बजट से राहत नहीं तो कोई अतिरिक्त भार भी नहीं,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
यह बजट मोदी सरकार का दसवां और केन्द्र सरकार के मौजूदा कार्यकाल का चौथा बजट था। इस बजट पर पूरे देश की नजरें केन्द्रित थी क्योंकि आम आदमी को इस बजट से ढ़ेर सारी उम्मीदें थी। दरअसल माना जा रहा था कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बजट में आम जनता के लिए राहतों का पिटारा खोला जाएगा लेकिन आमजन को बजट से निराशा ही हाथ लगी है।
हालांकि बजट में रेलवे से लेकर कृषि तथा सड़क-परिवहन से लेकर रक्षा क्षेत्र के लिए कई महत्वपूर्ण घोषणाएं की गई हैं लेकिन आम लोगों के हाथ कुछ खास नहीं आया है। इस बजट में युवाओं के लिए 60 लाख नौकरियों के लिए अवसर तैयार करने का वादा तो किया गया है लेकिन बेरोजगारी तथा महंगाई को लेकर कोई ठोस घोषणा नजर नहीं आती। सत्तारूढ़ दल से जुड़े लोग जहां इसे ‘आत्मनिर्भर भारत का बजट’ करार दे रहे हैं और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने केन्द्रीय बजट को अमृत काल के अगले 25 वर्षों का ब्लू प्रिंट बताया है, वहीं समूचा विपक्ष आम बजट की आलोचना करते हुए इसे बेहद निराशाजनक और शून्य बजट करार दे रहा है। हालांकि कुछ आर्थिक जानकारों का यही मानना है कुल मिलाकर यह एक संतुलित बजट है।
इस बार के बजट से लोगों की उम्मीदें इसलिए भी ज्यादा थी क्योंकि पांच राज्यों में चुनावी प्रक्रिया शुरू हो रही है और इसलिए माना जा रहा था कि बजट पर कहीं न कहीं चुनावी छाप अवश्य दिखाई देगी लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ नहीं हुआ। दरअसल गत वर्ष पश्चिम बंगाल सहित पांच राज्यों के चुनावों से पहले पेश बजट में कई बड़ी-बड़ी परियोजनाओं की घोषणा हुई थी।
वैसे जानकारों का मानना है कि चूंकि विगत डेढ़ दशकों में बजट पेश करने के बाद कुल 42 बार राज्यों के चुनाव हुए लेकिन हर बार सत्तारूढ़ दल को बजट में लोकलुभावन घोषणाएं करने के बाद भी चुनावों में उसका लाभ नहीं मिला। संभवतः इसी को देखते हुए इस बार के बजट में आसन्न विधानसभा चुनावों की छाया नहीं दिखाई दी। पिछले 15 वर्षों में बजट के बाद उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, पुडुचेरी, मणिपुर, गोवा, उड़ीसा, सिक्क्मि, अरुणाचल प्रदेश इत्यादि राज्यों में चुनाव हुए लेकिन उनमें से मात्र 13 चुनावों में ही सत्तारूढ़ दल को बजट की घोषणाओं का लाभ मिला
जबकि 11 बार चुनाव पर बजट का कोई असर ही नहीं दिखा और 18 चुनावों में तो बजटीय घोषणाओं के बावजूद सत्तारूढ़ दल को नुकसान झेलना पड़ा। उन 18 चुनावों में से 15 बार कांग्रेस को और 3 बार भाजपा को नुकसान भुगतना पड़ा। इसी प्रकार जिन 13 चुनावों में सत्तारूढ़ दल को लाभ मिला, उनमें 9 बार भाजपा को और 4 बार कांग्रेस को बजट में लोकलुभावन घोषणाओं का लाभ मिला।
