योद्धा महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी के बेर बेर नमन बा.
राहुल सांकृत्यायन के जयंती पर विशेष
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
जन्मतिथि : 9 अप्रैल 1893, पुण्यतिथि : 14 अप्रैल 1963
36 भाषा से बेसी भाषा के जानकार सुप्रसिद्ध साहित्यकार, स्वतंत्रता सेनानी, अध्यापक, इतिहासकार, यायावर, महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी के जयंती प बेर बेर नमन क रहल बा ।
‘ सब्बन् खनिकम् ‘ राहुल जी बुद्ध के एह वाक्य के अक्सर कहत रहले जवना के माने रहे ‘ सब कुछ क्षणिक बा’ यानि कि दुनिया में कवनो चीज अंतिम ना ह । हम कवनो सांच के एकाधिकार नइखी रखले । हम आपन काम करत बानी । आवे वाली पीढी आई आ हमरा काम के सुधारी । लेनिन के वाक्य के कोट करत रहले ‘ कुछउ अंतिम नइखे ।
राहुल सांकृत्यायन जी के संछेप में परिचय आ उहां के जिनगी के टाइमलाइन –
सन् 1893 ई. :
राहुल जी के जनम 9 अप्रैल 1893 के नाना किहां यानि कि पन्दह गांव जिला आजमगढ ( उत्तर प्रदेश) में भइल रहे , मूल गांव कनैला रहे । माई के नाव कुलवंती, बाबुजी के नाव गोवर्द्धन पाण्डेय रहे । राहुल जी के बचपन प इहां के नानाजी रामशरण पाठक जी के पुरा प्रभाव रहे । केदारनाथ पाण्डेय , राहुल जी के लइकाई प के नाव रहे जवन राहुल जी के नाना के धइल रहे । चार भाई आ एगो बहिन में राहुल जी सबसे बड़ रहले ।
सन् 1893 से 1905 तकले :
पन्दहा के नजीक रानी की सराय कस्बा में शुरुवाती पढाई । बनारस – बिंध्याचल ( 1902) में पहिला यात्रा आ एगारह साल के उमिर में ( 1904 में ) राम दुलारी जी से विवाह ।
[ राहुल जी लिखत बानी कि ‘ 11 साल के उमिर में बिआह हमरा खातिर एगो तमाशा रहे । जब हम अपना जिनगी के बारे में सोचेनी त हमरा लागेला कि जिनगी में समाज के प्रति बिद्रोह के पहिला बिआ एहिजे से जामल रहे । ]
सन् 1906 से 1909 तकले :
निजामाबाद के मिडिल स्कुल में दाखिला । ओहि घरी 1907 आ फेरु 1909 में घर से भाग के कलकत्ता चल गइल रहले ।
सन् 1910 से 1912 तकले :
सन्यास के ओर डेग बढल । अयोध्या, हरिद्वार, गंगोत्री , जमनोत्री, केदारनाथ, बदरीनाथ के यात्रा – घुमक्कड़ी के शुरुवात । काशी चहुंप के संस्कृत के पढाई । प्रयाग के यात्रा । मंत्रसाधना ।
सन् 1912 से 1913 तकले :
परसामठ ( छपरा) के महंथ के उत्तराधिकारी । वैष्णव साधु । नाव धराइल ‘ रामउदार दास ‘
सन् 1913 में :
परसा से पलायन, दक्षिण भारत के यात्रा । तिरुमिशी के मठाधीस के शिष्य । नया नाव धराइल ‘ दामोदराचारी ‘ । तमिल भाषा सीखले । तिरुमिशी से निकल के रामेश्वरम्, बंगलोर, विजयनगर, पुने-बंबई-नासिक-अहमदाबाद आदि जगहन के यात्रा ।
सन् 1914 में :
परसा वापसी । अयोध्या में तीन महीना । आर्य समाज से लगाव । आगरा के आर्य मुसाफिर विद्यालय में । एजुगा से लेख लिखाइल शुरु हो गइल ।
सन् 1915 में :
लाहौर में पढाई । आर्य समाज के प्रचारक के रुप में यात्रा । लखनउ से पहिला हाली बौद्ध साहित्य के बारे में जानकारी । काशी में बाबुजी के अंतिम दर्शन । पचास के उमिर ले हो जाए तकले आजमगढ में गोड़ ना धरे के प्रतिज्ञा ।
सन् 1916 में :
