बिहार में शराबबंदी का सच,पुनर्विचार की जरूरत
✍️: आलेख – समरेंद्र कुमार ओझा
श्रीनारद मीडिया –
जैसा कि हम सभी को पता है कि बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बाबजूद पिछले तीन-चार दिनों में लगभग 40 लोग असमय काल के ग्रास बन चुके है।हमारे राजनेता होली के अवसर पर हुई एक खास बीमारी से हुई मौत बताकर अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे है तो पुलिस प्रशासन इसे बीमारी से हुई मौत और परिजन दबे मुंह शराब पीने से हुई मौत बता रहे है।
हर मामलें में जो एक चीज सामान्य तौर पर देखा गया कि मौत के बाद कथित तौर पर परिजनों द्वारा बिना देरी किये शव का अंतिम संस्कार करवा दिया गया और अंतिम संस्कार सम्पन्न होने के बाद हमारी पुलिस को यह सूचना मिली।हास्यास्पद तो यह लगता है कि पूरे बिहार की पुलिस सो रही है और लगभग हर जगह उसकी नींद मौत और शव के अंतिम संस्कार के बाद ही खुल रही है।कहीं चोरी-छिपे आधी रात को लाशें जला दी गईं, तो कहीं प्रशासन के दबाव में परिजनों ने बीमारी का हवाला देकर पोस्टमॉर्टम तक कराने से इंकार कर दिया।
होली पर भागलपुर, बांका, मधेपुरा और सीवान जैसे जिलों से बड़ी संख्या में मौतों की खबरें आईं, जबकि कई जगहों पर तो इन खबरों को भी दफना दिया गया होगा। जिन मृतकों का पोस्टमॉर्टम हुआ उनकी मेडिकल रिपोर्ट में शराब की पुष्टि हुई है। लेकिन हैरानी की बात ये है कि जिस भागलपुर जिले में कथित जहरीली शराब से बीते दिनों में सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं, वहां के डीएम ने ये कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि परिजनों ने पोस्टमॉर्टम कराने की इच्छा नहीं जताई, इसलिए उनका पोस्टमॉर्टम नहीं कराया गया।
जबकि, बांका के डीएम और एसपी ने बिना पोस्टमॉर्टम कराए ही इन मौतों के पीछे जहरीली शराब होने की बात को सिरे से नकार दिया।पूरे देश विदेश में पुलिस की इस कार्यशैली से बिहार,बिहारी और नीतीश कुमार उपहास के पात्र बने हुए है। ज्ञात हो कि इन्ही नीतीश कुमार के द्वारा बिहार में गांव-गांव तक शराब के ठेके बांटकर लोगों को शराबी बना दिया गया और उसके बाद अचानक बिहार में शराब बंद करवा दी गई।जिसके बाद लाखों लोग जेल में चले गए। शराबबंदी के बावजूद भी गरीब लोग शराब बेचने लगे समाज में नशामुक्ति होना चाहिए, लेकिन सीएम नीतीश डंडा के जोर पर बिहार को नशामुक्त बना रहे हैं,इसका दूसरा भी तरिका है।
नौजवान अगर शराब के शिकार हैं तो,उन्हें स्पोर्ट्स में लगाईए, उनको अन्य क्षेत्र में लगाइए बिहार में लघु उधोग पर ध्यान दीजिए रोजगार की व्यवस्था कीजिये और सबसे अहम तो यह कि शराब को लेकर पहले जनजागृति अभियान चलाइये।दरअसल, शराबबंदी के बाद बिहार में देशी शराब का धंधा अप्रत्याशित तौर पर बढ़ चुका है। बिहार के गांव-गांव में कच्ची शराब की भठ्ठियां खुल चुकी हैं, जहां बनने वाली शराब जानलेवा साबित हो रही है।सिर्फ पाउच में मिलने वाली देशी शराब ही जान नहीं ले रही, बल्कि शराब के धंधेबाज विदेशी शराब की बोतलों में भी मिलावटी शराब बेच रहे हैं, जिससे जानें जा रही हैं।
पहले सस्ती विदेशी शराब पीने वाले अवैध शराब महंगी होने की वजह से देशी शराब पीने लगे हैं।इसके आलावा बिहार में ड्रग्स का इस्तेमाल भी काफी बढ़ गया है और युवा दूसरे तरीके के नशों की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जो ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है।शराब के धंधेबाजों ने बिहार में एक समानांतर अर्थव्यवस्था खड़ी कर ली है।आरोप है कि बड़े शराब माफिया दूसरे राज्यों में बैठकर अपना सिंडिकेट चला रहे हैं और बिहार में पुलिस छोटे धंधेबाजों को पकड़कर अपनी पीठ थपथपाती रहती है।दावा है कि प्रशासन भी नीचे से लेकर ऊपर तक इस अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन चुका है।
