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भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण के लिये उठाए जा सकने वाले कदम क्या है? - श्रीनारद मीडिया

भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण के लिये उठाए जा सकने वाले कदम क्या है?

भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण के लिये उठाए जा सकने वाले कदम क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्‍क

इलेक्ट्रिक वाहन (Electric Vehicles- EVs) नवीनतम ऑटोमोटिव ट्रेंड है और सभी विकसित तथा विकासशील देश पारंपरिक आंतरिक दहन इंजन (Internal Combustion Engine- ICE) वाहनों से इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर आगे बढ़ने को प्रोत्साहन दे रहे हैं।

जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करने और शून्य कार्बन उत्सर्जन एवं सतत विकास के वैश्विक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये पूरी दुनिया EVs प्रौद्योगिकी की ओर आकर्षित हो रही है।

EVs मोबिलिटी (विशेष रूप से दुपहिया और तिपहिया खंड में) के लिये भारत का बढ़ता बाज़ार भारत के सड़क परिवहन क्षेत्र को न्यून कार्बन मार्ग की ओर आगे बढ़ने हेतु एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।

इस क्षेत्र में अधिकाधिक रोज़गार सृजन, स्थानीय वायु प्रदूषण के शमन और कच्चे तेल पर निर्भरता को कम करने की क्षमता है। हालाँकि ये अवसर तभी अमल में आ सकते हैं जब नीतिनिर्माता और भारत के EVs क्षेत्र के हितधारक स्थानीय तथा अधिक लचीली आपूर्ति शृंखलाओं के निर्माण पर अपना ध्यान केंद्रित करें।

भारत में इलेक्ट्रिक वाहन

भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का वर्तमान परिदृश्य

  • वर्तमान में भारत में बिकने वाले सभी वाहनों में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी 3% से भी कम है। यह स्थिति दिसंबर 2021 में पहली बार EVs पंजीकरण के 50,000 इकाइयों के पार जाने और अब तक की सबसे अधिक मासिक बिक्री दर्ज होने के बावजूद है।
  • हालाँकि बिक्री किये गए इलेक्ट्रिक वाहनों में 80% हिस्सेदारी कम लागत और कम गति वाले तिपहिया वाहनों की रही है, कुल मिलाकर उनकी बिक्री में अगली पीढ़ी की दुपहिया वाहन कंपनियों के उदय के कारण गति आई है।
  • ई-अमृत (e-AMRIT- Accelerated e-Mobility Revolution for India’s Transportation) पोर्टल के अनुसार भारत में दिसंबर 2021 तक केवल 7,96,000 EVs पंजीकृत किये गए हैं और केवल 1,800 सार्वजनिक EVs चार्जिंग स्टेशन स्थापित किये गए हैं।
  • जबकि वित्त वर्ष 2015 से वित्त वर्ष 2020 तक EVs की बिक्री में 133% की वृद्धि हुई, पारंपरिक EVs वाहनों की बिक्री की तुलना में यह संख्या नगण्य ही प्रतीत होती है। वित्त वर्ष 2021-22 में देश में बिक्री हुए कुल वाहनों में से केवल 1.32% ही इलेक्ट्रिक वाहन थे।

