पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊपन तथा सहजता का उत्कृष्ट मिश्रण है इन्द्राना ग्राम.

पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊपन तथा सहजता का उत्कृष्ट मिश्रण है इन्द्राना ग्राम.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

प्रलय आने के ठीक पहले मुनियों ने सभी प्रकार के बीजों का एक नाव में संग्रह किया था और उन बीजों से जीवन को पुन: आरम्भ करना सम्भव हो सका था ।
आज आधुनिक/पाश्चात्य वस्तुओं, तौर तरीक़ों के अंधाधुंध अनुकरण , प्रलय के रूप में पारम्परिक वस्तुओं, ज्ञान एवं कलाओं को शनैः शनैः समाप्त करता जा रहा है । यदि उनके बीजों का संरक्षण नहीं किया गया तो बाद में उन्हें ढूँढना और उगाना संभव नहीं हो सकेगा ।
इसी सिद्धांत को अपनाते हुए जबलपुर रेलवे स्टेशन से 32 कि.मी. दूर इन्द्राना ग्राम में ‘’ जीविका ‘’ प्रकल्प के माध्यम से परम्परागत वस्तुओं एवं उनसे जुड़ी कला एवं तकनीक के संरक्षण का काम श्री आशीष कुमार गुप्ता कर रहे हैं ।
यहाँ का म्यूज़ियम एवं अन्य संरचनाएँ परम्परा, कला , पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊपन तथा सहजता का उत्कृष्ट मिश्रण प्रस्तुत करते हैं ।

इस बार बहुत दिनों के बाद लवादा जाना हुआ। यहाँ श्री सुनील देशपाण्डे और निरुपमा देशपाण्डे जी द्वारा आरम्भ किये दो विशाल सामाजिक यज्ञ ‘सम्पूर्ण बाम्बू केन्द्र’ और ‘ग्राम ज्ञानपीठ’ के नाम से क्रमशः गत 27 एवं 8 वर्षों से निरन्तर चल रहे हैं। कला-आश्रम के युगादि कार्यक्रम की तरह, यहाँ विश्वकर्मा जयन्ती के अवसर पर पिछले 25 वर्षों से लगातार हर वर्ष विश्वकर्मा पूजन एवं सम्पूर्ण बाम्बू केन्द्र का मित्र-मिलन कार्यक्रम आयोजित होते आ रहा है। इस बार इसी कार्यक्रम में शामिल होने यहाँ आना हुआ।

इन दोनों स्थानों से प्रेरणा पाकर ही जीविका आश्रम में भी अपनी स्थापना के साथ ही हर वर्ष बसंतोत्सव एवं आश्रम मित्र-मिलन कार्यक्रम होना आरम्भ हुआ है। गुरुजी की बीमारी, फिर गुरुजी के जाने के बाद वाली व्यस्तताओं, इंद्राना में लगातार चलती गतिविधियों, पारिवारिक व्यस्तताओं और फिर कोरोना, आदि के कारण यहाँ आना टलता ही जा रहा था। पर इस बार सुनील जी के नहीं रहने से यहाँ आने से अपने आप को रोक नहीं पाया।

पिछले तीन दिनों से यहीं था। सुनील जी के नहीं रहने से शुरुआत में तो मन थोड़ा अशान्त और उदास सा था। पर यह उदासी कुछ ही समय की रही। सुनील जी के जाने के बाद जिस तरह से निरुपमा जी ने, सुनील-निरुपमा जी के साथियों ने और सबसे ज्यादा इन दोनों के द्वारा तैयार किये कार्यकर्ताओं ने इस अचानक हुए आघात के बावजूद जिस तत्परता और धैर्य के अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को संभाला है, वह किसी भी व्यक्ति को ऊर्जा से भरने के लिए काफी है। सम्पूर्ण बाम्बू केन्द्र और ग्राम ज्ञानपीठ की सभी गतिविधियाँ अपने पुराने स्वरुप में पुनः चालू हो गई हैं। इसके अलावा के दोनों ही उपक्रम नई गतिविधियों, नए कार्यक्रमों के साथ आगे की राह पर बढ़ चले हैं।

इस बार की पूरी यात्रा बहुत सारे अनुभवों वाली रही। विश्वकर्मा जयन्ती के प्रमुख कार्यक्रम के साथ-साथ मेलघाट कारीगर पंचायत की बैठक में भी शामिल होने का अवसर प्राप्त हुआ। इसके पूर्व ग्राम ज्ञानपीठ के प्रस्तावित नये प्रकल्प पर दो दिन की विस्तृत चर्चा भी हुई। VNIT, नागपुर के डिप्टी डायरेक्टर श्री दिलीप पेश्वे जी के सौजन्य से लवादा के नज़दीक ही श्री रोहित कोले जी की पचास एकड़ में फैली विधिवत खेती को नजदीक से जानने का मौका मिला। लवादा और कोठा गाँव मेलघाट क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं, जहाँ से नज़दीक ही मेलघाट व्याघ्र अभयारण्य है।

इसी अभयारण्य के बफर जोन में अभी भी हाथी की सफारी कराई जाती है। पुराने मित्रों श्री रवि और अरुणा गजभिये के सौजन्य से इस खूबसूरत सफ़ारी का आनन्द भी प्राप्त हुआ। एक और पैदल ट्रिप में ग्राम ज्ञानपीठ के बाजू से ही बहने वाली सिपना नदी भी घूमने का मौका मिला, जहाँ स्थानीय ग्रामवासियों के साथ नदी के केंकड़े पकड़ने का अनुभव भी प्राप्त किया। 15 किलोमीटर दूर स्थित धारणी गाँव में जोशी परिवार के यहाँ हुए पारम्परिक स्वादिष्ट मराठी भोजन ने अनुभवों के स्तर को कई गुणा बढ़ा दिया। आसपास की शानदार वादियों, तीनों दिन के सूर्योदय एवं सूर्यास्त के भव्य दर्शन, और सम्पूर्ण बाम्बू केन्द्र की मेहमाननवाजी के बारे में तो कहना ही क्या?

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