नंदी बैल कैसे बने भगवान शिव की सवारी.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
एक मार्च को महाशिवरात्रि का पर्व है। भाेले के भक्तों को अतिप्रिय ये महारात्रि विशेष फलदायी है। बात जब शिव की हो तो उनके वाहन नंदी को कैसे पीछे छोड़ दिया जाए। संसार के किसी भी शिवालय की बात करें वहां शिव दर्शन से पहले नंदी के दर्शन जरूर होते हैं। ज्योतिषाचार्य डॉ शाेनू मेहरोत्रा के अनुसार नंदी भगवान शिव के परम प्रिय गण हैं। शिव का वाहन वृषभ/बैल ‘नंदी’ शक्ति का पुंज है। सौम्य-सात्विक बैल शक्ति का प्रतीक है, हिम्मत का प्रतीक है। शिव के सिर पर विराजमान चंद्रमा शांति व संतुलन का प्रतीक है। चंद्रमा पूर्ण ज्ञान का प्रतीक भी है। शंकर भक्त का मन सदैव चंद्रमा की भांति प्रफुल्लित और उसी के समान खिला नि:शंक होता है।
उन्होंने बताया कि जब भी हम किसी शिव मंदिर जाते हैं तो अक्सर देखते हैं कि कुछ लोग शिवलिंग के सामने बैठे नंदी के कान में अपनी मनोकामना कहते हैं। ये एक परंपरा बन गई है। इस परंपरा के पीछे की वजह एक मान्यता है।
ये है मान्यता
मान्यता है जहां भी शिव मंदिर होता है, वहां नंदी की स्थापना भी जरूर की जाती है क्योंकि नंदी भगवान शिव के परम भक्त हैं। जब भी कोई व्यक्ति शिव मंदिर में आता है तो वह नंदी के कान में अपनी मनोकामना कहता है। इसके पीछे मान्यता है कि भगवान शिव तपस्वी हैं और वे हमेशा समाधि में रहते हैं। ऐसे में उनकी समाधि और तपस्या में कोई विघ्न ना आए। इसलिए नंदी ही हमारी मनोकामना शिवजी तक पहुंचाते हैं। इसी मान्यता के चलते लोग नंदी को लोग अपनी मनोकामना कहते हैं।
शिव के ही अवतार हैं नंदी
शिलाद नाम के एक मुनि थे, जो ब्रह्मचारी थे। वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने उनसे संतान उत्पन्न करने को कहा। शिलाद मुनि ने संतान भगवान शिव की प्रसन्न कर अयोनिज और मृत्युहीन पुत्र मांगा। भगवान शिव ने शिलाद मुनि को ये वरदान दे दिया। एक दिन जब शिलाद मुनि भूमि जोत रहे थे, उन्हें एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। एक दिन मित्रा और वरुण नाम के दो मुनि शिलाद के आश्रम आए। उन्होंने बताया कि नंदी अल्पायु हैं। यह सुनकर नंदी महादेव की आराधना करने लगे। प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और कहा कि तुम मेरे ही अंश हो, इसलिए तुम्हें मृत्यु से भय कैसे हो सकता है? ऐसा कहकर भगवान शिव ने नंदी का अपना गणाध्यक्ष भी बनाया।
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