कर्म के प्रति श्रद्धाभाव ही हो सकती है संत रविदास के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि: गणेश दत्त पाठक
पाठक आईएएस संस्थान में जयंती पर संत शिरोमणि संत रविदास को श्रद्धा सुमन किया गया अर्पित
श्रीनाराद मीडिया, सीवान (बिहार):
सिवान। संत शिरोमणि संत रविदास भक्ति आंदोलन के दौर में मानवता, स्वच्छता, कर्म के प्रति श्रद्धाभाव रखने का शाश्वत संदेश देते रहे। मध्ययुग में जब मानवता अत्याचार, उत्पीड़न से त्राहिमाम कर रही थी, तब उन्होंने आध्यात्मिक संबल देकर यह बताया कि सभी इंसान परम् पिता की संतान हैं। फिर कैसा द्वेष? कैसा विद्वेष? उन्होंने जातिगत भेदभाव पर अपने काव्य कौशल से करारा प्रहार किया। संत कबीर के समकालीन संत रविदास ने हर कर्म को ईश्वर की आराधना का स्वरूप बताया।
संत रविदास सभी को कर्म के आधार पर ही सम्मान देने के हिमायती थे, न कि पद या जन्म के आधार पर। अपने कर्म के प्रति श्रद्धा भाव रखना ही संत शिरोमणि रविदास के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है। ये बातें पाठक आईएएस संस्थान में जयंती के अवसर पर संत शिरोमणि रविदास को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए शिक्षाविद् श्री गणेश दत्त पाठक ने कही। इस अवसर पर एक परिचर्चा का आयोजन भी किया गया, जिसमें संस्थान से जुड़े अभ्यर्थियों ने सहभागिता निभाई।
परिचर्चा को संबोधित करते हुए श्री पाठक ने कहा कि संत शिरोमणि योग्यता और गुण को ही प्राथमिकता देने की वकालत करते थे। संत शिरोमणि ने केवल पद पर बैठे व्यक्ति को पूजनीय नहीं माना। उनका मानना था कि पूजनीय वहीं हो सकता है, जिसके अंदर पूजने लायक गुण हो। श्री पाठक ने कहा कि संत शिरोमणि ने अपने रूहानी आवाज में गाए गीतों से मानवता, समरसता और संवेदना का संदेश दिया।
परिचर्चा में भाग लेते हुए अभ्यर्थी मनोज यादव ने कहा कि ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ की उक्ति के माध्यम से संत रविदास ने मन की निर्मलता को बेहद जरूरी बताया। अभ्यर्थी रागिनी कुमारी ने कहा कि संत रविदास ने सामाजिक भाईचारे के प्रति लोगों को प्रेरित कर मध्ययुगीन त्रासदी से राहत का संदेश दिया।
अभ्यर्थी मीरा कुमारी ने कहा कि संत रविदास का स्वच्छता का संदेश आज के दौर में भी बेहद प्रासंगिक है। अभ्यर्थी अनुज प्रकाश ने कहा कि संत रविदास ने समाज को मध्ययुगीन उत्पीड़न के दौर में अपने काव्य प्रतिभा से मानवता की महान सेवा की।
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