जीवन में बरसाना होगा कश्मीरियत का रंग!
होली के अवसर पर हर नागरिक को लेना होगा शपथ एक भारत श्रेष्ठ भारत के लिए प्रयासरत रहने का
कश्मीर फाइल्स फिल्म से जनित उत्तेजना को देना होगा सृजनात्मक दिशा
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
✍️गणेश दत्त पाठक
स्वतंत्र टिप्पणीकार
कश्मीरियत का भाव हमारे राष्ट्र की सांस्कृतिक विविधता का परिचायक रहा है। कश्मीरियत सद्भाव की सरिता की अनवरत बहती धारा रही है। कश्मीरियत जम्हूरियत और इंसानियत की आधारशिला रही है। पर सद्भाव की सुनहरी वादी पर दहशतगर्दी ने नजर लगा दी। चंद सियासी ताकतों के नापाक मंसूबों ने फिज़ा में जहर घोल दिया। कश्मीर फाइल्स फिल्म ने कश्मीर के एक काले अध्याय की त्रासदी के चित्रांकन से भारतीय जनमानस को उद्वेलित कर दिया हैं। इसी क्रम में रंगों का त्योहार होली भी आ गया हैं। लेकिन सेक्यूलर सोच के साथ सेक्यूलर व्यवहार को धरातल पर लाते हुए एक भारत और श्रेष्ठ भारत के सपने को पूरा करने के लिए आवश्यक है कि राष्ट्र का हर नागरिक संकल्प करना होगा कि वह सदैव अपने जीवन में , विचारों में कश्मीरियत का रंग बरसाता रहेगा।
हिमालय की वादी में स्थित कश्मीर की मनोरम फिज़ा ने सदा से मानवीय आकांक्षा को आकर्षित किया हैं। वहां की वादियों का नैसर्गिक दृश्य अनंतकाल से सुकून का अहसास कराया है। ऋषि कश्यप की धरती कश्मीर ने वैदिक काल से ही मानवता को सद्भाव का संकेत दिया है। कश्मीर में हिंदू और बौद्ध तो पहले से ही रहे फिर मुस्लिम और सिख भी वहां आ गए। सर्व पंथ सद्भाव की बहती त्रिवेणी ने कश्मीरियत के भाव को समय समय पर संजीदा किया है। कश्मीर के सुल्तान जैनुल आबदिन ने भी कश्मीरियत के भाव को बरकरार रखने में अहम योगदान दिया था।
कश्मीर की संस्कृति में चाहे मां ज्वालामुखी की पूजा की बात हो या हजरत बल दरगाह पर सजदा की बात या हो होली के रंगों के त्योहार की बात हो या ईद पर इबादत की बात, सदैव कश्मीरियत के भाव ने कश्मीर की वादियों को सदा सद्भाव की रोशनी से आलोकित किया है। यहीं कश्मीरियत इंसानियत का संदेश भी देती रही है।
लेकिन कश्मीर की भू राजनीतिक स्थिति, पाकिस्तान के अस्तित्व, सियासत के दावपेंच, दहशतगर्दों के नापाक मंसूबों और कुछ स्थानीय द्वेषभाव ने कश्मीरियत के भाव को खासा नुकसान पहुंचाया हैं। स्थिति इतनी बदतर हो गई की कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्म के चित्रांकन के लिए त्रासद पटकथा की रूप रेखा तैयार हो गई। कश्मीरी पंडितों के साथ जो अमानवीय व्यवहार हुआ, वह कश्मीरियत के भाव को शर्मशार करता हैं। निर्दोषों की हत्या, महिलाओं के साथ बलात्कार, मासूमों पर दरिंदगी, संपति का तहस नहस हो जाना, कश्मीरियत के संदर्भ में एक काला अध्याय ही है। जिसकी सिर्फ निंदा ही की जा सकती है जो न तो कश्मीरियत से तालमेल रखती हैं और न इंसानियत से।
निश्चित तौर पर कश्मीर के उस काले अध्याय से संबंधित सत्य के कश्मीर फाइल्स में चित्रांकन से राष्ट्रीय स्तर पर उत्तेजना का माहौल बना है। लेकिन एक भारत श्रेष्ठ भारत के लिए उस उत्तेजना को सृजनात्मक दिशा देना समय की आवश्यकता है। हम एहसास की भावना, संवाद की परंपरा,सतर्कता, सजगता, जागरूकता का कलेवर ही कश्मीरियत के भाव को जिंदा रख सकता है। रंगों का त्योहार होली तो वैसे भी समाज में सद्भाव को सुप्रतिष्ठत करनेवाला एक महान पर्व हैं। इस अवसर पर राष्ट्र के हर नागरिक का यह पुनीत कर्तव्य है कि वह कश्मीरियत के भाव के प्रति संजीदगी दिखाए और सेक्युलर सोच ही नहीं सेक्यूलर व्यवहार को भी अपनाएं ताकि कश्मीरियत का भाव राष्ट्र को संजीवनी देता रहे। फिर तो कश्मीरियत का बरसता रंग कश्मीर की वादियों में भी सद्भाव की अविरल सरिता बहा देगा जिससे नापाक मंसूबे स्वतः ही तिरोहित हो जायेंगे।
एक भारत, श्रेष्ठ भारत।
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