्रदान करते हैं, जो आश्वासन किसी अन्य संसाधन से प्राप्त नहीं होते।
- अक्षय स्रोत: सौर, पवन, भू-तापीय ऊर्जा स्रोत जैसे ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत प्रकृति में ‘शाश्वत एवं अक्षय’ (Perpetual and Non-Exhaustive) हैं।
हरित ऊर्जा अपनाने से संबद्ध समस्याएँ
- गरीब देशों के लिये अधिक चुनौतियाँ: उस परिदृश्य की कल्पना करें जब नवीकरणीय ऊर्जा समग्र उद्देश्य की पूर्ति में अक्षम हो और अमीर अर्थव्यवस्थाएँ इस कमी को पूरा करने हेतु गैस खरीद के लिये छीना-झपटी शुरू कर दें।
- उदाहरण के लिये ब्रिटेन, स्पेन और जर्मनी जैसे देश बिजली की कमी को पूरा करने के लिये प्राकृतिक गैस पर अधिक निर्भर हैं, जिसके कारण इनकी कीमतों में वृद्धि हुई है।
- गरीब देशों के लिये बढ़ी हुई कीमतों को वहन करने में सक्षम होना कठिन होगा।
- पारंपरिक ईंधन का महत्त्व:
- प्राकृतिक गैस का उपयोग यूरिया के उत्पादन के लिये किया जाता है, इसलिये यदि गैस की कीमतें बढ़ती हैं तो उर्वरक भी महँगा हो जाता है। महँगे उर्वरक का अर्थ होगा अधिक महँगे खाद्य पदार्थ, जो गरीबों को व्यापक रूप से प्रभावित करेगा।
- महँगे उर्वरक का प्रभाव कुछ माह बाद महसूस किया जाएगा, क्योंकि महँगे उर्वरक एवं निम्न उपज से खाद्य कीमतों में वृद्धि होगी।
- भारत इससे अपेक्षाकृत कम प्रभावित होगा, क्योंकि देश के ऊर्जा मिश्रण में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी कम है, लेकिन खाद्य पदार्थों की ऊँची कीमतों के कारण फिर भी इसे समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
- खाद्य मुद्रास्फीति ऐसे समय उत्पन्न होगी जब जारी महामारी ने दुनिया भर में निम्न आय समूहों के लोगों को व्यापक रूप से प्रभावित किया है।
- कच्चा तेल: वर्ष 2007-08 में, जब तेल की कीमतें अधिक थीं, अमेरिका और यूरोप के नेतृत्व में ‘जैव ईंधन’ का उपयोग करने पर ज़ोर दिया गया था। भूमि को उन फसलों की खेती की ओर मोड़ दिया गया था, जिन्हें इथेनॉल में परिवर्तित किया जा सके और इससे खाद्य फसलों के लिये भूमि क्षेत्र में कमी आई थी।
- वर्ष 2008 के खाद्य मूल्य संकट के प्रभावों को दुनिया भर में, विशेष रूप से गरीबों द्वारा महसूस किया गया था। खाद्य पदार्थों की उच्च कीमत वर्ष 2011 में अरब जगत में राजनीतिक अशांति के प्रमुख कारणों में से एक थी। लीबिया और सीरिया आज भी इसके दुष्परिणामों के शिकार बने हुए हैं।
- इस प्रकार, ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों को बुरा मानने एवं उनका उपयोग बंद करने, जबकि कम भरोसेमंद ‘स्वच्छ’ ऊर्जा की ओर आगे बढ़ने पर अंधाधुंध ज़ोर देने के कई प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं।
- प्राकृतिक गैस का उपयोग यूरिया के उत्पादन के लिये किया जाता है, इसलिये यदि गैस की कीमतें बढ़ती हैं तो उर्वरक भी महँगा हो जाता है। महँगे उर्वरक का अर्थ होगा अधिक महँगे खाद्य पदार्थ, जो गरीबों को व्यापक रूप से प्रभावित करेगा।
- स्थापना लागत की समस्या: स्थापना की उच्च प्रारंभिक लागत नवीकरणीय ऊर्जा के विकास की प्रमुख बाधाओं में से एक है। यद्यपि एक कोयला संयंत्र के विकास के लिये उच्च निवेश की आवश्यकता होती है, ज्ञात है कि पवन एवं सौर ऊर्जा संयंत्रों को भी भारी निवेश की आवश्यकता होती है।
- इसके अलावा, उत्पन्न ऊर्जा की भंडारण प्रणाली महँगी है और मेगावाट उत्पादन के मामले में एक वास्तविक चुनौती का प्रतिनिधित्व करती है।
- रिसोर्स लोकेटर: अधिकांश नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों को, जो अपनी ऊर्जा को ग्रिड के साथ साझा करते हैं, वृहत स्थान या क्षेत्र की आवश्यकता होती है। अधिकांश मामलों में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत स्थान के आधार पर तय होते हैं जो उपयोगकर्त्ताओं के लिये प्रतिकूल हो सकते हैं।
- सर्वप्रथम, कुछ नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्ध ही नहीं हैं। दूसरी बात यह कि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत और ग्रिड के बीच की दूरी लागत और दक्षता के मामले में एक प्रमुख पहलू है।
- इसके अलावा, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत मौसम, जलवायु और भौगोलिक स्थिति पर निर्भर करते हैं, इसलिये इसका अर्थ है कि एक प्रकार की ऊर्जा उत्पादन क्षेत्र के लिये उपयुक्त नहीं है।
आगे की राह
- नीति निर्णयन और कार्यान्वयन में अनावश्यक देरी से बचने के लिये एक ढाँचे का निर्माण किया जाना चाहिये।
- पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के निष्कर्षण, उत्पादन और उपयोग में दक्षता बढ़ाने की आवश्यकता है।
- नवीकरणीय परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये सुदृढ़ वित्तीय उपायों की आवश्यकता है, साथ ही हरित बाॅण्ड, संस्थागत ऋण और स्वच्छ ऊर्जा कोष जैसे अभिनव कदम उठाये जाने चाहिये, जो कि पारंपरिक स्रोतों (कोयला, प्राकृतिक गैस) हेतु निवेश को प्रभावित नहीं करते हों।
- नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में, विशेष रूप से भंडारण प्रौद्योगिकी में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- भारत को एक सौर अपशिष्ट प्रबंधन और विनिर्माण मानक नीति (Solar Waste Management and Manufacturing Standards Policy) की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
मौजूदा संकट भारत के लिये भी सबक है, जो नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों के उपयोग की महत्त्वाकांक्षी योजनाएँ रखता है लेकिन उसे यूरोपीय देशों की तरह वित्तीय सहायता उपलब्ध नहीं है। सस्ते और विश्वसनीय ऊर्जा स्रोतों को तब तक नहीं छोड़ा जाना चाहिये जब तक कि विकल्पों (यानी नवीकरणीय स्रोत) का सही ढंग से परीक्षण न हो जाए।
यदि तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो इससे भारत पर विशेष प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि यह सालाना लगभग 1.4 बिलियन बैरल तेल का आयात करता है। लेकिन नए तेल और गैस भंडार के विकास में ताज़ा निवेश का स्तर वैश्विक स्तर पर मंद हो रहा है, जिसका एक कारण जलवायु कार्रवाई है और इसके कारण कच्चे तेल की कीमत बहु-वर्षीय उच्च स्तर पर है।
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