EV विनिर्माण के संबंध में हाल में किये गए उपाय

  • FAME और PLI योजनाएँ: भारत सरकार फेम-2 [FAME-II – Faster Adoption and Manufacturing of (Hybrid &) Electric Vehicles Scheme-II] जैसे विभिन्न नीतिगत उपायों के माध्यम से EVs निर्माण के अधिकाधिक स्थानीयकरण पर ज़ोर दे रही है।
    • इसने महत्त्वपूर्ण EVs घटकों के लिये स्वदेशी आपूर्ति शृंखला विकसित करने हेतु ऑटोमोबाइल, ऑटोमोटिव घटकों और उन्नत रसायन सेल (ACC) बैटरी क्षेत्र में विनिर्माताओं के लिये कई उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (Production Linked Incentive- PLI) योजनाएँ भी शुरू की हैं।
  • उपभोक्ता-केंद्रित प्रोत्साहन: बिक्री को बढ़ावा देने के लिये सरकार ने करों में छूट, सब्सिडी एवं ब्याज अनुदान योजनाओं जैसे कई उपभोक्ता-केंद्रित प्रोत्साहन (Consumer-Centric Incentives) भी शुरू किये हैं जिसका उद्देश्य EVs मोबिलिटी विकल्पों के लिये बड़े पैमाने पर माँग को प्रेरित करना है।
  • गीगाफैक्टरी में बैटरी विनिर्माण: हाल ही में सरकार ने स्थानीय स्तर पर उन्नत रसायन सेल (ACC) बैटरी निर्माण हेतु PLI योजना का लाभ उठाने के लिये 10 कंपनियों से बोलियाँ आमंत्रित करने की घोषणा की।
    • अगली पीढ़ी की इन बैटरियों का निर्माण ‘गीगाफैक्टरी’ (gigafactories) में किया जाएगा जो एंड-टू-एंड बैटरी विनिर्माण और बड़े पैमाने पर उत्पादन को चिह्नित करता है।
  • चार्जिंग अवसंरचना के लिये दिशा-निर्देश: सरकार ने चार्जिंग अवसंरचना के लिये अपने दिशा-निर्देश को भी संशोधित किया है जिसमें सार्वजनिक भूमि के उपयोग के लिये राजस्व-साझाकरण मॉडल को शामिल किया गया है।
    • सरकार ने केंद्रीय बजट के माध्यम से बैटरी स्वैपिंग नीति, इंटरऑपरेबिलिटी मानकों और विशेष मोबिलिटी क्षेत्रों के कार्यकरण का वादा कर इन घोषणाओं की पुष्टि की है।

EV विनिर्माण से संबद्ध चुनौतियाँ 

  • आपूर्ति शृंखला व्यवधान: कोविड-19 महामारी और अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के कारण पिछले दो वर्ष आपूर्ति शृंखला व्यवधान की स्थिति रही जिसने वैश्विक विनिर्माण रणनीतियों में मूलभूत परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया है।
    • उच्च-तकनीकी उद्योगों के लिये विशेष रूप से इस परिदृश्य का उभार हुआ जो अभी भी सिलिकॉन चिप्स और बैटरी जैसे महत्त्वपूर्ण घटकों की कमी सहित विभिन्न लॉजिस्टिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
    • भारत की बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियों को भी चिप्स (जैसे वाहनों में नई मल्टीमीडिया सुविधाओं को संचालित करने वाले चिप्स) की कमी के कारण उत्पादन बंद करना पड़ा।
  • महँगी सामग्री: आपूर्ति शृंखला में व्यवधान और आपूर्ति शृंखला को लघु करने की दौड़ का परिणाम यह हुआ कि महत्त्वपूर्ण घटक निषेधात्मक रूप से महँगे होते जा रहे हैं।
    • इलेक्ट्रिक वाहनों के मामले में भारतीय विनिर्माता लिथियम-आयन बैटरी पाने के लिये भी संघर्ष कर रहे हैं जो बड़े पैमाने पर चीन, दक्षिण कोरिया और ताइवान से आयात किये जाते हैं।
      • बैटरी-ग्रेड लिथियम कार्बोनेट (एक प्रमुख इनपुट) के मूल्य नवंबर 2021 में पिछले वर्ष की तुलना में 400% तक बढ़ गए।
  • कच्चे माल के लिये आयात निर्भरता: भारत के पास लिथियम, कोबाल्ट और निकेल जैसे महत्त्वपूर्ण कच्चे माल का अभाव है जिनका उपयोग लिथियम-आयन (Li-ion) बैटरी सेल बनाने के लिये किया जाता है।
    • नतीजतन भारतीय निर्माताओं को चीन, जापान, कोरिया और ताइवान से बैटरी सेल के आयात पर बहुत अधिक निर्भर रहना पड़ता है।
    • हालाँकि भारत को PLI योजना के तहत घरेलू स्तर पर ACC बैटरी निर्माण के संबंध में निवेशकों से उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली है, लेकिन अधिकांश बोलीदाताओं द्वारा वर्ष 2025 से ही विनिर्माण शुरू किये जाने की उम्मीद है।
      • इस प्रकार, बैटरी पैक की घरेलू असेंबलिंग के लिये भारत की आयात-संचालित रणनीति अभी कुछ और वर्षों तक बनी रहेगी।

