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जेलों में भीड़भाड़ की समस्या के संबंध में क्यों चर्चा की गई है? - श्रीनारद मीडिया

जेलों में भीड़भाड़ की समस्या के संबंध में क्यों चर्चा की गई है?

जेलों में भीड़भाड़ की समस्या के संबंध में क्यों चर्चा की गई है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जेलों में भीड़ कम करने को लेकर पिछले कुछ समय से काफी प्रयास किये जा रहे हैं। कोरोना वायरस महामारी के साथ यह आवश्यकता और भी गहन हो गई है।

हाल ही में जारी ‘भारतीय कारागार सांख्यिकी’ (PSI), 2020 ने भारत में ज़ेलों की स्थिति की निराशाजनक तस्वीर पेश की है, जो अत्यधिक भीड़भाड़, मुकदमों की सुनवाई में देरी और कैदियों के लिये उचित चिकित्सा स्वास्थ्य सुविधाओं की अनुपलब्धता जैसी समस्याओं से ग्रस्त हैं।

चूँकि कोविड-19 की संभावित लहरों का खतरा अभी भी बना हुआ है, न्याय प्रणाली द्वारा जेल आबादी को अपनी चपेट में लेने वाले जोखिमों पर गौर करने और तत्काल उपाय करने की गंभीर आवश्यकता है। जेलों में भीड़ को कम करना और कैदियों के जीवन के अधिकार एवं स्वास्थ्य की रक्षा करने वाले उपायों को अपनाना महत्त्वपूर्ण है ।

भारतीय कारागार सांख्यिकी (PSI), 2020

निष्कर्ष

  • हाल ही में जारी भारतीय कारागार सांख्यिकी (PSI), 2020 इस बात की झलक देते हैं कि जेल से भीड़भाड़ कम करने और चिकित्सा सुरक्षा उपाय कितने सफल रहे हैं।
    • ‘भारतीय कारागार सांख्यिकी’ रिपोर्ट राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) द्वारा प्रकाशित की जाती है।
    • वर्ष 2020 की रिपोर्ट में कोई भी कोविड-19 विशिष्ट डेटा संलग्न नहीं है।
  • दिसंबर 2019 से दिसंबर 2020 के बीच जेल आबादी में मामूली कमी आई और यह 120% से घटकर 118% हो गई।
    • महामारी के दौरान वर्ष 2020 में वर्ष 2019 की तुलना में लगभग 900,000 अधिक लोग गिरफ्तार हुए।
    • कुल संख्या में देखें तो दिसंबर 2020 में दिसंबर 2019 की तुलना में 7,124 अधिक लोग जेलों में बंद थे।
  • जेलों में विचाराधीन कैदियों की हिस्सेदारी में वृद्धि अब तक के उच्चतम स्तर पर थी। दिसंबर 2020 में विचाराधीन कैदियों की हिस्सेदारी 76% थी, जबकि दिसंबर 2019 में यह 69% रही थी।
    • विचाराधीन कैदी वे कैदी होते हैं जिन्हें उनके कथित अपराधों के लिये अभी तक दोषी करार नहीं दिया गया है।

PSI 2020 में प्रकट राज्यवार परिदृश्य

  • 17 राज्यों में वर्ष 2019 से वर्ष 2021 के बीच जेल आबादी में औसतन 23% की वृद्धि हुई, जबकि इसके पिछले वर्षों में यह 24% रही थी।
  •  उत्तर प्रदेश, सिक्किम और उत्तराखंड जैसे राज्यों से चिंताजनक आँकड़े प्राप्त हुए हैं, जहाँ दिसंबर 2020 में क्रमशः 177%, 174% और 169% का अधियोग दर (Occupancy Rate) देखा गया।
  • केवल केरल (110% से 83%), पंजाब (103% से 78%), हरियाणा (106% से 95%) कर्नाटक (101% से 98%), अरुणाचल प्रदेश (106% से 76%) और मिज़ोरम (106% से 65%) अपने जेलों में अधियोग को 100% से कम कर सके थे।

सुनवाई के लिये वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग (VC) सुविधा की उपलब्धता और इसकी प्रासंगिकता

  • न्यायालयों के बंद रहने की स्थिति में वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा ने कुछ राहत प्रदान की। वर्ष 2019 में 60% के मुकाबले वर्तमान में 69% जेलों में वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
    • हालाँकि यह सुविधा पूरे देश में एकसमान रूप से वितरित नहीं की गई है।
  • तमिलनाडु, मणिपुर, पश्चिम बंगाल, नगालैंड, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, राजस्थान और लक्षद्वीप जैसे राज्यों में अभी भी 50% से कम जेलों में वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
  • तमिलनाडु (जहाँ 14,000 से अधिक कैदी हैं) की 142 जेलों में से केवल 14 में ही वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा उपलब्ध है।
  • उत्तराखंड, जिसकी सभी जेलों में वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाएँ उपलब्ध हैं, वहाँ विचाराधीन कैदियों की संख्या में वृद्धि जारी है और अधियोग दर 169% है।
  • यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाएँ केवल कानून की इस आवश्यकता की पूर्ति करती हैं कि किसी कैदी को प्रत्येक दो सप्ताह में मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाना चाहिये। इस तकनीकी आवश्यकता की पूर्ति जेलों से भीड़भाड़ कम करने या त्वरित न्याय दिलाने में कोई योगदान नहीं करती।

