कहां मिलता है प्यार और क्या है उसका सही सबक?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
वैलेंटाइन डे प्यार का दिन है और यह जान लेने का भी दिन है कि प्यार सतह पर नहीं बल्कि गहराई में पलता है। जीवन के हर मोड़ पर मिलता है, बशर्ते इस प्यार में न कोई शर्त हो और न ही कोई शिकवा-शिकायत। कोरोना के दौर में हमने प्रेम के असली मायनों को समझा है और इंसान से इंसान के रिश्तों का सच्चा सबक सीखा है।
कठिन मोड़ पर किसी स्वार्थ को ध्यान में रखकर अपने व परायों ने मदद नहीं की, बल्कि जरूरत पड़ी तो आपसी प्यार से हरसंभव हल निकाला। बेहद कठिन स्थितियों में भी हर दिल में बढ़ता रहा प्यार…।
हाथ में हाथ लेकर, जमाने से बेफिक्र होकर एकांत राहों पर टहलने और एक-दूसरे की तारीफ में कसीदे पढ़ने से कहीं ज्यादा बढ़कर है प्रेम। यह स्नेह, आदर, वात्सल्य, आत्मीयता, इंसानियत और आपसी समझदारी की वह प्रस्तुति है जो संबंधों को जीवनभर के लिए प्रगाढ़ बना देती है। कोरोना के कठिन दौर ने हमें प्यार की व्यापक परिभाषा सिखा दी है।
एक-दूसरे को समझना है प्यार
कोविड की दस्तक से चार-पांच महीने पहले ही टेनिस खिलाड़ी रिशिका सुनकारा की शादी हुई थी। ऐसे में जब पहली बार लाकडाउन हुआ तो उन्हें अपने जीवनसाथी के अलावा परिवार के साथ कीमती वक्त बिताने का सुनहरा अवसर मिला। तब उन्होंने जाना कि किन चीजों में वास्तविक खुशी मिलती है। पहले डेट पर जाने, फिल्म देखने आदि के शौक थे उन्हें, लेकिन घर में रहकर एहसास हुआ कि साथ में खाने, टीवी देखने से भी एक-दूसरे के संग खूबसूरत पल बिताए जा सकते हैं।
कहती हैं रिशिका, ‘सच कहूं तो लाकडाउन और कोरोना काल में मैं अपने लाइफ पार्टनर को कहीं बेहतर जान एवं समझ सकी। हमने साथ में बहुत अच्छा समय बिताया। हां, बीच-बीच में थोड़ी बहुत नोक-झोंक भी होती थी, लेकिन इससे भी एक-दूसरे के व्यक्तित्व को जानने-समझने में मदद मिली। कह सकती हूं कि मैंने अपनी भावनाओं को संभालना सीख लिया है।
पति लोहित डाटा साइंटिस्ट हैं और मैं एथलीट। मुझे डाटा साइंस के बारे में कुछ भी पता नहीं था। साथ रहने से उसे भी जानने का मौका मिल गया। हम साथ में स्ट्रेंथ ट्रेनिंग करते भी हैं।’
प्यार ने प्राणवायु का संचार किया
कोरोना में आक्सीजन की कमी जरूर हुई लेकिन अपनों ने जिस प्राणवायु का संचार किया, वह अद्भुत है। जब कोई कोरोना संक्रमित के पास फटकना भी नहीं चाहता था, तब परिवार ने अपने हर सदस्य को बेहद गंभीरता और प्यार से संभाला। साइकोलाजिस्ट व लाइफस्टाइल एक्सपर्ट रचना खन्ना सिंह कहती हैं, ‘कोरोना की पहली लहर से ही हम कहने लगे थे कि अगर हम अपने प्यार करने वालों के साथ हैं तो इस कठिन समय को निकाल देंगे।
इस समय परिवार और नजदीकी दोस्तों का साथ महत्वपूर्ण रहा। लाकडाउन और कोरोना की तीनों लहरों में कोई परिवार ऐसा नहीं है जो मुश्किलों से नहीं गुजर रहा हो, सदमे न झेल रहा हो। लेकिन हम सबने एक-दूसरे का साथ देकर यह समय निकाला। घर का माहौल सकारात्मक रखा। यह सब तो एक-दूसरे की मदद और प्यार से ही संभव हो पाया।’
मुलाकातें कम हुईं, पर प्यार बढ़ा
पिछले कुछ साल ऐसे बीते कि आपस के प्यार को हम मिलकर नहीं जता पाए। कोविड ने हमें आपस में एक-दूसरे से मिलने नहीं दिया। तो क्या हुआ? मुलाकातें बेशक कम हुईं लेकिन प्यार तो बढ़ा ही। बालीवुड सुंदरी ऐश्वर्या राय बच्चन ने जब परिवार के साथ ही तस्वीर शेयर करते हुए संदेश दिया कि वैलेंटाइन सिर्फ प्रेमी जोड़े के लिए नहीं बल्कि परिवार से प्यार दिखाने का भी दिन है तो प्यार के प्रति उनकी भावनाएं समझ आईं।
