जीवन का सही दर्शन है वसंत,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
वसंत वास्तव में यात्रा है ठिठुरन से ऊर्जा की, पतझड़ से सृजन की और कमजोर शिराओं में शक्ति संचार की। वसंत का वसंत हो जाना आसान नहीं है। नवलेखन चाहे प्रकृति का हो या स्वभाव का, शुरू तो उधेडऩे की प्रक्रिया से ही होता है, इसके बाद बुनना बन पाता है..।
वसंत का आ जाना मतलब हर दृष्टि का सुनहरा, समृद्ध और प्रफुल्लित हो जाना ही तो है। ऋतुराज वसंत स्वभाव की खिलखिलाहट ऐसे गुंजायमान करते हैैं कि समूचा जीवन ध्वनित हो संपूर्ण हो जाता है। फ्लैश बैक में चलिए तो हर व्यक्ति उन यादों को समेटे है, जो हौले से गुदगुदा जाती हैैं। कहीं कालेज की तो कहीं पारिवारिक समारोहों में तो कहीं बाजारों में टकराई छवियों की।
गांवों का वसंत : रजाई की दुबकन से निकली दिनचर्या चमकती धूप में इठलाती है और खेतों की पीली चादर हर मन को हल्की कर जाती है। शहरों से इतर गांव का वसंत अनुगामी बनाता है। बगल वाली चाची की वसंत सुहाग की पूजा शुरू होते ही नई बहुएं भी तेजी से बढ़ती हैैं और देखते-देखते पूरे गांव में पीली साडिय़ों में लिपटी स्त्रियां यूं दमकती हैं मानो स्वर्ण कणियां बिखर गई हों।
वहीं अटरियों पर मौन प्रेम भी धीरे से अंगुली की छुअन मात्र से शरमाकर रक्ताभ हो रहा होता है। पेड़ों पर पत्तियां तो यूं लगती हैैं जैसे देवताओं ने डाक भेजी हो। बुजुर्ग हड्डियां भी गर्माहट पा ऊर्जावान हो ही जाती हैैं।
वसंत का शहर आना : वसंत का मतलब यलो थीम से बंधा जीवन आधुनिकता का संदेश तो देता ही है साथ ही हम जड़ों से बंधे हैैं यह भी सकारात्मकता आती है। यूं तो शहरी दुनिया पहियों पर ही रहती है, पर फ्यूजन से तस्वीर बदल दी है। आज के शहर परंपराओं को पुष्पित और संचित करते हैैं।
आधुनिक हैैं, पर यह सुखद है कि विद्यालयों में मां सरस्वती का आशीष उसी भावों से मिलता है, जैसे दशकों पहले मिला करता था। युवाओं का धर्म के प्रति सम्मुख होना पुरानी पीढिय़ों को आश्वस्त करता है। आज इवेंट मैैनेजमेंट क्लबों में, गेटेड कम्युनिटीज के साथ पाश कालोनियों में भी वसंत पूरे समर्पण, निष्ठा और सौंदर्यपरक हो मनाते हैैं।
किसान का वसंत : देश की धुरी किसान और खेती ही है। अर्थव्यवस्था का सुकून हमारे खेतों में ही उगता है। वसंत ऋतु पर पकी सरसों को काटना और तमाम फसलों को रोपना हर किसान का वह सपना होता है जिसे वह पूरे वर्ष देखता है। विभिन्न फसलों को बोते या रोपते समय वह अपने जीवन को भी रोप रहा होता है, जो कुछ माह बाद उसकी गृहस्थी चलाएंगे। खेतों पर पसरी पीली चादर ज्ञान व बौद्धिकता के साथ जनमानस में व्यवहारिक कौशल को भी सहेजती है। ग्राम्य जीवन में वसंत किसान के कारण प्रमुख हो जाता है। गेंदे के फूल और ट्यूबवेल से निकली कल-कल धारा भाव बिस्मित करती है और समूची सृष्टि एक साथ कहती है किसान वसंती हो।
