स्कूल बंद होने से बच्चों को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई आसान नहीं है,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
कोविड मामलों में कमी आने के बाद बच्चों को फिर से स्कूल भेजने की तैयारी शुरू होनी चाहिए. झारखंड में सात मार्च से कक्षा एक से नौवीं तक के स्कूल खुल गये हैं. सभी माता-पिता, शिक्षकों एवं एक समुदाय के रूप में हम सबका यह कर्तव्य है कि बच्चों को पुनः स्कूल भेजें, ताकि वे अपनी पढ़ाई पुनः शुरू कर सकें.
वे अपने साथियों के साथ स्कूल की गतिविधियों में हिस्सा ले सकें. सरकार के इस कदम का स्वागत किया जाना चाहिए. साथ ही बच्चों के लिए उचित सुरक्षा प्रोटोकॉल बने, ताकि बच्चे स्वस्थ वातावरण में सीख और खेल सकें. यह बच्चों को वह बचपन देने का समय है, जिसके वे हकदार हैं, जैसे- लिखने के लिए एक ब्लैकबोर्ड, खेलने के लिए खेल का मैदान और पढ़ने के लिए कक्षाएं आदि.
रांची के फर्स्ट ग्रेड के छात्र आरव को फिर से स्कूल खुलने की उम्मीद थी. वह सहपाठियों से मिलना चाहता था. पूर्वी सिंहभूम की कक्षा छह की छात्रा मीनू चिंतित है, क्योंकि उसके चाचा ने उसकी शादी के लिए एक उपयुक्त वर की तलाश शुरू कर दी है. उसकी मां सुनीता, जो एक सिंगल पैरेंट हैं, उन्हें सामाजिक और वित्तीय सुरक्षा के लिए विस्तारित परिवार पर निर्भर रहना पड़ रहा है.
इसलिए, मीनू की शादी में देरी करना उनके लिए मुश्किल हो रहा है. मीनू के लिए स्कूल ही उसका समुदाय है. उसके शिक्षक और दोस्त उसके सहयोगी और सुरक्षा कवच हैं. यूनिसेफ के अनुमान के मुताबिक, स्कूल बंद होने से भारत में 25 करोड़ बच्चे प्रभावित हुए हैं. आरव और मीनू की कहानियां पूरे देश के बच्चों की कहानी है.
पिछले दो वर्षों में बच्चे सामाजिक और शैक्षणिक विकास के महत्वपूर्ण उपलब्धि से चूक गये हैं. स्कूल बंद होने से बच्चों को जो नुकसान हुआ है, उसकी पूरी तरह से भरपाई आसान नहीं है. शिक्षा को हुए नुकसान, तनाव, चिंता, मिड-डे मील न मिलना और सामाजिक संबंधों में कमी के कारण बच्चों की शैक्षणिक उपलब्धि तथा मानसिक स्वास्थ्य पर पड़नेवाले असर आनेवाले वर्षों में महसूस किये जायेंगे.
सबसे अधिक असर कमजोर परिवारों एवं समुदायों के बच्चों पर पड़ा है़ जिनके पास आॅनलाइन शिक्षा की व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी, वे अपनी शिक्षा जारी नहीं रख सके. हालांकि, इसके लिए पिछले दो वर्षों में झारखंड सरकार ने बहुत कुछ किया है.
शिक्षा विभाग, यूनिसेफ तथा अन्य एजेंसियों ने झारखंड में लगभग 12 लाख छात्रों को व्हॉट्सएप समूहों के माध्यम से शैक्षिक सामग्रियों को साझा किया, ताकि उनकी शिक्षा आगे बढ़ सके. टेलीविजन का भी उपयोग किया गया. इसी प्रकार से ‘डिजी-स्कूल एप’ के माध्यम से डिजिटल शिक्षण सामग्री को आसान बनाया गया. बच्चों को वर्कशीट तथा शिक्षण सामग्री हेतु सहयोग प्रदान किये गये. हालांकि, ये तमाम सुविधाएं सभी बच्चों तक नहीं पहुंच पायी. कई बच्चे इन तमाम प्रयासों का लाभ उठाने से वंचित रह गये.
प्रौद्योगिकी की पहुंच नहीं होने के कारण शिक्षा की असमानता गहरी हुई है. शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट 2021 के अनुसार, डिजिटल विभाजन के कारण भारत में ऑनलाइन शिक्षा केवल एक चौथाई छात्रों तक ही सीमित थी, जो एक गंभीर चिंता का विषय है.
मिसाल के तौर पर, मोबाइल हैंडसेट परिवार में एक साझा वस्तु हो सकती है, लेकिन सभी बच्चों की उस तक पहुंच नहीं हो सकती, भले ही वह घर पर ही क्यों न रखा हो. लड़कियों के लिए घर पर रहकर पढ़ाई करना और भी मुश्किल है, क्योंकि उन पर घर के कामों या भाई-बहनों की देखभाल का भी जिम्मा होता है. वहीं, गरीब घरों के लड़कों को मजदूरी करना पड़ता है.
हालांकि, आर्थिक रूप से समृद्ध बच्चे, जिनके पास ऑनलाइन शिक्षा के संसाधन उपलब्ध थे, उन्हें भी इंटरनेट कनेक्शन में व्यवधान, घर पर पढ़ाई का वातावरण न होना, विषय को समझने की समस्याएं, रुचि की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. बच्चों का स्वास्थ्य गतिहीन जीवनशैली के कारण प्रभावित हुआ है.
स्क्रीन पर अधिक समय बिताने के कारण, आंखों की रोशनी तथा सामाजिक अलगाव के कारण युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ा है. स्कूल बंद होने का खामियाजा कई शिक्षकों को भी भुगतना पड़ा. शिक्षा पैटर्न में आये बदलाव (ई-लर्निंग) के अनुरूप खुद को ढालने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा, जिसका असर बच्चों की लर्निंग आउटकम पर पड़ा है.
माता-पिता को भी अपने बच्चों के लिए शिक्षक, सहपाठी की सम्मिलित भूमिकाओं का एक साथ निर्वहन करना पड़ा. महामारी के बीच नयी जिम्मेदारियों ने शिक्षकों तथा माता-पिता दोनों पर खासा दबाव डाला है.
कई माता-पिता कोरोना वायरस की अनिश्चित प्रकृति के कारण बच्चों को स्कूल भेजने में चिंतित महसूस कर सकते हैं, लेकिन टीकाकरण और कोविड उपयुक्त व्यवहार का पालन कर हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि बच्चे सुरक्षित रहें. शारीरिक दूरी को सुनिश्चित करके, कक्षाओं का सुरक्षित संचालन, मास्क पहनने तथा हाथों की स्वच्छता बनाये रखने में शिक्षकों और प्राचार्यों की बड़ी भूमिका है. स्कूलों में सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित करने से माता-पिता के अंदर बच्चों की सुरक्षा को लेकर विश्वास पैदा होगा.
स्कूलों को फिर से खोलना न केवल स्कूल प्रशासन, बल्कि परिवारों, स्वास्थ्य अधिकारियों तथा स्थानीय अधिकारियों के लिए भी सामूहिक प्रयास होना चाहिए. समय आ गया है कि बच्चों के हित में हम स्क्रीन के बाहर की शिक्षा की कल्पना करें और उसे मूर्त रूप प्रदान करें.