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क्या आनेवाले कई वर्षों तक भारत भाजपामय बना रहेगा?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत एक प्रकार से कीर्तिमान है क्योंकि कांग्रेस के बाद अब तक कोई दल लगातार दो चुनाव नहीं जीत सका था. इस चुनाव में समाजवादी पार्टी और उसके गठबंधन ने भाजपा को कड़ी चुनौती दी तथा उसका मत प्रतिशत भी बढ़ा है. आश्चर्यजनक यह भी है कि भाजपा की सीटें घटी हैं, पर उसका मत प्रतिशत बढ़ा है, जबकि कहा जा रहा थी कि योगी सरकार के प्रति एंटी-इनकमबेंसी है और पार्टी के भीतर भी उनसे नाराजगी है, लेकिन यह नतीजों में नहीं दिख रहा है.

इस परिणाम से तीन प्रमुख बातें उभरकर आती हैं. एक तो यह कि भाजपा देश के इस सबसे बड़े राज्य में अपना वर्चस्व बरकरार रखने में सफल रही है. योगी आदित्यनाथ ने अपने नेतृत्व की छाप छोड़ी है. भाजपा के पक्ष में जिस कारक ने अहम भूमिका निभायी है, वह है लाभार्थी वर्ग का समर्थन, जिन्हें कोरोना काल में मुफ्त राशन मिला और जिन्हें नगद सहायता मिली. इससे भाजपा के विरुद्ध हवा को रोकने में बड़ी मदद मिली है.

मायावती के नेतृत्व को जोरदार चुनौती मिलना इस चुनाव की दूसरी मुख्य बात है. नतीजों से पहले हम सब मान रहे थे कि मायावती राज्य में बड़ी ताकत हैं, पर यह पहली बार हुआ है कि न केवल उनकी सीटों में भारी कमी आयी है, बल्कि उनका वोट शेयर भी बहुत घट गया है. इसका मतलब है कि कांशीराम के प्रयासों से दलित बड़ी राजनीतिक शक्ति बन गये थे, अब उनमें बिखराव आ गया है.

बसपा और मायावती का राजनीतिक भविष्य अनिश्चित लग रहा है. दलित समुदाय को बीते वर्षों में सामाजिक और आर्थिक चेतना तो मिली, पर उन्हें आर्थिक शक्ति हासिल नहीं हुई. यह वोटों में बिखराव का मुख्य कारण है. समाजवादी पार्टी ने भाजपा को तगड़ी चुनौती पेश कर यह साबित किया है कि वह उत्तर प्रदेश में एक बड़ी ताकत है और बनी रहेगी. कांग्रेस कुछ भी नहीं कर सकी है. उनका वोट शेयर भी काफी गिर चुका है.

राजनीतिक विश्लेषकों से एक बड़ी चूक हुई, जिसे हम परिणामों के आने के बाद देख पा रहे हैं. कहा जा रहा था कि भाजपा का चुनावी माहौल को हिंदू-मुस्लिम आख्यान बनाने, खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में, का प्रयास सफल नहीं हुआ है, जो 2013 के बाद मौजूद था. लेकिन नतीजे बता रहे हैं कि अब भाजपा को हिंदू ध्रुवीकरण करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह लगभग एक दशक से इतना ध्रुवीकरण कर चुकी है कि शेष मुद्दे गौण हो गये हैं.

जो सांप्रदायिक भेद समाज में था, उसे किसान आंदोलन नहीं पाट सका. जैसा माना जा रहा था और भाजपा भी चिंतित थी, वैसा कोई नुकसान पश्चिमी उत्तर प्रदेश और रूहेलखंड में पार्टी को नहीं हुआ है. भाजपा ने उत्तर प्रदेश के हर हिस्से में अच्छा प्रदर्शन किया है. उल्लेखनीय है कि इन सभी क्षेत्रों के सामाजिक और राजनीतिक समीकरण अलग-अलग हैं. यह स्पष्ट संकेत है कि समाज में हिंदू ध्रुवीकरण स्थापित हो चुका है और वह लंबे समय तक बना रहेगा.