देसी वैलेंटाइन है वसंत : प्रेम के देव कामदेव और उनकी पत्नी रति की लीलाएं और क्रीड़ाएं सृजन के लिए आतुर हो उठती हैैं। वसंत कामदेव के मित्र हैैं। इसलिए कामदेव का धनुष फूलों का और बिना ध्वनि का होता है। यही वजह है कि ठंडाए मौसम का मिजाज तक प्रेमी युगल की भांति मंद-मंद मुस्कुराता है और सांसारिक विधाओं की निपुणता लिए आगे बढ़ जाता है।
वसंत के संदर्भ में वरिष्ठ स्त्रीरोग विशेषज्ञा डा. किरन पांडेय कहती हैैं, शारीरिक अवस्था पर हर ऋतु का बहुत प्रभाव पड़ता है। वसंत शुरू होते ही शरीर हार्मोनल बैलेंस स्वत: करता है साथ ही इस दौरान प्रजनन क्षमता भी तीव्र होती है। शायद यही कारण है कि शादी-ब्याह के लिए भी वसंत सर्वाधिक अनुकूल होता है और यह जीवन और परिवार को विस्तार देता है।
मन प्रफुल्लित कर देता है वसंत : वसंत ऋतु दिमाग में तमाम तरह के हैप्पी हार्मोन को रिलीज करती है। इस दौरान डिप्रेशन, एंग्जाइटी और अन्य मानसिक समस्याएं जल्दी ठीक होती हैैं। बेवजह के मूड स्विंग्स पर काबू रहता है साथ ही सकारात्मक रवैया हमारे अंदर समायोजन और संयोजन की क्षमता बढ़ाता है।
यह वो समयकाल है जहां हमारी प्रतिदिन की दिनचर्या री-सेट होती है और मानव मन भी बहुत आतुर रहता है काफी कुछ नया करने के लिए। प्रोफेशनल दृष्टिकोण से देखें तो फरवरी, मार्च का महीना जाब मूवमेंट, ज्वाइनिंग, प्रमोशन, बजटिंग और प्लानिंग के लिए सबसे उपयुक्त होता है। बस, थोड़ा सा ध्यान दीजिए और वसंत को ज्ञानोत्तर विकास में निवेशित कीजिए।
व्यवहारिक जीवन में वसंत का महत्व
-धर्म के अनुसार यह आराधना काल है, जहां आप सरस्वती की साधक बनें। पठन-पाठन और लेखन को वसंत ऋतु साध्य बना देती है।
-अध्यात्म के अनुसार सूर्य के उत्तरायण होते ही हम उत्सवधर्मी हो जाते हैैं। संक्रांति से वसंत के मध्य के काल में प्रकृति हमें प्रेरणा देती है- नई बातों को सीखने और पुरानी बातों को तजने की।
-अर्थशास्त्र के अनुसार वसंत काल आर्थिक योजनाओं के लिए भी सबसे उपयुक्त होता है, क्योंकि यही वो समय होता है जब अर्थ चक्र विराम के बाद पुन: शुरू होता है। इस दौरान इनवेस्टमेंट प्लान कीजिए।
-विज्ञान के अनुसार शीतल पृथ्वी की अग्नि ज्वाला, मनुष्य के अंत:करण की अग्नि और सूर्य देव की अग्नि के संतुलन का यह समय होता है। अत: स्वयं को संतुलित कीजिए।
-आयुर्वेद के अनुसार शीत ऋतु में प्रकोपित कफ इस समय वमन को आतुर होता है। ऐसे में खिचड़ी और केसर का उपयोग मानव शरीर को समावेशित कर सुदृढ़ बना देता है।
ये भी करें
– दान और स्वाभिमान का बैलेंस करें। प्रत्येक त्योहार मिल बांटकर खाने को प्रेरित करता है। अत: दान करें, पर जिसे दे रहे हैैं उसका स्वाभिमान आहत न हो, यह जरूर ध्यान रखें।
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