बजट पेश होने के बाद कुछ सामान महंगा हो जाएगा तो कुछ सस्ता भी होगा। प्रस्तावित आयात शुल्क में वृद्धि से कई चीजें महंगी होने से उसका सीधा असर आम जनता की जेब पर पड़ेगा। महंगे होने वालों सामानों में विदेशी छाता, कैपिटल गुड्स, बिना ब्लेंडिंग वाले फ्यूल, स्मार्ट मीटर, कृत्रिम आभूषण, सौर सेल, सौर मॉड्यूल, हेडफोन, ईयरफोन, लाउडस्पीकर, एक्स-रे मशीन, इलैक्ट्रॉनिक खिलौनों के पुर्जे इत्यादि कई वस्तुएं शामिल हैं।
सस्ता होने वाले सामान में विदेश से आने वाली मशीनें, कपड़ा, चमड़े का सामान, जूते-चप्पल, मोबाइल फोन चार्जर, मोबाइल फोन के लिए कैमरा लेंस, हीरे के आभूषण, पैकेजिंग के डिब्बे, कोको बीन्स, मिथाइल अल्कोहल, एसिटिक एसिड, खेती के सामान सस्ते होंगे।
कटे और पॉलिश हीरे तथा रत्नों पर कस्टम ड्यूटी घटाकर पांच फीसदी की जाएगी। बजट में पहली बार बैंकिंग पोस्ट ऑफिस में डिजिटल सेवाओं, डिजिटल करेंसी, डिजिटल एजुकेशन, ई-पासपोर्ट, पेपरलेस ई-बिल, किसानों के लिए डिजिटल सेवाएं, रेलवे में ‘एक स्टेशन-एक उत्पाद’ अवधारणा, गंगा नदी के किनारे पांच किलोमीटर चौड़े कॉरीडोर में स्थित किसानों की भूमि पर विशेष ध्यान, नेशनल टेलीमेंटल हैल्थ प्रोग्राम, नेशनल डिजिटल हैल्थ इको-सिस्टम, 5जी मोबाइल सेवाएं, राष्ट्रीय रोपवे विकास कार्यक्रम, शहरों में ई वाहनों के लिए चार्जिंग सेंटर, ग्रामीण इलाकों में सस्ती ब्रॉडबैंड सेवा जैसी कई महत्वपूर्ण सेवाओं का जिक्र हुआ है।
आने वाले समय में करीब 25 हजार किलोमीटर का हाईवे तैयार करने और आगामी तीन वर्षों में 400 नई वंदेभारत ट्रेनें तैयार करने की घोषणाएं भी बजट में हुई हैं।
आम बजट में सरकार द्वारा 7.5 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय का प्रावधान किया गया है, जो आगामी वित्त वर्ष में जीडीपी का 2.9 फीसदी होगा। बजट में वित्त वर्ष 2022-23 में आर्थिक विकास 9.2 फीसदी रहने की उम्मीद जताई गई है। निवेश को बढ़ावा देने के लिए वित्त वर्ष में राज्यों को एक लाख करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता देने और राज्यों को 2022-23 में चार फीसदी तक राजकोषीय घाटे की अनुमति की बात कही गई है।
बजट में वित्त वर्ष 2022-23 में कुल खर्च 39.45 ट्रिलियन रुपये होने तथा राजस्व घाटा जीडीपी का 6.4 फीसदी रहने का अनुमान है। 2021-22 में संशोधित राजस्व घाटा जीडीपी का 6.9 फीसदी बताया गया है और 2025-26 तक राजस्व घाटा जीडीपी के 4.5 फीसदी तक पहुंचने की बात कही गई है। इस बार सरकार द्वारा शिक्षा क्षेत्र के लिए 104278 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो पिछले बजट के मुकाबले 11.86 फीसदी ज्यादा है। इसी प्रकार खेल बजट में 3062.6 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो पिछले बजट के मुकाबले 305.58 करोड़ रुपये अधिक हैं।
वैसे उम्मीद की जा रही थी कि सरकार देश में गहरी होती आर्थिक असमानता की खाई को कम करने के लिए कुछ ठोस कदम उठाएगी लेकिन इस दिशा में निराशा ही हाथ लगी है। एक ओर जहां बजट से मध्यम वर्ग पूरी तरह मायूस हुआ है, वहीं कॉरपोरेट सेक्टर को राहत प्रदान की गई है। लंबे समय से टैक्स स्लैब में बदलाव की मांग की जा रही है लेकिन इसके विपरीत सरकार द्वारा कॉरपोरेट टैक्स को 18 फीसदी से घटाकर 15 फीसदी करने की घोषणा की गई है।
