दो विपरीत लिंगों के बीच में दैहिक आकर्षण, सुख के लिए स्थापित समझौता प्रेम तो बिल्कुल नहीं है
आलेख ‘- दुर्गेश कुमार, आरा
श्रीनारद मीडिया,सेंट्रल डेस्क:
मसला प्रेम का हो। प्रेम किससे किया जाय, क्यों किया जाय, प्रेम क्या है? प्रेम करने की उम्र क्या है? प्रेम कब कम हो जाता है? प्रेम कब ख़त्म हो जाता है? इन प्रश्नों का उत्तर जानते हैं तो सूचित कीजिएगा।
दो विपरीत लिंगों के बीच में दैहिक आकर्षण, सुख के लिए स्थापित समझौता प्रेम तो बिल्कुल नहीं है।
हार्मोन्स में बदलाव के बाद किसी के प्रति आकर्षण होना प्रेम तो हरगिज नहीं है। यदि जरुरतों के हिसाब से शादी विवाह, लिव इन जैसा समझौते को लोग प्रेम समझ बैठें तो यह मन का भ्रम है।
हमारे समाज में स्त्री का बाल पकते ही उसे प्रेम करने के अयोग्य मान लिया जाता है। दो वृद्ध पति पत्नी को आपस में प्रेम करने पर हिकारत की नजर से देखा जाता है।
जबकि प्रेम तो समर्पण का नाम है। जहां समर्पण नहीं हो वह प्रेम नहीं है। प्रेम किसी के प्रति भी हो सकता है.. यथा किसी स्त्री के प्रति, किसी लक्ष्य के प्रति, किसी मिशन के प्रति। जहां समझौता हो, वह प्रेम नहीं। हमारे समाज में समझौता ही प्रचलन में है। प्रेम पर तो पहरा है।
आप बेपनाह प्रेम करिए.. किसी के गुणों से, किसी की सूरत से.. कौन रोकता है। प्रेम में समर्पण होता है। प्रेम में समर्पण आदर का भाव जगाता है।
हमारे समाज में अधिकांश स्त्री पुरुषों का प्रेम दिखावा होता है। सुख सुविधाओं के लिए समझौता होता है.. परंपराओं का निर्वहन होता है। कड़वा है, मगर सत्य है।
दुर्गेश कुमार, आरा
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