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विवेक अग्निहोत्री को दी गई Y कैटेगरी की सुरक्षा.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

फिल्म द कश्मीर फाइल्स के डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री को सरकार ने वाई कैटेगरी () की सुरक्षा प्रदान कर दी है। विवेक अग्निहोत्री ने कश्मीरी पंडितों पर हुए जुल्मों की दास्तान की कहानी अपनी फिल्म में दिखाई है। जिसके बाद पूरी दुनिया के सामने ये सच एक बार फिर सामने आ गया है कि कैसे आतंकवादियों ने बंदूक की नोक पर वहां पीढ़ियों से बसे कश्मीरी पंडितो के रातों-रात बेघर कर दिया था।

जनता में हुई है व्यापक प्रतिक्रिया

फिल्म द कश्मीर फाइल्स को बड़े पर्दे पर देखने के बाद उन लोगों को भी कश्मीर में हुए भयंकर नरसंहार के बारे में पता चला है। अब तक मीडिया और प्रदर्शनों के जरिए कश्मीर पंडित अपने दर्द को बयां करते थे लेकिन विवेक अग्निहोत्री ने फिल्म बनाकर घर-घर में हिंसा की दास्तान को लोगों तक पहुंचा दिया है। कश्मीरी आतंकवादी ताकतें बेनकाब हो गई हैं। जिसके बाद कश्मीरियत और कश्मीर में शांति की बात करने वाले लोग इस कदर बौखला गए हैं कि उनके इशारे पर चंद मुट्ठीभर लोग विवेक अग्निहोत्री को धमकियां दे रहे हैं।

भाजपा शासित राज्यों में टैक्स फ्री हुई फिल्म

विवेक अग्निहोत्री की फिल्म का भारतीय जनता पार्टी ने खुलकर समर्थन किया है। जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं वहां इस फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया है और लोग लगातार इस फिल्म को देखने के लिए टिकटें बुक कर रहे हैं। 7 दिन में 97 करोड़ रुपए की कमाई करके ये फिल्म ब्लॉकबस्टर हो चुकी है और आज माना जा रहा है कि ये 100 करोड़ के क्लब में शामिल हो जाएगी।

पीएम मोदी से की थी मुलाकात

फिल्म की टीम ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात करके अपनी फिल्म का बारे में पीएम को बताया था। इसके अलावा गृहमंत्री अमित शाह से भी टीम ने मुलाकात की थी। विवेक ने उनको मिल रही धमकियों के बारे में सरकार में टॉप लेवल पर बैठे लोगों को अवगत कराया था। जिसके बाद मामले की गंभीरता को समझते हुए सरकार ने उन्हें सुरक्षा प्रदान करने का फैसला लिया है।.

द कश्मीर फाइल्स फिल्म को लेकर घाटी में कश्मीरी मुस्लिम भी अब मुखर हो रहे हैं। वह खुलकर कश्मीरी हिंदुओं के विस्थापन को अपनी हार और नाकामी बता रहे हैं। इसके साथ ही यह भी मान रहे हैं कि अगर उस समय कश्मीरी हिंदुओं को उनके मुस्लिम पड़ोसी रोकने का प्रयास करते तो आज द कश्मीर फाइल्स बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। अगर फिल्म बनती तो उसमें कश्मीरी मुस्लिम समाज का एक खलनायक चेहरा नजर नहीं आता। कश्मीर में चारों तरफ कश्मीरी नौजवानों की लाशों से भरे हुए कब्रिस्तान नजर नहीं आते। अब सच को स्वीकार कर गलती को दुरुस्त करने का समय है।

कश्मीर में हालांकि द कश्मीर फाइल्स सिनेमाहाल मेें प्रदर्शित नहीं है। इसके बावजूद कश्मीर के कई लोगों ने इस फिल्म को जम्मू में आकर या विभिन्न स्रोतों से प्राप्त कर देखा व जाना है। इनमें वह लोग भी हैं जो उस समय निजाम-ए-मुस्तफा का नारा लगा रहे थे, तो कई वह जो उस नारे का मूक समर्थन कर रहे थे।

कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ बिलाल बशीर ने कहा कि आप कश्मीरी पंडितों के विस्थापन को नहीं झुठला सकते। अगर यह कहेंगे कि कश्मीरी हिंदुओं 50 मरे हैं और कश्मीरी मुस्लिम 500 तो भी कश्मीरी मुस्लिम अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते। कश्मीरी हिंदुओं के विस्थापन के लिए तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन को जिम्मेदार ठहराने वालों को आज जवाब देना है। उन्हें बताना चाहिए कि आखिर क्या वजह थी कि कश्मीरी मुस्लिमों ने अपने पड़ोसी कश्मीरी हिंदुओं को विस्थापन करने से क्यों नहीं रोका। मतलब यह कि वे प्रत्यक्ष-परोक्ष तरीके से उनके विस्थापन के हक में थे।

हमें कश्मीरी हिंदुओं से सामूहिक रूप से माफी मांगनी चाहिए : पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट के महासचिव और लेखक जावेद बेग ने कहा कि मेरे घर से कुछ ही दूरी पर संग्रामपोरा बीरवाह में 21 मार्च, 1997 को सात कश्मीरी ङ्क्षहदुओं को उनके घर से बाहर निकालकर कत्ल किया गया था। वह नवरोज की रात थी। नवरोज का इस्लाम में क्या महत्व है, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। क्या उस समय किसी हुर्रियत नेता ने ङ्क्षनदा की थी, नहीं की। ऐसी एक नहीं अनेक घटनाएं हैं। हमें तो कश्मीरी हिंदुओं से सामूहिक रूप से माफी मांगनी चाहिए। हमसे जो पहले की पीढ़ी है, जिसमें मेरे वालिद भी शामिल हैं, अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं कर पाए।

हमने कश्मीरी ङ्क्षहदुओं का पलायन क्यों नहीं रोका : उदारवादी हुर्रियत से जुड़े एक वरिष्ठ अलगाववादी ने कहा कि हमें द कश्मीर फाइल्स से परेशान होने की नहीं बल्कि अपने गिरबां में झांकने की जरूरत है। अगर कोई मुझसे पूछेगा कि कश्मीर में हमारा एजेंडा क्यों नाकाम हुआ तो मैं उसे इसे फिल्म से सबक लेने को कहूंगा। यह फिल्म हम जैसे उन कश्मीरी मुस्लिमों को कठघरे में खड़ा करती है, जो कश्मीरी हिंदुओं के बिना कश्मीर को अधूरा बताते हैं। यह फिल्म हमसे सवाल करती है कि हमने क्यों नहीं विस्थापन रोका।

तब लगता था कश्मीरी हिंदुओं को भगाओ, आजादी मिल जाएगी : आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के प्रवक्ता रह चुके एक पूर्व आतंकी कमांडर ने कहा कि मैंने आजादी के नाम पर नहीं, इस्लाम के नाम पर ही बंदूक उठाई थी। हम भारत से आजादी इसलिए मांगते रहे कि हम मुस्लिम हैं और कश्मीर में मुस्लिमों का ही राज चाहिए था। उस समय लगता था कि आजादी आज मिल जाएगी, बस कश्मीरी हिंदुओं को भगाओ। जब यहां लोगों को होश आया तो पता चला कि सब बंदूक के गुलाम हो चुके हैं। मैं यहां कई लोगों को जानता हूं, जिन्होंने आजादी व इस्लाम के नाम पर बंदूक उठाने वालों का इस्तेमाल किया। क्या किसी ने कश्मीरी हिंदुओं की संपत्ति की हिफाजत की है, नहीं। उसे खरीदा है या फिर उस पर कब्जा किया है।

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