असुर अधिक समय तक राज किया है,कैसे?
नैतिकता व देवत्व का दुश्मन था ।
अशांति ,हत्या , अत्याचार व तमोगुण की स्थापना उसके शासन का आधार था ।
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
अगर हम धार्मिक इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि सबसे अधिक राज असुर ने किया है और देवताओं से असुरों की संख्या भी अधिक थी क्योंकि जब युद्ध होता था तो असुरों की ओर से हजारों रथ व करोड़ो सेना निकलती थी ।वैसे देवताओं में राय व एकता का अभाव था क्योंकि हर असुर को कोई देवता ही बलशाली व अमरत्व का वरदान दे देते थे जिसके चलते चराचर जगत पर अत्याचार करने लगता था ।जब पूरा जगत त्राहि माम् त्राहि माम् करने लगता था तब कोई राम ,कोई कृष्ण या कोई नारी शक्ति अवतरित होती थी तथा दैत्यों का संहार कर नैतिक ,शांत ,धर्मिक ,वैज्ञानिक व विकसित राज्य की स्थापना करते थे । देव शक्ति दैत्यों को परास्त कर पताल लोक भेज देते थे।
फिर भी असुर बाज नहीं आते थे अपनी हरकत व षड्यंत्र से हमेशा देवशक्ति को परास्त करने में लगे रहते थे ।यदपि असुर भी ज्ञानी ,विज्ञानी ,बलशाली होते थे परंतु इन सबके बावजूद भी उनकी राक्षसी प्रवृति बनी रहती थी जिसको बरकरार रखने में तथाकथित देवताओं का भी कम रोल नहीं होता था ।वह हजारों व लाखों की संख्या में मर जाना पसंद करता था परंतु इस जगत में देवता शांति अमन चैन से राज करें यह बात कतई बर्दाश्त नहीं था । असुर इतने चतुर थे कि देवताओं का वेश धारण कर जगत में आसुरी शक्ति को प्रबल बनाने में लगे रहते थे ।
जिस अभियान में देवताओं का भी एक वर्ग असुरों को मदद करता रहता था । कुछ तो ऐसे थे जो देवकुल में जन्म लेते थे पर वे अपने व्यवहार ,संस्कार ,अपने अनैतिक आचरण से असुरों को भी पीछे छोड़ देते थे तथा जगत के लिये असुर से भी घातक होते थे ।जब जगत के लोग अमन चैन से जी रहे होते थे उस समय असुर मायावी शक्ति व छल प्रपंच के द्वारा जगत में महामारी फैला दिया करते थे तथा जगत के लोगों को मरने पर खुशी व्यक्त करते थे ।हद तो तब होती थी ज्ञानी असुर भी खुशी व्यक्त करता था ।
यह नियम और था कि कोई देवता गलती करते थे तो कोई न कोई देवता उनको दण्डित करने के लिये आ जाता था ।पर कोई असुर गलती करें तो साक्ष्य नहीं है कि कोई दूसरा असुर उसको दण्डित करता हो ।जब तक देव का राज रहता है तबतक असुर संघ चैन से बैठा नहीं रहता । हलाकि कुछ असुर दानी व धर्मात्मा भी हुए परन्तु इतना अधिक दानी हो जाते थे कि बैलेंस नही बना पाते थे फलतः जनता निकम्मी व कुमार्गी हो जाती थी । जैसे दैत्य राज बलि । इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि असुर न कभी सुधरे है और न ही भविष्य में सुधरेंगें ।
आभार-के.के. सिंह
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