जेलों में चिकित्साकर्मियों की उपलब्धता की स्थिति

  • जेलों में मेडिकल स्टाफ (रेजिडेंट चिकित्सा अधिकारी/चिकित्सा अधिकारी, फार्मासिस्ट, और लैब तकनीशियन/अटेंडेंट) की भारी कमी बनी हुई है जिससे कैदियों की स्वास्थ्य आवश्यकताओं की पूर्ति में देरी होती है।
  • गोवा में चिकित्साकर्मियों की उच्चतम रिक्ति (84.6%) की स्थिति है; इसके बाद कर्नाटक (67.1%), लद्दाख (66.7%), झारखंड (59.2%), उत्तराखंड (57.6%) और हरियाणा (50.5%) का स्थान है।
    • गोवा में 500 से अधिक कैदियों के लिये केवल 2 चिकित्साकर्मी उपलब्ध हैं, जबकि कर्नाटक में उनका अनुपात 14,308 कैदियों के लिये मात्र 26 है।
    • 90% रिक्ति के साथ उत्तराखंड में 5,969 कैदियों के लिये केवल एक चिकित्सा अधिकारी उपलब्ध है। झारखंड का रिक्ति स्तर 77.1% है।
  • 15 राज्यों में उपलब्ध चिकित्साकर्मियों की संख्या में वर्ष 2019-20 में कमी आई जबकि कैदियों की आबादी में लगभग 10,000 की वृद्धि हुई।
  • चिकित्सा अधिकारी रिक्तियों में राष्ट्रीय स्तर पर लगभग 34% की कमी बनी हुई है। मिज़ोरम में कोई चिकित्सा अधिकारी उपलब्ध नहीं था।
  • केवल अरुणाचल प्रदेश और मेघालय प्रत्येक 300 कैदियों पर कम-से-कम एक चिकित्सा अधिकारी की उपलब्धता के बेंचमार्क को पूरा कर रहे थे।

आगे की राह

  • संरचनात्मक कमियों को संबोधित करना: उच्चतम न्यायालय के निर्देशों और जेल प्रशासन के प्रयासों की सराहना करनी होगी लेकिन इसके साथ ही जेलों की संरचनात्मक कमियों को दूर करना भी महत्त्वपूर्ण है, अन्यथा जेलें ऐसी जगह बनी रहेंगी जहाँ निर्दोष लोग अनुचित समय तक बंद रहते हैं और अनुचित एवं अस्वीकार्य स्वास्थ्य एवं सुरक्षा जोखिमों का सामना करने को बाध्य होते हैं।
  • जेलों को सुधारात्मक संस्थाएँ बनाना: जेलों को पुनर्वास केंद्रों और “सुधारात्मक संस्थानों” (Correctional Institutions) में परिणत करने के आदर्श नीतिगत उपायों की पूर्ति तब होगी जब बेहद कम बजटीय आवंटन, उच्च कार्यभार और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के संदर्भ में पुलिस की लापरवाही जैसे मुद्दों को संबोधित किया जाएगा।
  • जेल सुधार के लिये अनुशंसा: सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अमिताभ रॉय समिति की नियुक्ति की थी जिसने जेलों में भीड़भाड़ की समस्या को दूर करने के लिये निम्नलिखित अनुशंसाएँ की थीं:
    • भीड़भाड़ की अवांछित स्थिति को दूर करने के लिये त्वरित सुनवाई (Speedy Trial) सर्वोत्तम उपायों में से एक है।
    • वर्तमान स्थिति से अलग प्रत्येक 30 कैदियों के लिये कम-से-कम एक वकील की उपलब्धता होनी चाहिये।
    • पाँच वर्ष से अधिक समय से लंबित छोटे-मोटे अपराधों के मामलों से विशेष रूप से निपटने के लिये विशेष फास्ट-ट्रैक अदालतें स्थापित की जानी चाहिये।
    • उन मामलों में स्थगन (Adjournment) नहीं दिया जाना चाहिये जहाँ गवाह मौजूद हैं।
    • ‘प्ली बारगेनिंग’ (Plea Bargaining) की अवधारणा को बढ़ावा दिया जाना चाहिये, जहाँ अभियुक्त कम सज़ा के साथ अपराध स्वीकारोक्ति के लिये प्रस्तुत होता है।
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