सरकारों की बुलडोजर नीति •••• फिर अदालतों का क्या काम•••?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
देश भर में एक नया रिसर्च और परिणाम अदालतों का शायद बोझ कम कर रही है। शायद यह सिलसिला उत्तर प्रदेश से चलने के बाद मध्य प्रदेश और राजस्थान तक पहुंच चुकी है। भविष्य में अन्य राज्यो की सरकारे भी अपना ले कुछ कहा नहीं जा सकता।
देश की पढी लिखी पीढ़ी भी इस तरह की कार्रवाई से खुश वहीं विपक्ष की भूमिका मौन व्रत धारण की हैं। हालांकि धीरे धीरे अब यह कारवाई भी कुछ सवाल पैदा करने लगी है। इसका अंत क्या होगा। अगर गुनाह है तो गुनहगार को सजा हो । परिवार का आश्रय छिनने का हक नहीं।
बुलडोजर नीति अत्यधिक मामले में वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो धर्म संस्कृति और कुछ भ्रष्टाचार से जुड़े हुए अधिकतर मामले जीससे समाज में तनाव और दुष्प्रभाव पैदा हो रहा है उनके रचनाकारों तथा अंशधारकों पर अधिक जोर से जारी है।
यह सोचने वाली बात है जीस देश में संविधान और कानून के अनुसार सजा का हक जारी है। वहां घटना के 24 से 48 घंटे के अंदर बुलडोजर नीति अपनाई जा रही है।
क्या सरकारों का भरोसा भी अब अपने द्वारा निर्मित अदालतों के उपर से उठ चुका है। या अदालते अब घटना के कुछ घंटे बाद अपना फैसला सुना दे रही है। या सत्ता के साथ अधिकारी वर्ग भी कानून नीति को स्वयं आन द स्पॉट फैसला सुनाने में महारत हासिल कर चुके हैं।
अगर यह जारी रहा तो सोचिए एक वक्त ऐसा भी होगा जब छोटी छोटी मामलों में भी बुलडोजर नीति हावी हो जाएगी। जिन्हें कभी समाज और समुदायों के नायक आपसी सहमति से सुलझा लिया करते हैं।
••••• मेरे समझ से अदालतों और कानून से आगे बढना सरकारों की यह नीति देश के लिए सही संदेश नहीं हो सकता। अदालतों के फैसले के बाद ही यह कारवाई उचित होगा।
वरना एक दिन ऐसा भी आएगा जब देश में केवल बुलडोजर बच जाएंगे । और परिवार सड़कों पर। क्योंकी आज के परिवेश में जूर्म का क्षेत्र और दायरा पग पग पर खड़ा है। और इससे देश का कोई भी क्षेत्र वंचित नहीं।
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