हालांकि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं और धान की खरीद के लिए सरकार द्वारा 2.37 लाख करोड़ रुपये भुगतान करने की भी घोषणा हुई है। रक्षा क्षेत्र के लिए 525166 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो पिछले वित्त वर्ष में रक्षा बजट के लिए आवंटित हुए 478196 करोड़ के आवंटन से करीब 10 फीसदी ज्यादा है। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत योजना को बढ़ावा देने के लिए कुल रक्षा खरीद बजट में से 68 फीसदी को घरेलू बाजार से खरीदने पर खर्च किया जाएगा,
जिससे रक्षा उपकरणों के आयात पर निर्भता कम होगी। यह पिछले वित्त वर्ष से 58 फीसदी ज्यादा है और इससे सीधे तौर पर घरेलू रक्षा कम्पनियों को फायदा मिलेगा तथा रक्षा आयात बिलों में भारी कमी के साथ-साथ घरेलू बाजार में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। बजट में डिजिटल करेंसी, डाकघरों को कोर बैंकिंग से जोड़ने, विदेश यात्रा सुगम बनाने के लिए ई-पासपोर्ट सेवा शुरू करने जैसी कई महत्वपूर्ण घोषणाएं की गई है।
डिजिटल करंसी (क्रिप्टोकरंसी) से आय पर 30 फीसदी टैक्स लगाया गया है। वित्तमंत्री के मुताबिक डिजिटल इकॉनोमी तथा करेंसी मैनेजमेंट को बेहतर करने के लिए आरबीआई भारत की अपनी ‘डिजिटल करेंसी’ (ब्लॉकचेन डिजिटल रुपया) जारी करेगा, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को काफी बढ़ावा मिलेगा और डिजिटल वित्तीय क्षेत्र में स्थिति मजबूत होगी।
बहरहाल, चुनावी वर्ष होने के चलते कयास लगाए जा रहे थे कि महंगाई और बेरोजगारी से बुरी तरह त्रस्त आम आदमी को लेकर सरकार कुछ बड़ी राहतों का ऐलान करेगी लेकिन बजट में ऐसा कहीं कुछ नहीं दिखा। आम उम्मीद टकटकी लगाए इंतजार कर रहा था कि बजट में सरकार नौकरीपेशा लोगों को कुछ राहत देने के साथ-साथ किसानों की नाराजगी को दूर करने के लिए लोकलुभावन योजनाएं ला सकती है, किसान सम्मान निधि की राशि दोगुना कर सकती है, युवाओं के लिए कुछ आकर्षक योजनाओं की घोषणा कर सकती है लेकिन हर वर्ग को निराशा ही हाथ लगी है।
बजट के प्रावधानों को देखें तो किसानों की आय बढ़ाने की लिए कोई गेमचेंजर योजना नहीं है और 2022 तक किसानों की आय दोगुनी होना बहुत दूर की कौड़ी लगती है। सबसे बड़ा झटका मध्यम वर्ग को लगा है, जिसकी आयकर स्लैब में बदलाव की बहुप्रतीक्षित मांग को पूरी तरह नकार दिया गया है। कुल मिलाकर देखा जाए तो केन्द्रीय बजट में सरकार का फोकस बुनियादी संरचना पर निवेश बढ़ाने को लेकर रहा है।
हालांकि लोगों को सीधे तौर पर कोई राहत नहीं दी गई है लेकिन उन पर कोई अतिरिक्त भार भी नहीं लादा गया है। आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक बजट में भले ही मध्यम वर्ग को अपने लिए कुछ मिलता नहीं दिख रहा हो लेकिन अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए यह ठीक-ठाक बजट साबित हो सकता है।
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