अभिभावक अपनी बेटियों को इतनी सुबह लेकर पहुंचते हैं कि घंटे भर में मेला लग जाता है
पिछले कई दिनों से यह दृश्य पंजवार गांव में देखने को मिल रहा है
आलेख – निराला विदेशिया
श्रीनारद मीडिया:
सुबह के पांच,साढ़े पांच बजे का समय.अनमुनाह भोरहरिया बेला. एक,एक कर मोटरसाइकिल आने की शुरुआत होती है. अभिभावक अपनी बेटियों को इतनी सुबह लेकर पहुंचते हैं. घंटे भर के अंदर, छह बजते-बजते मेले जैसा दृश्य बनने लगता है. डेढ़ सौ लड़कियां, उन सबके अभिभावक. इन सबसे ज्यादा गांव के लोग. सुबह छह बजे से सिलसिला शुरू होता है.
पहले जॉगिंग, फिर रनिंग, फिर बाधा दौड़ आदि-आदि. और इन सबके बाद हॉकी स्टिक लेकर लड़कियां मैदान में. लड़कियों की औसत उम्र 12 से 15 साल की. पर, कुछ आठ, दस साल की लड़कियां भी अपने जोश,जुनून के साथ इस टीम में शामिल है.
पिछले कई दिनों से यह दृश्य पंजवार गांव में देखने को मिल रहा है. पंजवार बिहार के सिवान जिले का गांव है. रघुनाथपुर बाजार के निकट. एक ओर इन लड़कियों का हॉकी प्रशिक्षण शुरू होता है, दूसरी ओर गांव के लोग इन बच्चियों के लिए ब्रेकफास्ट,लंच आदि बनाने में लग जाते हैं.
कुल मिलाकर पंजवार गांव में पिछले कई दिनों से अलग किस्म का होलियाना उत्साह,उमंग और उत्सव है. पंजवार में कुछ साल पहले मैरी कॉम क्लब का गठन हुआ था.
यह प्रशिक्षण शिविर मैरी कॉम क्लब के सौजन्य से ही चल रहा है. इस शिविर में करीब डेढ़ सौ लडकियां हैं, जिनमें से 120 के करीब आन गांव से आती हैं.
प्रशिक्षिण शिविर में भाग लेनेवाली लड़कियों के लिए हॉकी स्टिक से लेकर दूसरे जरूरी इक्विपमेंट तक गांव के लोगों ने आपस में चंदा कर जुटाया है.
कुल मिलाकर बात यह कि व्यक्तिवाद को चरम पर पहुंचाने की लाख कोशिशों के बावजूद सामुदायिकता का बोध बचा हुआ है, इसलिए यह दुनिया सुंदर है. कुल मिलाकर बात यह भी कि बात करना एक बात है, बात को अमल में लाना दूसरी बात. बात यह कि स्त्री सशक्तिकरण बौद्धिक जुगाली या बौद्धिक विलास से ज्यादा व्यावहारिकता का विषय और सवाल है.
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