क्यों मनाई जाती है बसंत पंचमी?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बसंत पंचमी की कथा इस पृथ्वी के आरंभ काल से जुड़ी हुई है। भगवान विष्णु के कहने पर ब्रह्मा ने इस सृष्टि की रचना की थी। तभी ब्रह्मा ने मनुष्य और समस्त तत्वों जैसे- हवा, पानी, पेड़-पौधे, जीव-जंतु इत्यादि को बनाया था। लेकिन संपूर्ण रचना के बाद भी ब्रह्मा अपनी रचनाओं से संतुष्ट नहीं हुए।

उन्हें अपने रचयिता संसार में कुछ कमी का आभास हो रहा था। इस कमी को पूरा करने के लिए ब्रह्मा ने अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। जल छिड़कने के बाद ही वहां पर एक स्त्री रुपी दिव्य शक्ति हाथ में वीणा वादक यंत्र और पुस्तक लिए प्रकट हुई। सृष्टि रचयिता ब्रह्मा ने इस देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया।
जैसे ही देवी ने वीणा बजाया वैसे ही मनुष्य को बोलने के लिए आवाज मिली, पानी के बहने पर कुलबुलाहट शुरू हो गई, हवा में सरसराहट उत्पन्न हो गई और पशु-पक्षी अपने स्वरों में चहकने लगे। तभी ब्रह्मा ने इस देवी को सरस्वती, शारदा और भागीरथी नाम से संबोधित किया। वह देवी आज के युग में सरस्वती नाम से पूजी जाती है। सरस्वती को बुद्धिमता की देवी भी माना जाता है।

इसीलिए हम माघ के महीने में शुक्ल पंचमी को सरस्वती के जन्म दिवस के रुप में मनाते हैं और इसी दिन को हम ऋषि पंचमी के नाम से भी जानते हैं. ऋग्वेद में भी सरस्वती के बारे में वर्णन मिलता है. ऋग्वेद में जो उल्लेख मिलता है, उसके अनुसार मां सरस्वती बुद्धि प्रदाता है। उनकी सुख समृद्धि और वैभव अद्भुत निराली है। ऋग्वेद के अनुसार श्रीकृष्ण ने ऋषि पंचमी के दिन सरस्वती मां पर प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन सरस्वती मां की पूजा कलयुग में भी होगी।

बसंत पंचमी माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन से ऋतुओं के राजा बसंत का आगमन होता है। इसके साथ ही इस दिन को मां सरस्वती की जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार बसंत पंचमी के दिन ही मां सरस्वती का जन्म हुआ था। बसंत पंचमी के दिन से ही प्रकृति की सुंदरता में निखार देखने को मिलता है। इस दिन से ही पेड़ों पर से पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और उन पर नए पत्ते आते हैं।

खेतों में सरसों के फूल लहराने लगते हैं। मौसम में मादकता आ जाती है। ऐसे प्यारे मौसम को ही बसंत ऋतु कहा जाता है। वहीं हिंदू पुराणों के अनुसार जब भगवान विष्णु के कहने पर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की तो उन्होंने जीव जंतु और मनुष्यों की रचना की थी। लेकिन ब्रह्मा जी अपनी रचना से संतुष्ट नहीं थे। उन्हें यह बार- बार यह महसूस होता था कि कुछ न कुछ कमीं रह गई है। जिसकी वजह से चारो और मौन छाया हुआ है।

जिसके बाद भगवान विष्णु की अनुमति लेकर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल में से जल छिड़का पृथ्वीं पर जल छिड़कते ही कंपन्न होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति प्रकट हो गई। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था। जिनके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था और अन्य दो हाथों में पुस्तक और माला थी। इसके बाद ब्रह्मा जी ने उनसे वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी सरस्वती ने वीणा बजाई।

जिसके बाद संसार के सभी जीव जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा को भी कोलाहल प्राप्त हो गया, पवन में सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा जी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती का नाम दिया। मां सरस्वती ज्ञान,विद्या और बुद्धि की देवी मानी जाती हैं। इसके साथ ही इन्हें संगीत की देवी भी माना जाता है। यह दिन ज्ञान प्राप्ति के लिए विशेष माना जाता है। इस दिन को अज्ञानता दूर करने का दिन माना जाता है कुछ जगहों पर तो इस दिन बच्चों को पहला अक्षर पढ़ना और लिखान सिखाया जाता है। माना जाता है कि बसंत पंचमी का दिन पढ़ने और लिखने के लिए सबसे शुभ होता है। सभी स्कुलों में इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। मां सरस्वती को सफेद फूल अत्याधिक प्रिय हैं। इसलिए इस दिन विशेष रूप से मां सरस्वती को सफेद फूल और सफेद वस्त्र अर्पित किए जाते हैं।

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