हालांकि, बिहार में शराब के धंधेबाजों पर लगाम लगाने के लिए नीतीश कुमार ने पूरे पुलिस महकमे को लगाया हुआ है। अब तो घर-घर सर्च ऑपरेशन के साथ ही बिहार पुलिस और मद्य निषेध विभाग नदियों में मोटरबोट का भी इस्तेमाल कर रही है।इतना ही नहीं, हवा से नजर रखने के लिए बिहार सरकार हेलीकॉप्टर और ड्रोन की मदद ले रही है। लेकिन इन सारे प्रयासों का कोई खास नतीजा नजर नहीं आ रहा, सरकार न तो शराब के धंधेबाजों पर लगाम लगा पा रही है और न ही उसका सेवन करने वालों पर।
बिहार में खुद पुलिस और प्रशासन पर शराब माफियाओं के साथ मिलकर शराब बिकवाने का आरोप लगता रहता है।कई जगहों पर तो थाने से ही शराब का धंधा चलाने की खबर आती रही है।
ये आरोप सिर्फ आम लोग नहीं, बल्कि सत्ताधारी दलों के नेता भी लगाते रहे हैं। चाहे बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल हों या हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी या फिर विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा, पुलिस और शराब माफियाओं की सांठ-गांठ के आरोप लगाकर सहयोगी दलों के नेताओं ने कई मौकों पर नीतीश कुमार के लिए असहज स्थिति खड़ी की है।
विपक्ष के साथ ही एनडीए के घटक दल भी शराबबंदी कानून की समीक्षा की मांग कर चुके हैं। सिर्फ नेता ही नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कई मौकों पर बिहार सरकार के शराबबंदी कानून पर सवाल खड़े किए हैं।अदालतों पर लगातार बढ़ते दबाव को देखते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एन वी रमना शराबबंदी कानून को अदूरदर्शी फैसला तक करार कर चुके हैं। बिहार की भौगोलिक स्थिति, सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार और लोगों का नशे के प्रति रुझान वो कारक हैं, जो शराबबंदी की व्यावहारिकता पर भी हमेशा सवाल खड़े करते रहे हैं।
और सीएम नीतीश समाज सुधार यात्रा अभियान चला रहे हैं।शराबबंदी के बारे में सीएम नीतीश को फिर से विचार करना चाहिए।शिक्षकों को भी अपनी सनक से शराब तस्करों की जानकारी हासील करने के कार्य मे लगाने का फरमान जारी कर दिया गया।जहरीली शराब से लोग मर रहे हैं।लेकिन प्रशासन का कहना है कि शराब पीने से लोगों की मौत नहीं हुई है।पुलिस अब अपनी नौकरी बचाने में लगी हुई है।यह सच है कि बगैर जनजागरुकता के शराबबन्दी कभी सफल नही हो सकती बल्कि शराबबंदी से दुनिया में बिहार मजाक का पात्र बना हुआ है।2020 में फिर से मुख्यमंत्री बनने के बाद शराबबंदी, नीतीश कुमार के गले की फांस बनता जा रहा है।बीते डेढ़ साल में जहरीली शराब से जितनी मौतें हुई हैं, शायद इससे पहले कभी नहीं हुईं। हाल ही में नीतीश कुमार ने अपनी समाज सुधार यात्रा के दौरान बिहार के कोने-कोने में जाकर लोगों को शराबबंदी के प्रति जागरुक करने की कोशिश की। इसके इतर भी वो तमाम मौकों पर शराबबंदी को जरूरी बताते हुए लोगों से इस कानून का पालन करने की अपील करते रहे हैं।
लेकिन जो महिलाएं शराबबंदी के मुद्दे पर नीतीश कुमार के साथ खड़ी नजर आती थीं, उनमें से कई अब इसके विरोध में हैं। इसका कारण है उनके किसी अपने का जेल में होना और तमाम कोशिशों के बावजूद बेल न मिलना।सुप्रीम कोर्ट की फटकार, जेलों पर बढ़ते दबाव और लोगों में बढ़ते गुस्से को देखते हुए ही नीतीश कुमार ने शराबबंदी कानून में दोबारा संशोधन करने का फैसला लिया है, जिसमें शराब पीकर पकड़े जाने वालों को कुछ रियायतें दी जाएंगी।लेकिन जहरीली शराब से होने वाली मौतों में आई इस अप्रत्याशित वृद्धि को रोकने का कोई भी प्लान फिलहाल सरकार के पास नजर नहीं आ रहा।अब समय आ गया है कि मुख्यमंत्री अपनी जिद छोड़ बिहार के सभी राजनीतिक दलों,समाजसेवियों व वुद्धिजीवी वर्ग के साथ बैठकर एक बार फिर शराबबंदी और इससे जुड़े तथ्यों पर विचार करें और फिर उचित फैसला करें जिससे बिहार ,बिहारी और खुद मुख्यमंत्री का सर गर्व से ऊंचा उठ सके।
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