वह वीर सपूत जिसने कर दिया था क्रूर कलेक्टर का अंत,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वर्ष 1905 के बंगभंग विरोधी आंदोलन ने जब स्वदेशी आंदोलन और विदेशी वस्तु बहिष्कार आंदोलन का रूप ग्रहण किया तो यह लहर बंगाल तक सीमित नहीं रही। समूचे देश में विद्रोह की चिंगारियां भड़क उठी थीं। 21 दिसंबर, 1909 को नासिक में हुई कलेक्टर जैक्सन की हत्या इसी विद्रोह की एक मुखर अभिव्यक्ति थी। जब क्रांतिकारियों की गुप्त बैठकों की भनक ब्रिटिश सरकार को लगी तो उसने जैक्सन जैसे क्रूर इंसान को वहां का कलेक्टर नियुक्त कर दिया।

कोई वंदेमातरम का नारा लगाता या देशभक्ति की बात करता, तो उसे जेल में डाल दिया जाता। एक दिन गोल्फ मैदान में विलियम नाम का एक अंग्रेज गोल्फ खेल रहा था। उसकी गेंद एक किसान की बैलगाड़ी के नीचे चली गई। किसान ने गेंद उठाकर विलियम के हाथ में नहीं दी, इस पर विलियम ने उसे इतना पीटा कि वह मर गया। लेकिन जैक्सन ने उसे निर्दोष बताकर दंड से बचा लिया। इससे जैक्सन के विरुद्ध घृणा और असंतोष की आग भड़क उठी।

अनंत लक्ष्मण कान्हरे नामक एक किशोर ने अपने साथी क्रांतिकारियों के साथ मिलकर जैक्सन के जुल्म का अंत करने का संकल्प किया। रत्नागिरी जिले के निवासी अनंत की उम्र उस समय 17 वर्ष की थी। औरंगाबाद के स्कूल में पढ़ते हुए उनके साहसिक कारनामे प्रसिद्ध हो गए थे। जब अनंत ने जैक्सन को खत्म करने का जिम्मा लिया तो वह उसकी योजना बनाकर उस दिशा में सक्रिय हो गये।

कलेक्टर कचहरी के पास खड़े होकर उसने जैक्सन को देखकर अच्छी तरह पहचान लिया। फिर अनंत को पता चला कि 21 दिसंबर को नासिक शहर के विजयानंद थिएटर में ‘शारदा’ नाटक देखने के लिए कलेक्टर जैक्सन आने वाला है। थिएटर में उस दिन नाटक देखने लोग उमड़े हुए थे। हाल खचाखच भर गया।

ठीक नौ बजे थिएटर के बाहर मोटरगाड़ी आकर रुकी। उसमें से जैक्सन अपनी पत्नी के साथ उतरा। थिएटर के अधिकारी स्वागत-सत्कार कर उसे भीतर ले आए। आगे की कुर्सी पर इस मुख्य अतिथि को बैठाया गया। आगे की पंक्ति में पहले से ही अनंत कान्हरे और उनके साथी बैठ गए थे।

अनंत ने जेब से पिस्तौल निकालकर जैक्सन पर गोलियां दाग दीं। उनका वार चूका तो दो तरफ बैठे अनंत के साथियों विनायक नारायण देशपांडे और कृष्ण गोपाल कर्वे ने जैक्सन पर अपनी-अपनी पिस्तौलें खाली कर दीं। जैक्सन वहीं गिर गया। सभी को पकड़ लिया गया। तीनों पर राजद्रोह का मुकदमा चला और फांसी की सजा दी गई। 10 अप्रैल, 1910 को सुबह तीनों ने स्नान किया।

हाथ में श्रीमद्भगवद्गीता लेकर तीनों क्रांतिवीर बड़े शांत भाव से फांसी के तख्ते की ओर बढ़े। फांसी के बाद अनंत की जेब से एक कागज निकला, जिसमें अनंत ने लिखा था, ‘मैंने अपना कर्तव्य पूरा किया। मुझे जैक्सन को मारने का जरा भी अफसोस नहीं है। जो जनता के साथ विश्वासघात करता है, उसे दंड मिलना ही चाहिए। इस दंड की जिम्मेदारी मुझ पर सौंपी गई थी और मैंने पवित्र कर्तव्य समझकर इसे पूरा किया, जिसके लिए मुझे अपने पर गर्व है। भारत माता की बेड़ियों को नृशंसतापूर्वक कसने का अपराध जो भी करे, उस पर जरा भी दया न दिखाएं, यही मेरी जनता से अपील है।’

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