वैसे कोरोना ने हमें हर चीज से दूर किया लेकिन प्यार से दूर करना इसके बस में नहीं था, बल्कि कोरोना के दौरान घर में प्यार कहीं और अधिक फला-फूला। परिवार के हर सदस्य एक-दूसरे के ज्यादा नजदीक आये। इस दफा भी इन्हीं नजदीकियों को मनाने का दिन आया है यह वैलेंटाइन डे।
प्राथमिकताएं बदलीं प्यार पला
कोरोना के समय आपसी प्यार के चलते लोगों ने परायों तक के लिए अपनी जान खतरे में डाल दी। एचआर प्रोफेशनल कशिश पराशर कहती हैं, ‘हमारे पड़ोस में एक बुजुर्ग दंपत्ति रहते हैं। उनके दोनों बेटे अमेरिका में हैं। जब दोनों को कोरोना हो गया तो उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था और न ही वे किसी से अधिकारस्वरूप कुछ कह सकते थे। ऐसे में पड़ोसियों ने ही उनका खयाल रखा, खाना भिजवाया। बहुत मुश्किल में रहे दोनों।
दूसरी तरफ एक संयुक्त परिवार के कई लोगों को कोराना हुआ तो अन्य सदस्यों में से किसी ने रात के दो बजे अस्पताल में आक्सीजन बेड ढूंढ़ा, तो किसी ने घर में आक्सीजन कंसंट्रेटर की व्यवस्था की। किसी ने दवाइयों का काम संभाला। किसी ने खाने-पीने का। परिवार के लोगों को अलग-अलग अस्पतालों में जगह मिली जिससे काफी भागदौड़ रही। ऐसे में महसूस हुआ कि कोरोना ने हमारे जीवन की प्राथमिकताओं को बेशक बदल दिया है लेकिन अपनों के दिल में प्यार और प्रगाढ़ हुआ है।
परिपक्वता लाती है रिश्ते में प्यार और गहराई
महामारी का दौर मुश्किलों वाला रहा है। निजी से लेकर पेशेवर मोर्चे पर चुनौतियां रही हैं। मुझे खुद काफी संघर्ष करना पड़ा। लेकिन इसी दौरान चमत्कारिक घटनाएं भी हुईं। एक गुजराती टीवी सीरियल का आफर आया। काम तो मिला ही है, साथ में मिला प्यार। मुझे कोरोना हो गया था। जिस कमरे में क्वारंटाइन हुई, वह सीरियल के क्रिएटिव हेड का कमरा था। उन्हें दूसरे कमरे में रहना पड़ा।
लेकिन जिस तरह से उन्होंने मेरी देखभाल की, उससे हम एक-दूसरे के करीब आये। बीते वर्ष ही हमने डेटिंग शुरू की और कुछ महीनों बाद निर्णय लिया कि आगे का जीवन संग-संग गुजारना है। दिलचस्प यह रहा कि धारावाहिक की शुरुआत में जीवनसाथी मिला और उससे रोका होने के बाद ही सीरियल शुरू भी हो गया। उस समय ऐसा लगा मानो कि कुदरत ने हम दोनों को मिलाने के लिए यह सारा खेल रचा था। अभी शादी के दो महीने ही हुए हैं।
लंबा सफर तय करना है। मैं मानती हूं कि जीवन में, रिश्तों में उतार-चढ़ाव आते हैं। लेकिन उम्र बढ़ने के साथ प्यार को देखने-समझने का नजरिया बदल जाता है। हम समझदारी और जिम्मेदारी से रिश्तों को सींचने लगते हैं। एक-दूसरे को स्पेस देने से ही संबंधों में परिपक्वता आती है। वह बांडिंग फिर कहीं अधिक गहरी होती जाती है।
ऐसे में आपसी समझदारी ही रिश्ते की डोर को मजबूती से बांधे रखती है। हम जितना सामने वाले को उसके अनुरूप स्वीकार करते हैं, उतना ही जीवन में संतुलन आता है। प्यार से सींचे गए रिश्ते कभी खोखले नहीं होते। अब जब हमारी दिनचर्या सामान्य हो रही है। सब अपने-अपने कार्यों में व्यस्त होने लगे हैं। बावजूद इसके इससे मुझे कोई शिकायत या बेचैनी नहीं होती कि साथ में कम वक्त मिल रहा है। बल्कि महसूस करती हूं कि हमारे संबंध पहले से कहीं अधिक मजबूत हो गए हैं।
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