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दहशत में क्यों? बस झुकाव में थोड़ा परिवर्तन बना देगा अधिकारी!

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सीवान, छपरा, गोपालगंज, देवरिया, चंपारण जैसे छोटे शहरों के छात्र अपनी प्रतिभा के साथ कर रहे अन्याय

ये युवा सपनों को देखें और समर्पित प्रयास करें तो कोई भी लक्ष्य नहीं मुश्किल

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

✍️गणेश दत्त पाठक
मोटिवेटर एंड मेंटर
@ PATHAK’S IAS

बिहार में सीवान, छपरा, गोपालगंज, उत्तरप्रदेश के देवरिया,कुशीनगर जैसे छोटे शहरों के छात्र अपनी प्रतिभा के साथ अन्याय कर रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में संपर्क में आए छात्रों के साथ संवाद में मैंने पाया कि बहुतेरे छात्र छोटे- छोटे सपनों के बारे में ही सोच पाते हैं। सिविल सेवा परीक्षा आदि का नाम सुनते ही दहशत में आ जाते हैं और उसे बड़ी परीक्षा मान कर उससे कन्नी काटते दिखते हैं। जबकि महज अपने झुकाव की दिशा में थोड़ा सा परिवर्तन लाकर आसानी से ये छात्र अधिकारी बन सकते हैं।

मोबाइल है अनंत जानकारियों का स्रोत

एक जमाना था जब ज्ञान जानकारी एक सीमित दायरे में ही रहा करती थी। आज एंड्रॉयड मोबाइल फोन हर हाथ में मौजूद है। यह मोबाइल फोन अनंत जानकारियों का स्रोत है। बस आवश्यकता सपनों को देखने और मोबाइल पर गूगल सर्चिंग को एक नई दिशा देने की है।

मोबाइल प्रेरणा का असीम सागर भी

सामान्य तौर पर देखा जा रहा है कि आज के युवा मोबाइल पर ज्यादा समय व्यतीत करते दिखते हैं। मोबाइल पर फालतू चीजों को देखने के बजाय यदि अपने सपनों को पूरा करने के बारे में जानकारियों को सर्च किया जाए, मोटिवेशनल वीडियो को देखा जाए तो सपनों को अमली जामा पहनाना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं होनेवाला है। मोबाइल के माध्यम से जानकारी के साथ प्रेरणा के असीम सागर का भी आनंद लिया जा सकता है।

योग्यता में नहीं कोई कमी

छोटे शहरों में प्रतिभा की कमी नहीं। बस कमी प्रेरणा और प्रोत्साहन की हैं। सामान्यतया देखने में आता है कि छोटे शहरों के अभ्यर्थी बड़ी परीक्षाओं जैसे सिविल सेवा परीक्षा आदि का नाम सुनते ही दहशत में आ जाते हैं जबकि उन्हें इन परीक्षाओं का नाम सुनते ही उत्साह से लबरेज हो जाना चाहिए। छोटे शहरों से अनेक अभ्यर्थियों ने सिविल सेवा परीक्षा में सफलता पाई है। बस आवश्यकता सपनों को देखने और समर्पित प्रयासों पर ध्यान देने की है।

आवश्यकता सपनों को संजोने की

अभ्यर्थी जब सपने देखेंगे, लक्ष्यों का निर्धारण करेंगे तभी अपने प्रयासों को सही दिशा में प्रेरित कर पाएंगे। उन्हें यह समझना चाहिए कि सफलता प्राप्त करनेवाले छात्र किसी अलग दुनिया से नहीं आते अपितु इन्हीं जगहों पर सीमित संसाधनों के बूते सिर्फ जज्बे और हौसले के दाम पर ही अपने प्रयासों को सार्थक अंजाम पर पहुंचा पाते हैं।

लेखन शैली का विकास पहली जरूरत

सिवान आदि छोटे शहरों के छात्रों की सबसे बड़ी चुनौती लेखन शैली का स्तरीय नहीं होना होता है। कारण यह होता है कि लेखनशैली पर ध्यान न तो स्कूल में दिया जाता है न ही कॉलेज स्तर पर। स्नातक की परीक्षा के दौरान विश्वविद्यालय शैली में ज्यादा से ज्यादा लिखने की प्रवृति सिविल सेवा परीक्षा के क्षेत्र में सफलता के लिए बाधा बन जाती है।

प्रतिदिन पढ़िए अखबार, लिखिए कुछ न कुछ

इसलिए छोटे शहरों के छात्रों को नियमित स्तरीय अखबार पढ़ने की आदत डालनी चाहिए तथा प्रतिदिन कुछ न कुछ लिखने का प्रयास करना चाहिए। स्नातक की अवधि के दौरान ही यदि सिविल सेवा परीक्षा में शामिल होने का मन हो तो तैयारी प्रारंभ कर देनी चाहिए।

यहीं तीन चार साल आपके जिंदगी को सुखद बना देंगे

संसाधनों के भरपूर होने का इंतजार न करिए। सीमित संसाधनों में भी आसानी से तैयारी की जा सकती है। संसाधनों का समुचित प्रबंधन और समय का सदुपयोग आपको मंजिल पर पहुंचा देगा। बस आवश्यकता आपको अपने सपनों को देखने और उसे पूरा करने के लिए उत्साह के साथ प्रयास में जुटने की है। ध्यान रखें स्नातक के आस पास का तीन चार साल ही महत्वपूर्ण होता है। यदि आपने इस समय का सदुपयोग कर लिया तो पूरी जिंदगी आपकी सुखमय हो सकती है।

सीवान, छपरा, गोपालगंज, देवरिया,कुशीनगर आदि छोटे शहरों के छात्रों को यह समझना चाहिए कि उनमें योग्यता की कमी नहीं है। बस कमी प्रेरणा, उत्साह के स्तर पर है। अपने सपनों को देखें, अपने झुकाव की दिशा को बदलें, अपने समय के सदुपयोग पर ध्यान दें तो कुछ भी असंभव नहीं है। कोई भी लक्ष्य या सपना बड़ा नहीं है। इसलिए दहशत में न आएं समर्पित प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करें। एक सफल, सुखद, शानदार भविष्य आपका इंतजार कर रहा है.

 

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