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आइये शुरू से समझते हैं…छात्र आंदोलन!

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

रेलबे 2019 में ntpc के माध्यम से लगभग 35000 (+ ग्रुप D के लिए लगभग सवा लाख) पदों के लिए आवेदन मंगाता है। 2021 में परीक्षा होती है और अब रिजल्ट आता है। नियमों के अनुसार सीट से 20 गुना अधिक अभ्यर्थियों का रिजल्ट देना है। रिजल्ट में 5 लेवल बनाये जाते हैं। अब कुछ लड़कों का नाम पांचों लेवल की लिस्ट में है, कुछ का 4 लेवल में, कुछ का तीन लेवल में… इस तरह एक ही छात्र का कई बार नाम गिन कर संख्या पूरी कर दी जाती है, जबकि वास्तव में आवश्यक संख्या से लगभग दो तिहाई छात्रों को ही पास किया गया है।

छात्र इसका विरोध करते हैं। छात्रों की मांगें हैं कि रिजल्ट में इस तरह की गड़बड़ी न हो और सही तरीके से रिजल्ट जारी किया जाय। इसी मांग के साथ खान सर और अन्य अनेक शिक्षक आंदोलन की बात करते हैं। पहले ट्विटर पर कैम्पेन चलाया जाता है और लगभग नब्बे लाख ट्वीट हो जाते हैं। पर सरकार बात नहीं सुनती।
अब सारे शिक्षक छात्रों को सड़क पर उतर कर अपनी मांग रखने को प्रेरित करते हैं। बकवास नियुक्ति प्रक्रिया की उलूल जुलूल नियमों से तंग आ चुके लड़के अपनी मांगों को लेकर सड़क पर उतरते हैं। पटना, गया, मुझफरपुर, आरा… उधर यूपी में प्रयागराज के में भी!

सब ठीक चल रहा होता है, बच्चे शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात कर रहे होते हैं। कोई हिंसा नहीं, कोई आगजनी नहीं…
पर यहीं कहानी में एक ट्विस्ट आता है। अचानक अगियाव का कम्युनिस्ट विधायक मनोज मंजिल आरा में छात्रों से मिलने पहुँचता है। उसके साथ ही पहुँचते हैं सैकड़ों कम्युनिस्ट कार्यकर्ता। केवल आरा में ही नहीं, पटना गया मुजफ्फरपुर सभी जगह… और फिर कुछ ही देर बाद आरा-सासाराम पैसेंजर में आग लगा दी जाती है। कुछ देर बार श्रमजीवी एक्सप्रेस भी धू धू कर जलने लगती है।

उधर प्रयागराज में भी यही होता है। दो राजनैतिक चेहरे बच्चों के बीच घुसते हैं और ट्रेन की पटरी उखाड़ी जाती है। जो आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से छात्रों की मांगों के लिए चल रहा होता है, वह एकाएक राजनैतिक हो जाता है और आग बरस जाती है। समझ रहे हैं? क्या समझे?

अब आगे! प्रशासन एक्टिव होता है और लड़कों पर कठोर और क्रूर कार्यवाही होती है। आग लगाने वाले निकल गए हैं, पर निर्दोष, या डांट डपट कर छोड़ दिये जाने लायक लड़कों को लाठी खानी पड़ती है। उधर रेलबे एक्टिव होता है और लड़कों को ब्लैकलिस्टेड करने की बात होती है। हजारों छात्रों पर केस दर्ज होता है। मतलब साफ है, उनका कैरियर चौपट…

अब असली खेल देखिये! आंदोलन का समर्थन करने वाले राजनैतिक जीव यह नहीं कहते कि छात्रों की मांगे मानी जांय! वे न केस वापस लेने की मांग करते हैं, न ब्लैकलिस्ट न करने की… वे केवल नरेंद्र मोदी मुर्दाबाद और योगी को उखाड़ फेको के नारे लगा रहे हैं। उन्हें छात्रों के भविष्य पर न कोई बात करनी है, न उसकी चिन्ता है। बल्कि जब कोई व्यक्ति आंदोलन में घुसे राजनैतिक आतंकियों की बात करता है, तो वे झट से विरोध करते हुए कहते हैं कि वे सब छात्र ही थे। सोचिये, छात्रों को ट्रेन फूंकने का दोषी कौन घोषित कर रहा है?

ट्रेन जलाने के लिए सैकड़ों लीटर पेट्रोल छात्र लाये होंगे? रेल की पटरी उखाड़ने के हथियार छात्रों के पास होते हैं? नहीं! छात्रों के कंधों पर रख कर हथियार दूसरे चला रहे हैं। हर आग इन राजनैतिक गुंडों ने लगाई है, हर पटरी इन्ही ने उखाड़ी है।

यह सच है कि छात्रों पर चली लाठी गलत थी, क्योंकि असली गुनाहगार अब भी अपने घरों में बैठे हैं। दूसरी बात यह कि छात्रों की कोई मांग नाजायज नहीं है, और अब सरकार भी उनकी बात मान कर दुबारा सही रिजल्ट देने की बात कर रही है। बढ़िया होता कि ट्विटर कैम्पेन के समय ही छात्रों की बात सुन ली गयी होती।
पर आप सोचिये! आगजनी का दोषी कौन? सरकार तो छात्रों के साथ अन्याय कर ही रही थी, पर जो गुंडे अपनी राजनीति के लिए ट्रेन फूँक कर छात्रों को अपराधी बना गए वे क्या छात्रों के हितैषी थे?

भाईसाहब! राजनीति बहुत गन्दी है…
बाकी सरकार से कहेंगे, नियुक्ति की प्रक्रिया सुधारिये हुजूर!.

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