मुफ्त की राजनीति से कैसे लगेगी लंका?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
1987 में आई फिल्म प्रतिघात का जो गाना आज अचानक हमपे जो हैं मेहरबान… इनसे पूछो ये आज तक थे कहां आज 21वीं सदी में भी एकदम फिट बैठता है। सत्ता बदले या सरकार, मुद्दे बदले या विचार, चुनाव आयोग का नजरिया बदले या मीडिया के चुनाव कवरेज का तरीका , अगर नही बदला है तो सिर्फ़ मतदाताओ को उलझा कर उनको विकास के सपने दिखाकर, रोजगार के नये अवसरो को पैदा करने का आश्वासन देकर, मुफ़्त का राशन, पानी, बिजली देने का झांसा देकर अपनी अपनी राजनीतिक रोटियों को सेंक सत्ता का भोग करना!
कोई कहता है कि 200 यूनिट बिजली मुफ्त देंगे, तो दूसरा कहता है भईया हम तो 300 यूनिट बिजली फ्री देंगे। एक ने कहा हम मुफ्त में पानी देंगे। तो दूसरे ने कहां कि हम मुफ्त पानी के साथ कैशबैक भी देंगे। स्कूटी से साइकिल तक मोबाइल से लैपटॉप तक सब मुफ्त देने का वादा करते राजनेताओं को आपने कई बार सुना होगा। आज भी नेता वोटर को मुफ्तखोरी का मरीज समझते हैं।
जब मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, रोजगार देने की जगह बेरोजगारी भत्ता, गरीबी भत्ता देने का ऐलान करके वोट बटोरने की चाह का खामियाजा आने वाले समय में देश को श्रीलंका जैसे हालात की कगार पर पहुंचा सकता है। मुफ्तवादी राजनीति के इसी संयोग और प्रयोग को आज इस रिपोर्ट के माध्यम से समझेंगे और साथ ही बताएंगे की भारत के ये राज्य कैसे मिनी श्रीलंका बनने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं।
श्रीलंका के हालात से तो आप सभी रूबरू होंगे। लेकिन इस वक्त हम भारत को लेकर इस तरह की बातें क्यों कर रहे हैं। इसके लिए एक मीटिंग का जिक्र करना बेहद जरूरी है। दरअसल, पीएम मोदी ने अपने शीर्ष नौकरशाहों के साथ बीते दिनों एक मीटिंग की। यहां से ये मुद्दा निकलकर आया कि देश में या कुछ राज्यों में ऐसा क्या कुछ हो रहा है जो हमें श्रीलंका की तरफ ले जाने के रास्ते पर है। इसका जिक्र इसलिए क्योंकि पीएम मोदी ने जब देश के विभिन्न विभागों के सचिव को बुलाया तो उनसे पूछा गया कि बताइए हम देश के लिए क्या बेहतर कर सकते हैं।
हम किसी गति से आगे विकास कर रहे हैं। किन विभागों में कैसा काम हो रहा है, कौन सा राज्य क्या काम कर रहा है। उनसे सुझाव मांगे गए। जब इन्हीं बातों पर चर्चा हो रही थी तो ये बातें निकली की देश में कई राज्य ऐसे हैं जो आर्थिक तौर पर कमजोर हैं। आर्थिक तौर पर कमजोर का मतलब कि उनकी स्थिति आर्थिक तौर पर बहुत ज्यादा ठीक नहीं हैं। लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के बावजूद मुफ्त की सियासत करने की वजह से तो ये आर्थिक तौर पर और भी ज्यादा नीचे ले जाएगा, नुकसान पहुंचाएगा।
अलग-अलग विभागों के सचिव ने विधानसभा चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा घोषित लोकलुभावन योजनाओं और मुफ्त उपहारों को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है। इसमें कहा गया कि कुछ राज्य में इस प्रवृत्ति पर नियंत्रण नहीं किया गया तो ऐसे में वे नकदी-खाद्य संकट जैसी स्थिति में श्रीलंका और ग्रीस के रास्ते पर भी जा सकते हैं। पीएम नरेंद्र मोदी के साथ लगभग चार घंटे की बैठक के दौरान कुछ सचिवों ने कहा कि कई राज्यों में घोषणाएं और योजनाएं आर्थिक रूप से अस्थिर हैं और उन्हें राजनीतिक जरूरतों के साथ संतुलित निर्णय लेने के लिए राजी करने की आवश्यकता है।
किस राज्य पर कितना कर्ज
इन सभी राज्यों को केंद्र से राजस्व घाटा अनुदान प्राप्त होता है। वास्तव में, 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से सत्ताईस ने वित्त वर्ष 2021 में अपने ऋण अनुपात में 0.5 से 7.2 प्रतिशत अंक की वृद्धि देखी, क्योंकि राज्यों ने महामारी के लिए अधिक उधार लिया। पंजाब का जितना जीडीपी है उसका करीब 53.3 प्रतिशत हिस्सा कर्ज है। इसी तरह राजस्थान का अनुपात 39.8 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल का 38.8 प्रतिशत, केरल का 38.3 प्रतिशत और आंध्र प्रदेश का कर्ज जीएसडीपी अनुपात 37.6 प्रतिशत है। इन सभी राज्यों को राजस्व घाटा का अनुदान केंद्र सरकार से मिलता है। महाराष्ट्र और गुजरात जैसे आर्थिक रूप से मजबूत राज्यों पर भी कर्ज का बोझ कम नहीं है। गुजरात का कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 23 फीसदी तो महाराष्ट्र का 20 फीसदी है।
कुल मिलाकर कहा जाए तो जब आपको फ्री में कोई चीज मिलती है तो उसका उस समय कोई नुकसान नहीं दिखाई देता। लेकिन आने वाले टाइम पर नुकसान जरूर होता है। अब आपको एक तस्वीर दिखाते हैं। ये तस्वीर स्विजरलैंड की है, जहां के आम नागरिकों से पूछा गया कि what would you do if your income were taken care of? क्या वे देश के नागरिकों के लिए एक तय इनकम के प्रावधान का समर्थन करते हैं या नहीं? इन नागरिकों में वे लोग भी शामिल थे, जो स्विट्जरलैंड में पांच साल से ज्यादा लंबे समय से बतौर कानूनी निवासी के तौर पर रह रहे हैं।
इसमें हर वयस्क नागरिक को बिना काम भी करीब डेढ़ लाख रुपये प्रतिमाह देने की पेशकश की गई। उस वक्त वहां के लोगों ने इसे साफ मना कर दिया कि हमें ये नहीं चाहिए। करीब 77 फीसदी नागरिकों ने इस तरह की योजना को नहीं चुना। उन्होंने कहा कि हमे बेरोजगारी भत्ता नहीं चाहिए। आपको याद होगा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा 2019 के दौरान एक वादा किया था कि यदि उनकी पार्टी लोकसभा चुनावों के बाद सत्ता में आती है तो न्यूनतम आय योजना (न्याय) के तहत देश के सर्वाधिक 20 प्रतिशत गरीब परिवारों को 72,000 रुपये तक सालाना नकद राशि दी जाएगी।
उनकी इस घोषणा के बाद ही तमाम तरह की चर्चाएं होने लगीं कि क्या यह देश के वित्तीय हालात को देखते हुए संभव है? इसके लिए खर्च होने वाले लाखों करोड़ रुपये कहां से आएंगे? लेकिन भारत की जनता ने स्विजरलैंड की ही तर्ज पर कांग्रेस की योजना की बजाय आत्मनिर्भर बनना चुना और नतीजतन मोदी सरकार सत्ता में आई।
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