बिहार में शराबबंदी के बावजूद लोग शराब पीने से मर रहे हैं,क्यों?

बिहार में शराबबंदी के बावजूद लोग शराब पीने से मर रहे हैं,क्यों?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार में शराबबंदी है फिर भी लोग शराब पीने से मर रहे हैं तो दोष सरकार की है अथवा जहरीली शराब पीकर मरने वाले उस व्यक्ति की? चूँकि सरकार ने तो शराब बंद कर दी है, भले वह कागज़ी पैरहन ही क्यों न हो! बिहार में शराब पीने वाले कि स्थिति ऐसी है कि यदि उसे शराब नहीं मिलता है तो नशे के लिए डीसी (प्रचूर मात्रा में अल्कोहल युक्त कफ सीरप) पीता है और यह डीसी बिहार में प्रत्येक चौंक-चौराहे की चाय और पान की दुकान पर उपलब्ध है।

जहरीली शराब पीने से मरने वाले अधिकतर बैकवर्ड और दलित है। और ज़हरीली शराब का निर्माण इन्हीं आर्थिक रूप से कमजोर बैकवर्ड और दलित के घर में होता है जिसे बिहार में ‘ठर्रा दारु’ कहते हैं। दावे के साथ कह सकता हूँ कि मरने वाले लोग ज्यादा से ज्यादा ठर्रा दारु अथवा ‘डीसी’ पीते हैं। इसका एकमात्र कारण है ‘विस्की’ या ‘रम’ पीने के लिए इन लोगों के पास पैसा नहीं होता है चूँकि विस्की / रम पूंजीपति बेचता है और पूंजीपति ही उसे पीता भी है। धन की कमी के कारण बेचारे जहरीली शराब / पदार्थ पीकर मर रहे हैं।

ऐसा भी नहीं है कि बिहार में विदेशी शराब नहीं मिलती है, बिहार में सभी कम्पनियां की विदेशी शराब उपलब्ध है। आप किस कंपनी और किस राज्य का शराब पीना चाहते हैं बस्स, आपकी च्वाइस होनी चाहिए! रेट लगभग समान है, पौवा 300₹, आधा 600₹, फुल 1200₹।

अब सवाल उठता है कि बिहार में शराबबंदी के बावजूद लोग शराब पीने से मर रहे हैं, इसका मतलब है लोगों को शराबबंदी से कोई लेना देना नहीं है तो क्या बिहार सरकार को शराब बेन संबंधित कानून हटा लेनी चाहिए? इस पर आगे विस्तार से बात की जायेगी, कहकर टाल देना ख़ुद के पैर में कुल्हाड़ी मारने जैसा है। कोई भी मुझसे शराबबंदी से संबंधित सवाल पूछता है तो मैं सबसे पहले शराब बेन को हटाने के लिए कहूँगा। अथवा सरकार शराब बेन नहीं हटाना चाहती है तो मैं कहूंगा सरकार को पुलिस प्रशासन का बल प्रयोग करके बिहार के प्रत्येक चौंक-चौराहे पर चाय, पान की दुकानें और नव-निर्मित झुग्गी झोपड़ी पर सख्ती से कार्रवाई करनी चाहिए और इसके लिए समाज के प्रबुद्ध वर्ग को खुलकर सरकार और पुलिस प्रशासन को पूर्णरूपेण शराबबंदी के लिए साथ देनी चाहिए।

बिहार में एक और समस्या है, प्रबुद्ध वर्ग सामने आये तो कैसे आये? नशेड़ी और नशीली पदार्थ बिक्रेता किसी न किसी प्रबुद्ध का बच्चा ही बेच और पी रहा है। लोगों को जेहन से इन बातों को निकालना होगा कि छोड़ों न मुझे क्या मतलब है… कुछ प्रबुद्ध शराब और डीसी बिक्रेता की उन्नति से प्रसन्न भी है चूँकि डीसी और दारू बेचकर फलाँ आदमी कार से घूमने लगा। अब उसका देखा सुनी से अन्य लोग भी आगे आने लगा। गाँव घर की यह स्थिति है कि कम उम्र का बच्चा डीसी, स्मैक, गांजा, ठर्रा दारू का नित्य प्रति सेवन करता है। अर्थात कह सकते हैं कि शराबबंदी के बाद से बिहार में शराब विक्रेताओं की एक लंबी होड़ लगी है कौन कितना कमा रहा है? बिक्रेताओं की इस होड़ में नित्य प्रति 12-15 साल का बच्चा शामिल है।

 

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