  • प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाना: ऑटोमोबाइल क्षेत्र की बड़ी कंपनियों को भविष्य में भारतीय EVs पारितंत्र की प्रतिस्पर्द्धात्मकता सुनिश्चित करने के लिये त्वरित गति से कार्य करना चाहिये जो अब तक आयात पर बहुत अधिक निर्भर बना रहा है।
    • भारत की बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियाँ आपूर्ति शृंखला को मज़बूत करने और विभिन्न विनिर्माण समूहों के भीतर एवं उनके मध्य क्षमताओं को उन्नत करने में महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकती हैं।
  • दुपहिया वाहनों पर आरंभिक ज़ोर: दुपहिया वाहन EVs घटक निर्माण को स्थानीयकृत करने का एक अच्छा अवसर प्रदान करते हैं। यह खंड पहले से ही सभी नए सवारी इलेक्ट्रिक वाहन पंजीकरणों में लगभग आधे भाग की हिस्सेदारी रखते हैं।
    • भारत पहले से ही दुनिया का सबसे बड़ा दुपहिया विनिर्माता है और बैटरी गीगाफैक्ट्री स्थापित करने के लिये लगाई गई बोलियाँ नए युग की प्रौद्योगिकियों के लिये एक स्वस्थ इच्छा का संकेत देती हैं जो आपूर्ति शृंखला को लघु करने में मदद कर सकती हैं।
    • यह उपयुक्त समय है कि बड़ी कंपनियाँ सक्रिय हों और अपनी EVs महत्त्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाना शुरू करें।
  • बैटरी विनिर्माण पर मुख्य ध्यान: भारत को मुख्य रूप से घरेलू स्तर पर बैटरी विनिर्माण कर और देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की लागत को कम कर एक आपूर्ति शृंखला का निर्माण करने पर अपना ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
    • हाल ही में टेस्ला इंक (Tesla, Inc.) ने भारत में एक विनिर्माण इकाई स्थापित करने के उद्देश्य से एक भारतीय सहायक कंपनी टेस्ला इंडिया मोटर्स एंड एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड को निगमित किया है जहाँ स्थानीय रूप से टेस्ला कारों का उत्पादन किया जाएगा।
    • इसी तरह, भारत को स्थानीय उत्पादन सुविधाएँ स्थापित करने के लिये घरेलू खिलाड़ियों के साथ ही विदेशी बैटरी निर्माताओं को भी आकर्षित करने की आवश्यकता है। इस तरह के उपायों से बैटरी एवं EVs की लागत कम होगी और लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार होगा।
  • शहरी अपशिष्ट का उपयोग: भारतीय औद्योगिक घरानों (रिलायंस इंडस्ट्रीज, अडानी ग्रुप और टाटा केमिकल्स) द्वारा हाल ही में स्थानीय रूप से बैटरी सेल का निर्माण करने की प्रतिबद्धता जताई गई है।
    • हालाँकि एक क्लोज्ड लूप में कार्य करते हुए बैटरी विकास के संबंध में रणनीतियों को समायोजित करने की तत्काल आवश्यकता है।
    • विनिर्माताओं को बैटरियों के जीवन चक्र के बारे में विचार करने और शहरी अपशिष्ट का उपयोग कर सकने के संबंध में योजना तैयार करने की आवश्यकता है ताकि बैटरियों से उपयोगी सामग्री की पुनः प्राप्ति सुनिश्चित हो सके।
      • इस रणनीति में नई बैटरियों के उत्पादन के लिये आवश्यक 50% सामग्री को बचा सकने की क्षमता है।
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