यह भी रेखांकित किया जाना चाहिए कि गरीब वर्ग को जो राशन, नगद आदि मदद दी गयी है, उसने जाति और धर्म की दीवार को तोड़ा है. किसी गरीब को अगर कोई रोटी दे रहा है, तो वह अपनी जाति की ओर जाने की बजाय सरकार की ओर जाना पसंद कर रहा है. मुस्लिम समुदाय का भी कुछ वोट भाजपा के पक्ष में गया है, जबकि माना जा रहा था कि इस समुदाय का पूरा वोट सपा को मिलेगा.

जमीनी रिपोर्टों की मानें, तो जो अत्यंत गरीब मुस्लिम लोग हैं और लाभार्थी हैं, उन्होंने धार्मिक आधार से परे जाकर वोट किया है. सपा को सबसे अधिक नुकसान इस बात से हुआ, जो भाजपा ने अपने प्रचार में उसे अराजक और आपराधिक तत्वों की पार्टी बताया था. भाजपा का यह नैरेटिव काम कर गया.

भाजपा ने अपने अभियान में कल्याणकारी कार्यक्रमों को भुनाया, जो हमने नमक खाने की चर्चाओं में देखा तथा योगी सरकार के दौर में अपराधियों पर अंकुश लगाने का प्रचार भी काम कर गया, हालांकि आज भी कई अपराधी हैं, जिन्हें सरकार का वरदहस्त प्राप्त है. भाजपा लोगों को भरोसा दिलाने में कामयाब रही कि योगी शासन में लोग सुरक्षित हैं, महिलाएं सुरक्षित हैं. समाजवादी पार्टी को पिछड़े वर्ग में गैर-यादव वोट बड़ी संख्या में मिले हैं. साथ ही, मुस्लिम आबादी के बहुत बड़े हिस्से का भी साथ मिला है. पर यह सब सत्ता में आने के लिए नाकाफी साबित हुआ.

उत्तर प्रदेश के साथ गोवा, उत्तराखंड और मणिपुर में भी भाजपा की जीत से स्पष्ट है कि राष्ट्रीय राजनीति में पार्टी का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है. इन राज्यों के बारे में कहा जा रहा था कि यहां का जनादेश स्पष्ट नहीं होगा या कांग्रेस की बढ़त हो सकती है. पर, ऐसा नहीं हुआ. उत्तराखंड में भले कांग्रेस की सीटें बढ़ी हैं, लेकिन वहां भी भाजपा को हिंदू ध्रुवीकरण और लाभार्थी समर्थन का लाभ मिला है. पंजाब में आम आदमी पार्टी की भारी जीत को एक प्रकार से क्रांति की संज्ञा दी जा सकती है.

इस पार्टी को जनता ने नयी उम्मीदों और नयी राष्ट्रीय राजनीतिक शक्ति के रूप में देखा है. पंजाब के लोग कांग्रेस और अकाली दल से निराश थे. वहां भाजपा का कभी वर्चस्व रहा नहीं है. कैप्टन अमरिंदर सिंह को बड़ा नेता माना जाता है, पर वे कुछ भी असर नहीं दिखा सके. पंजाब को छोड़ दें, तो चार राज्यों में भाजपा की जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर मुहर है और उनकी लोकप्रियता का सूचक है.

वर्ष 2024 में होनेवाले लोकसभा चुनाव में जीत का रास्ता भाजपा के लिए फिलहाल आसान दिख रहा है. राष्ट्रपति चुनाव में भी भाजपा का पलड़ा भारी रहेगा. कांग्रेस के लिए अभी उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आती और ऐसा लगता है कि कांग्रेस को नये सिरे से अपने पैरों तले की जमीन तलाशनी होगी. उसे अपनी दृष्टि, अपने नेतृत्व और कार्यकर्ताओं पर नये ढंग से विचार करना होगा. ऐसा लगता है कि आनेवाले कई वर्षों तक भारत भाजपामय बना रहेगा.

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