राहुल सांकृत्यायन ने कैसे कर डाली डेढ़ सौ ग्रंथों की रचना?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
उत्तरप्रदेश में रानी की सराय क्षेत्र के ग्राम पंदहा में जन्मे महापंडित राहुल सांकृत्यायन की शिक्षा भी वहीं हुई, लेकिन किशोरावस्था में शादी के बाद उन्होंने घर छोड़ दिया। लौटे तो केदारनाथ पांडेय की जगह राहुल सांकृत्यायन बनकर। मिडिल की शिक्षा पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई तो नहीं की, लेकिन डेढ़ सौ से अधिक ग्रंथों की रचना कर डाली। दुर्लभ ग्रंथों की खोज में हजारों मील नदियों और पहाड़ों के बीच भटकने के बाद उन ग्रंथों को खच्चर पर लादकर स्वदेश लाए।
हालांकि उन्हें घूमने की प्रेरणा उनके फौजी नाना रामशरण पाठक द्वारा सुनाई गई जंगलों,पहाड़ों और शहरों की कहानियों से प्राप्त हुई थी।जिज्ञासु और घुमक्कड़ प्रवृत्ति के चलते राहुल ने घर-बार त्यागकर क्रमशः साधुवेषधारी संन्यासी से लेकर वेदांती, आर्य समाजी, किसान नेता और बौद्ध भिक्षु के साथ साम्यवादी चिंतक बनने तक का लंबा सफर तय किया। हिमालय की 17 बार यात्रा करने वाले राहुल विश्व के इकलौते साहित्यकार रहे। आठ भाषाओं में साहित्य रचना करने वाले तथा 30 से अधिक भाषाओं के जानकार राहुल ने जनसामान्य तक अपनी रचना को पहुंचाने के लिए हिंदी भाषा को चुना। इतना ही नहीं मास्को में अपने छह वर्ष के प्रवास के दौरान उन्होंने बतौर प्राध्यापक भारतीय भाषाओं का प्रचार किया।
हिन्दी साहित्य के युग परिवर्तनकार साहित्यकार माने जाने वाले महापंडित राहुल का जन्म नौ अप्रैल 1893 में रानी की सराय के निकट पंदहा में हुआ था, जबकि उनका पैतृक घर चक्रपानपुर के निकट कनैला में था। अपने पिता गोवर्धन पांडेय व माता कुलवंती के चार पुत्र व एक पुत्री में सबसे बड़े राहुल के बचपन का नाम केदारनाथ था।श्रीलंका में बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने के बाद राहुल बने तो काशी के विद्वानों ने उन्हें महापंडित की उपाधि से विभूषित किया। हालांकि, घर से निकलने के बाद राहुल ने आजमगढ़ की तीन बार यात्रा की।
गांव पहुंचने पर वह ठेठ गंवई हो जाते थे। वर्ष 1957 में गांव में पहुंचते ही ग्रामीण इकट्ठा हो गए। गांव के 82 वर्षीय बेचई यादव तथा इन्हीं के हम उम्र बृजबिहारी पांडेय ने बताया कि उस दौरान राहुल ने अपने बचपन के साथी नवमी गोंड़ जो खेत में घास काट कर रहे थे, उनको बुलाते हुए कहा कि काहो का हाल हौ, जवाब में उन्होंने कहा कि ठीक बा, लेकिन तू त बुढ़ाई गइला। जवाब में राहुल ने भी कहा कि तुहूं त बुढ़ाई गइला।
चक्रपानपुर से कनैला जाते समय देखा कि चक्रपानपुर -कनैला मार्ग टेढ़ा बन रहा है। यह देख उन्होंने मजदूरों से पूछा तो पता चला कि भाई श्यामलाल की जमीन पड़ रही है और उन्होंने रोक दिया है। इस कारण मार्ग टेढ़ा करना पड़ा है। घर जाकर राहुल ने श्यामलाल से कहा कि तुमने हमारा मार्ग रोक दिया। जबाब में श्यामलाल ने कहा कि नहीं भैया, वह हमारी जमीन है। राहुल ने कहा कि कल चक्रपानपुर दिल्ली का चांदनी चौक बन जाएगा और यह जमीन तुम्हारी नहीं रहेगी। इसके बाद श्यामलाल सीधा मार्ग बनवाने को तैयार हो गए। आज चक्रपानपुर का विकास देख कहा जा सकता है कि राहुल जी की भविष्यवाणी चरितार्थ हो रही है।
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