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क्या सत्ता में एक नया परिवर्तन करना अनिवार्य है? - श्रीनारद मीडिया
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क्या सत्ता में एक नया परिवर्तन करना अनिवार्य है?

क्या सत्ता में एक नया परिवर्तन करना अनिवार्य है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

पंजाब विधानसभा चुनाव के नतीजों ने इस बात को बड़ी संजीदगी से साबित कर दिया है कि सत्ता की वास्तविक मालिक जनता ही होती है. चुनाव के नतीजों ने आम आदमी पार्टी को एकतरफा जीत दी है. हालांकि सात मार्च से शुरू हुए सभी एग्जिट पोल ने पहले ही इस बात का संकेत दे दिया था, लेकिन कांग्रेस को आम जनता इतनी बुरी तरह से नकार देगी, ऐसी स्पष्ट सोच किसी भी विश्लेषण में नहीं थी. नतीजों के बाद यह स्पष्ट दिख रहा है कि पंजाब की शहरी व ग्रामीण जनता, दोनों एकमत थी कि पंजाब की खुशहाली के लिए सत्ता में एक नया परिवर्तन करना अनिवार्य है.

वास्तविकता में इन नतीजों को आम आदमी पार्टी की अप्रत्याशित जीत के रूप में नहीं देखना चाहिए. इस जीत के पीछे का एक मुख्य कारण सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी का स्वयं के द्वारा ही जनता में अपने खिलाफ अविश्वास पैदा करना रहा है. जमीनी हकीकत के अनुसार करीब पांच माह पहले तक कांग्रेस के प्रति जनता में विरोध की लहर इतनी दिखाई नहीं देती थी, जितनी घोषित हुए परिणामों में दिखी है.

नवजोत सिंह सिद्धू की महत्वाकांक्षाओं के चलते आलाकमान द्वारा नेतृत्व परिवर्तन किया गया. उसके बाद से कांग्रेस जनता में विश्वास बनाने में असफल रही. हालांकि कांग्रेस को यह गलतफहमी रही कि एक दलित चेहरा देने से संपूर्ण दलित समाज के वोट उसके विरुद्ध बनी विरोध की लहर को शांत कर देंगे, पर ऐसा हुआ नहीं.

इसके अलावा पंजाब की जनता में यह भावना रही कि चन्नी कभी भी नवजोत सिंह सिद्धू से ऊपर नहीं उठ पायेंगे. वहीं, सिद्धू लगातार नेतृत्व परिवर्तन के बाद भी पार्टी को दरकिनार कर खुद को ही प्रस्तुत करते दिखे. कांग्रेस ने बेशक चन्नी को चुनाव में मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया, पर उनके प्रति आत्मविश्वास नहीं दिखाया. शायद कांग्रेस ऐसा नहीं करती, अगर आम आदमी पार्टी ने भगवंत मान को चेहरा न घोषित किया होता! इन सब वजहों से दलित वर्ग कांग्रेस के प्रति अपनी अंधभक्ति नहीं दिखा पाया.

दूसरी तरफ अकाली दल को अस्वीकार करने के पीछे का मुख्य कारण 2007 से 2017 तक उनकी सत्ता के दौरान पंजाब की आम जनता का आर्थिक शोषण था, जनता उसे भूली नहीं. अकाली दल में परिवारवाद की जड़ें बहुत गहरी हैं, जो जनता के दिमाग में एक विकट स्थिति को पैदा करती है. सुखबीर बादल भी अकाली दल के कार्यकर्ताओं में बड़े बादल वाली हैसियत नहीं बना पाये हैं.

वहीं, पंजाब के किसान कृषि कानूनों के लिए जितना बीजेपी को गलत समझते हैं, उतना ही अकाली दल को भी, भले ही अकाली दल ने वर्तमान भाजपा की केंद्र सरकार के साथ संबंध विच्छेद कर लिये हों. पंजाब की जनता को यह भी अंदेशा था कि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में अकाली दल फिर भाजपा के साथ हाथ मिला सकता है. इन सब कारणों ने अकाली दल की स्वीकार्यता जनता के बीच न के बराबर कर दी थी.

भगवंत मान की बात करें, तो आम आदमी पार्टी की इस बड़ी जीत के पीछे जनता ने दिल्ली के विकास मॉडल को तवज्जो देने की बजाय, भगवंत मान को महत्व दिया, क्योंकि आम आदमी पार्टी की पैदाइश के समय से ही पंजाब में भगवंत मान जमीनी स्तर से उनके साथ रहे.

वर्ष 2014 की तीव्र मोदी लहर के समय भी वह संगरूर से सांसद बने. 2019 में आम आदमी पार्टी को लोकसभा चुनावों में वर्ष 2014 के चुनावों से तुलनात्मक रूप से पिछड़ना पड़ा, तब भी भगवंत मान ही पार्टी के एकमात्र सांसद बने. भगवंत मान ने संसद में भी पंजाब के विभिन्न मुद्दों को रखा. कृषि कानूनों के विरुद्ध आंदोलन में तो वे जैसे आम आदमी का एक चेहरा ही बन गये थे. पंजाब के बाहर के लोग शुरू में भगवंत मान को कांग्रेस तथा अकाली दल के नेतृत्व की तुलना में कमजोर समझ रहे थे, जोकि एक बड़ी भूल थी. हकीकत में भगवंत मान इतना बड़ा चेहरा बन चुके थे कि केजरीवाल को उनका नाम मुख्यमंत्री के रूप में घोषित करना ही पड़ा.

कांग्रेस इस गलतफहमी में भी रही कि किसान आंदोलन में बैठी पंजाब की जनता की संवेदनाएं उसके साथ हैं, लेकिन किसान आंदोलन शुरू होने से पूर्व सत्ता के लगभग तीन सालों में कांग्रेस की किसी भी नीति ने किसानों को कोई भी आर्थिक फायदा नहीं पहुंचाया था. इस कारण आम किसानों ने कांग्रेस को अपना समर्थन न देकर, नया सत्ताधारी दल लाने का निश्चय किया.

आम आदमी पार्टी के लिए अब स्वर्णिम काल की शुरुआत हो गयी है, क्योंकि वह एक ऐसी पहली क्षेत्रीय पार्टी है, जिसकी एक से अधिक राज्य में सरकार है. संभव है कि हिंदी भाषी प्रदेशों में वर्ष 2024 के चुनाव में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल व उत्तराखंड के माध्यम से आम आदमी पार्टी अपनी पैठ को एक बड़े रूप से प्रस्तुत करने की कोशिश करेगी. ऐसा सोचना गलत नहीं है कि आनेवाले कुछ दिनों में शायद केजरीवाल दिल्ली की राजनीति से ऊपर उठ कर देश का एक बड़ा चेहरा बनने की कोशिश करेंगे.

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