इस लड़ाई से आम आदमी पर पड़ेगी महंगाई की मार.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
यूक्रेन में जारी लड़ाई का चौतरफा असर नजर आएगा। समाचार एजेंसी एपी की रिपोर्ट के मुताबिक इस लड़ाई के चलते यूरोप, अफ्रीका और एशिया के लोगों की खाद्य आपूर्ति और आजीविका दोनों पर संकट गहरा गया है। दरअसल काला सागर का विशाल क्षेत्र उपजाऊ खेतों पर निर्भर हैं। इसको दुनिया की रोटी की टोकरी के रूप में जाना जाता है। खेती किसानी सब चौपट होने की ओर है क्योंकि इस लड़ाई के चलते लाखों यूक्रेनी किसानों को पलायन करना पड़ा है।
कीमतों में 55 फीसद की वृद्धि
मौजूदा वक्त में बंदरगाहों को बंद कर दिया गया है। ये बंदरगाह खाद्य आपूर्ति के बड़े केंद्र थे। ये दुनिया भर में रोटी नूडल्स और पशु चारा बनाने के लिए गेहूं एवं अन्य खाद्य सामग्री की आपूर्ति करते थे। हालांकि गेहूं की आपूर्ति में अभी तक वैश्विक व्यवधान नहीं आया है लेकिन आगे कुछ भी हो सकता है। इसी अनिश्चितता के चलते खाद्य सामग्री की कीमतों में 55 फीसद की वृद्धि हुई है। इसका फायदा रूस को मिल सकता है। रूस से खाद्यान्न का निर्यात बढ़ सकता है।
खाद्य असुरक्षा का करना पड़ सकता है सामना
अंतर्राष्ट्रीय अनाज परिषद (International Grains Council) के निदेशक अरनौद पेटिट (Arnaud Petit) ने एसोसिएटेड प्रेस को बताया कि यदि यह युद्ध लंबे समय तक चलता है तो यूक्रेन से सस्ते गेहूं के आयात पर भरोसा करने वाले देशों को जुलाई में खाद्य सामग्री में किल्लत का सामना करना पड़ सकता है। इस संकट से पैदा हुई खाद्य असुरक्षा मिस्र और लेबनान जैसी जगहों पर बड़ी संख्या में लोगों को गरीबी में ढकेल सकती है। यहां सरकार की ओर से खाद्य सब्सिडी दी जाती है।
यूरोप पर होगा व्यापक असर
यूरोप में यूक्रेन से आयात होने वाले उत्पादों की कमी को लेकर अभी से तैयारियां होने लगी हैं। यूरोप के पशुओं के चारे की कीमतों में वृद्धि की आशंकाएं हैं। इससे मांस और डेयरी के उत्पाद महंगे हो सकते हैं। दरअसल रूस और यूक्रेन दुनिया के लगभग एक तिहाई हिस्से में गेहूं और जौ का निर्यात करते हैं। यूक्रेन मकई का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है। यही नहीं यूक्रेन दुनिया में सूरजमुखी के तेल सर्वाधिक उत्पादनकर्ता है। जाहिर है यह युद्ध केवल रूस और यूक्रेन को ही नहीं दुनिया के बाकी मुल्कों को भी प्रभावित करेगा।
भारत भी अछूता नहीं
यूक्रेन संकट का असर भारत पर भी पड़ेगा। प्रख्यात अर्थशास्त्री जयंत आर वर्मा का कहना है कि इससे भारत के आर्थिक विकास पर असर पड़ेगा। यही नहीं इससे आम आदमी की जेब पर भी बोझ बढ़ेगा। भारत में महंगाई बढ़ने के आसार हैं।
प्रख्यात अर्थशास्त्री जयंत आर वर्मा ने कहा कि रूस-यूक्रेन संघर्ष का असर ना केवल आर्थिक विकास पर पड़ेगा बल्कि इससे महंगाई के बढ़ने की भी संभावना है। उन्होंने कहा कि नीति निर्माताओं को इसके लिए तैयार रहना चाहिए और भविष्य में पैदा होने वाली प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने के लिए नीतियां बनानी चाहिए। रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्य वर्मा ने कहा कि मुद्रास्फीति लक्ष्य से अधिक है।
हालांकि अभी भी यह नियंत्रण में है। वर्मा ने कहा कि अर्थव्यवस्था अभी मंदी से बाहर निकल नहीं पाई है। महामारी के चलते ना तो इस दौरान पर्याप्त मात्रा में निवेश हुआ और ना ही निजी खपत बढ़ी है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते एक बार फिर स्थितियां बिगड़ी रही हैं।
आइआइएम अहमदाबाद में प्रोफेसर वर्मा ने कहा कि संघर्ष का आर्थिक विकास और मुद्रास्फीति दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है। हाल ही में सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के 8.9 प्रतिशत से बढ़ने का अनुमान है। हालांकि यह पहले के 9.2 प्रतिशत के अनुमान से कम है।
रिजर्व बैंक ने 2022-23 में महंगाई की दर के चार प्रतिशत से बहुत अधिक रहने का अनुमान नहीं जताया है। हालांकि ऐसा नहीं होगा इस बात की उम्मीद बैंक को भी कम है। वर्मा ने कहा कि मुद्रास्फीति के अनुमान से बहुत कम रहने की संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है।
जयंत आर वर्मा ने कहा कि मुद्रास्फीति का अनुमान लगाना इतना कठिन इसलिए है, क्योंकि कमोडिटी की कीमतों के बढ़ने में सप्लाई चेन का बड़ा योगदान रहा है। यह कहना भी मुश्किल है कि आपूर्ति की समस्या कितने समय तक चलेगी।
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