पंजाब से बंगाल तक के घुमक्कड़ी । संगे -संगे लाहौर, चित्रकुट आ काशी में अध्य्यन । बौद्ध संस्कृति के ओर झुकाव । कुशीनगर , बोध गया, लुम्बिनी आदि जगह प बौद्ध तीर्थन के यात्रा ।
सन् 1917 से 1920 तकले :
फेरु से तिरुमिशी चहुंप के संस्कृत शास्त्रन के अध्ययन , कुर्ग में चार महीना के प्रवास ।
सन् 1920 से 1921 तकले :
असहयोग आंदोलन के घरी राजनीति में प्रवेश । छपरा जिला में सत्याग्रह के आयोजन । बाढ पिड़ित के सेवा ।
सन् 1921 में :
गिरफ्तार, बक्सर जेल में 6 महीना । संस्कृत में बाईसवी सदी आ कुरानसार के लेखन \ जेल से छुटला के बाद जिला कांग्रेस के मंत्री । गया कांग्रेस में सक्रिय योगदान । कांग्रेस के जिला मंत्री के पद से इस्तीफा ।
सन् 1922 में :
नेपाल में डेढ महीना । वापस भारत अइला प गिरफ्तार । कुछ दिन बक्सर जेल में फेरु दु साल हजारीबाग जेल में । अध्य्यन आ लेखन काम । बाईसवी सदी आ कुरानसार के हिन्दी लेखन । कानपुर कांग्रेस खातिर प्रतिनिधि ।
सन् 1926 में :
मेरठ में हरनामदास ( बाद में भदंत आनंद कौसल्यायन ) से पहिला हाली भेंट । खैबर, कश्मीर, लद्दाख, पछिमी तिब्बत, किन्नौर के यात्रा । छपरा में राजनैतिक सहभागिता । गोहाटी कांग्रेस के प्रतिनिधि । श्रीलंका के विद्यालंकार बिहार विद्यापीठ में करीब 19 महीना ले पढवनी आ पालि अउरी बौद्ध साहित्य के अध्य्यन भी कइनी । त्रिपिटकाचार्य के उपाधि मिलल ।
सन् 1929 से 1930 तकले :
भारत वापस । नेपाल में अज्ञातवास । तिब्बत के यात्रा । काशी के पंडित सभा में महापंडित के उपाधि । बौद्ध भिक्षु बनले । नाव धराइल ‘ राहुल सांस्कृत्यायन’ । ‘बुद्धचर्चा’ नाव से ग्रंथ लिखनी ।
सन् 1931 से 1938 तकले :
सत्याग्रह में शामिल होखे से ले के युरोप के यात्रा, श्रीलंका , लद्दाख के यात्रा । जपान कोरिया, मंचुरिया, सोवियत आदि देसन में यात्रा । बिहार के भुकम्प प्रभावित क्षेत्र में सेवा कार्य । एहि बीचे टाईफाईड से ग्रसित । कइसहूँ जान बाचल । दु साल नेपाल में । तिब्बत के फेरु से यात्रा । पटना आ प्रयाग में लेखन काम \ लाहुल के यात्रा । एहि समयकाल में लेनिनग्राड में लोला से मुलाकात । लोला से शादी । रुसी पुत्र इगोर के जनम ।
सन् 1939 से 1942 तकले :
बिहार में किसान मजदूरन खातिर संघर्ष में शामिल । अमवारी किसान आंदोलन के नेतृत्व कइनी । लाठी से हमला । छपरा जेल में । छितौली किसान संघर्ष में गिरफ्तार । हजारीबाग जेल में । किताब ‘तुम्हारी क्षय हो’ आ ‘ जीने के लिए’ एहि समय लिखाइल । जेल से छुटला के बाद मुंगेर में कम्युनिस्ट पार्टी के स्थापना में शामिल । मोतिहारी में किसान सम्म्लेन के सभापति । वोल्गा से गंगा भी एह समय काल में लिखाइल रहे । एहि समयकाल में भोजपुरी के आठ गो नाटक के लेखन ।
1- जपनिया राछछ
2-देस-रच्छक
3-जरमनवा के हार निहिचय
4-ई हमार लड़ाई
5- ढुनमुन नेता
6- नइकी दुनिया
7- जोंक
8- मेहरारुन के दुरदसा
सन् 1943 में :
आजमगढ ना जाए के जवन प्रण कइले रहनी , 50 साल के भइला के बाद कनैला ( आजमगढ ) के यात्रा । पहिला पत्नी से मुलाकात ।
सन् 1943 से 1960 तकले :
देस – बिदेस में क जगह यात्रा जवना में सोवियत से ले के इंग्लैंड तकले शामिल बा । हिन्दी साहित्य सम्मेलन बंबई के सभापति एहि समय काल में बनल रहनी । घुमक्कड़ शास्त्र एहि समयकाल में लिखाइल रहे । पढाई लिखाई घुमाई लगातार जारी रहे । नैनीताल मसूरी में घुमे निकल गइनी । कमला पेरियार ( सांकृत्यायन) से तीसरा विवाह ।
