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हमारा दुख है इस बर्बरता पर सब कैसे पत्थर बन बैठे थे।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म लिबरल्स, कम्युनिस्ट, आतंकवादी और इस्लामी कट्टरपंथ सबके गठजोड़ को उजागर भी करती है और उनके द्वारा निर्मित छद्म नैरेटिव को ध्वस्त भी करती है। शिकारा, मिशन कश्मीर आदि पचासों फिल्मों और हजारों-लाखों किताबों से सच छिपाने की कोशिश लगातार की गयी, पर एक फिल्म उन सब पर भारी है। पहले मुझे लगता था कि लेफ्ट के नैरेटिव, उनके छद्म एकेडेमिक्स को ध्वस्त करने में कमसे कम दो दशकों का समय लगेगा। लेकिन, विवेक अग्निहोत्री ने सिद्ध कर दिया है कि सत्य की एक लौ भी घनघोर तिमिर को नष्ट करने में समर्थ है। कुछ दिनों पहले एक पांडेय जी की कश्मीर पर किताब आयी थी। लिबरल गैंग ने खूब प्रचारित किया, लेकिन झूठ कब तक टिकता है?

इस्लाम का इतिहास बर्बरता और सभ्यताओं की हत्या का इतिहास है। देश विभाजन और कश्मीर त्रासदी हमारे बिल्कुल निकट अतीत का सत्य है। एकेडेमिक्स का काम बर्बर सभ्यताओं को मनुष्य बनाना है न कि उनकी बर्बरता को जस्टिफाई करना और छिपाना। आज का एकेडेमिक्स , कविता , फिल्म सब इस बर्बरता और हिंसा को मोहक बनाने के माध्यम मात्र हैं। विवेक अग्निहोत्री की एक फिल्म ने इन सबको एक झटके में ध्वस्त कर दिया है।

लिबरल गैंग के लिए फिल्म मुस्लिम विरोधी है। हत्यारों को हत्यारा कहना लिबरल के लिए मुस्लिम विरोधी है। ऐसे ही लिबरलों से बर्बरता का पोषण होता है।आज का कश्मीरी मुसलमान यदि पांचो वक्त नमाज पढ़ते समय भी अपनी बर्बरता के लिए माफी मांगे, तो यह भी कम ही होगा। आज कश्मीरी हिंदुओं को न्याय चाहिए, उन्हें अपना कश्मीर चाहिए। अपना घर चाहिए ।

पूरी सुरक्षा के साथ उन्हें अपने घर पहुँचाया जाए। जैसे ही यह कवायद शुरू होगी, लिबरल गैंग, अर्बन नक्सल और उनके विदेशों में बैठे आका फिर मातम मनाएँगे, फिर कविताएं और किताब लिखेंगे, फिर आजादी -आजादी के नारे गूँजेंगे। लेकिन , तब भी कश्मीर फाइल्स लोगों के जेहन में होगी। लोग उनकी झूठी कविताओं, झूठी किताबों पर हँसेंगे । नाखून बढ़ते रहेंगे और हम उन्हें काटते रहेंगे। विवेक अग्निहोत्री की यह फिल्म बर्बर सभ्यता के शैतानी नाखूनों को काटने का औजार है। सभ्यता और संस्कृति के हत्यारे दुखी हैं। दुखी हम भी हैं। उनका दुख है उनकी किताबों, फिल्मों के सच(?) को लकवा मार गया है
हमारा दुख है इस बर्बरता पर सब कैसे पत्थर बन बैठे थे।

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