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 संत के अंदर अगर अहंकार की प्रवृत्ति आती है तो उसके सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं ःममता पाठक - श्रीनारद मीडिया

 संत के अंदर अगर अहंकार की प्रवृत्ति आती है तो उसके सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं ःममता पाठक

संत के अंदर अगर अहंकार की प्रवृत्ति आती है तो उसके सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं ःममता पाठक
श्रीनारद मीडिया‚ सिधवलिया‚ गोपालगंज (बिहार)

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संत को अहंकारी नहीं होना चाहिए । संत के अंदर अगर अहंकार की प्रवृत्ति आती है तो उसके सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं। उक्त बातें सिधवलिया रेलवे स्टेशन के समीप आयोजित संगीतमय श्रीरामकथा महायज्ञ के तीसरे दिन राष्ट्रीय प्रवक्ता सुश्री ममता पाठक ने कही। उन्होंने कहा कि जब नारद मुनि को अहंकार हुआ तो भगवान ने माया रचकर भक्त को अहंकार से बचाया।

वहीं श्री कृष्ण ने। भी द्वापर में अर्जुन के अहंकार को भी नष्ट किया और उन्हें मार्गदर्शन देकर महाभारत की लडाई में जीत हासिल कराया।तीसरे दिन शिव विवाह की कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि जो काल को गले मे डालकर रहते हैं वो शिव हैं। साधारण मनुष्य जब विवाह करने जाता है तब काम पर सवार होकर जाता है जबकि शिव धर्म की सवारी करके विवाह करने गए थे ।

शिव के विवाह में संहार करने वाले जीव ही बाराती थे। उनके द्वारा गाए भजन ”सज रही भोले की बरात,भोले शंभु आ जाना” पर श्रोता झूमते नजर आए। तृतीय दिवस की कथा का शुभारंभ स्थानीय प्रखंड प्रमुख माला देवी और उपप्रमुख रंभा देवी ने कथा प्रवक्ता को अंगवस्त्र और पुष्पगुच्छ प्रदान कर किय।

 

मुख्य अतिथि प्रखंड प्रमुख माला देवी ने कहा कि मनुष्य जीवन मे कथा का अभिन्न योगदान होता है। कथा का श्रवण कर मनुष्य अपने जीवन की व्यसन को त्याग देता है। मौके पर त्रिलोकी प्रसाद,पवन अग्रवाल, हरेंद्र गुप्ता,राहुल पांडेय,अरबिंद सोनी,धूपलाल सोनी,भोला साह,रजनीश कुमार,बुलेट कुमार सहित हजारों श्रद्धालु उपस्थित थे ।

वहीं, प्रबचन सुनने लिए काफी महिला पुरुष श्रद्धालुओं की भीड़ आधी रात तक लगी रहीं। यहाँ कई गांवों के लोग इकट्ठा होकर कथा का श्रवण कर रहे थे ।

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