अनेकन गो लेखन काम के संगे संगे यात्रा जारी रहे । एहि समय काल में कमला सांकृत्यायन जी से पुत्री जया आ पुत्र जेता के जनम । लेखन के अनेकन गो ऐतिहासिक आ दुर्लभ काम एह समय काल में भइल । चीन के यात्रा भी एहि समय काल में रहे । पालि, हिन्दी, संस्कृत आ बाकि क गो भाषा में किताब लिखनी ।
सन् 1961 से 1962 तकले :
दार्जलिंग ‘राहुल आवास’ के बाद श्रीलंका फेरु कलकत्ता वापसी । यादाश्त भुलाए के बेमारी । कलकत्ता में इलाज । मास्को में सात महीना इलाज ।
सन् 1963 में :
23 मार्च 1963 के वापस दार्जलिंग वापसी । 14 अप्रैल 1963 के दार्जलिंग के इडेन अस्पताल से राहुल जी लमहर यात्रा प निकल गइनी ।
राहुल सांकृत्यायन जी के सहकर्मी रहल रमेश सिन्हा, अली अशरफ आ इंद्रदीप सिन्हा के हिसाब से राहुल जी 34 भाषा के जानकारी रहनी । मित्र आ सहयोगी डॉ प्रभाकर माचवे भी लिखले बानी कि राहुल सांकृत्यायन 34 से बेसी भाषा के जानकार रहले । अपना लेखन कार्यकाल के 34-35 साल में राहुल सांकृत्यायन 50 हजार से बेसी पन्ना लिख चुकल रहनी ।
जदि राहुल सांकृत्यायन के पुरा जिनगी के जदि देखल बुझल जाउ त मालूम चली कि राहुल जी स्वाधीनता सेनानी , क्रांतिकारी किसान नेता, अध्यापक / लेक्चरर, कम्युनिस्ट नेता, उपन्यासकार, कहानीकार, गीतकार, नाटककार, निबंधकार, दार्शनिक, विचारक, धर्मभीरु, इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता रहनी ।
1947 में दूसरे अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन (गोपालगंज) के मंच पे राहुल सांकृत्यायन जी बोलनी कि –
” ”ई लोग के राज तबे नीमन चली, जब लोग हुसियार होई। राजनीति के बात दू चार गो पढुआ जाने, अब ए से काम ना चली। जवना से लोग आपन नफा-नोकसान समझे आ उ बूझे कि दुनिया जहान में का हो रहल बा तवन उपाय करे के पड़ी। एकर मतलब ई बा कि अब लोगवा के मूढ़ रहला से काम न चली। लोग कइसे सग्यान होई, एकर एके गो उपाय हवे कि सब लोग पढ़े-लिखे जाने। खाली लइके ना, बूढ़ो जवान के अंगुठा के निसान के बान छोड़ावे के परी। अंगरेज के राज रहल त ओकनी के फायदा एही में रहल कि समूचा हिन्दुस्तान के लोग मूढ़ बनल रहे। चोर के अजोरिया रात न लुभावे भावे।
लेकिन अपना देश में केहू बेपढ़ल ना रहे। एकर कौन रहता बा ? केहू भाई कही कि सबकरा के हिंदी पढ़ावल जाव। बाकी ई बारह बरिस के रहता ह। जो हिंदी में सिखावै-पढ़ावै के होई त पचासो बरिस में हमनी के सब लइका परानी पढ़ुआ ना बनब। आएवे हमनी के दसे-पनरह बरिस में समूचा मुलुक के पढा देवे के ह। कइसे होई ई कुलि… अपना भाखा में पढ़ल-लिखत कवनो मुसकिल नइखे। खाली ककहरे नू सोखे के परी।”
आखर परिवार बेर बेर नमन क रहल बा योद्धा महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी के ।
- यह भी पढ़े…….
- क्या पुराने योद्धाओं को सम्मान देने के साथ आत्म मंथन की आवश्यकता है?
- केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल ने मनाया’शौर्य दिवस
- सारण के डेरनी बाजार में याद किये गए शहीद सुरेश
- राहुल सांकृत्यायन की 129 जयंती समारोह पूर्वक मनाई गई
- अश्विनी ने सारण जिला का नाम किया रौशन