कृष्ण-रुक्मणि का विवाह मिलन है जीव और शिव का-श्रीदास जी महाराज

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श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):


सीवान जिले के बड़हरिया प्रखंड के लकड़ी खुर्द पोखरा स्थित शिव मंदिर परिसर में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान महायज्ञ के आखिरी दिन अंतरराष्ट्रीय कथावाचक श्री दास जी महाराज ने श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह का प्रसंग सुनाया।

उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के साथ हमेशा देवी राधा का नाम आता है.भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं में यह दिखाया भी था कि श्रीराधा और वह दो नहीं बल्कि एक हैं। लेकिन देवी राधा के साथ श्रीकृष्ण का लौकिक विवाह नहीं हो पाया। देवी राधा के बाद भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय देवी रुक्मिणी हुईं।

देवी रुक्मणी और श्रीकृष्ण के बीच प्रेम कैसे हुआ इसकी बड़ी अनोखी और रोचक कहानी है। इसी कहानी से प्रेम की नई परंपरा की शुरुआत भी हुई। देवी रुक्मिणी विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थी।

रुक्मिणी अपनी बुद्धिमता, सौंदर्य और न्यायप्रिय व्यवहार के लिए प्रसिद्ध थीं। रुक्मिणी का पूरा बचपन श्रीकृष्ण के साहस और वीरता की कहानियां सुनते हुए बीता था। जब विवाह की उम्र हुई तो इनके लिए कई रिश्ते आए लेकिन उन्होंने सभी को मना कर दिया। उनके विवाह को लेकर माता-पिता और भाई चिंतित थे।

बाद में रुक्मणी का श्री कृष्ण से विवाह हुआ। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह की कथा आत्मा और परमात्मा की मिलन की कथा है,दोनों के एकाकार के होने की कथा है.रुक्मिणी व श्रीकृष्ण की कथा प्राणी देह की कथा नहीं है,बल्कि जीव व शिव का मिलन है।

महायज्ञ के अंतिम दिन वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच हवनादि के साथ पूर्णाहुति दी गयी। इस दौरान कंहैया प्रसाद, आमोद चौबे,रमेश मिश्र, मनन तिवारी,मनोज साह,बजरंगी तिवारी, श्रीकृष्ण शर्मा, बलिराम प्रसाद,दीपक मिश्र, तारकेश्वर तिवारी छोटू,रंजन तिवारी, कुसुम त्रिवेदी,रानी देवी, मौसी जी, शारदा तिवारी आदि मौजूद रहे।

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