सतुआन मनाने की परंपरा, पूजा विधि और महत्व.

सतुआन मनाने की परंपरा, पूजा विधि और महत्व.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

यह ग्रीष्म ऋतु के स्वागत का पर्व है.

 इस दिन सूर्यदेव राशि परिवर्तन करते हैं. इसलिए इसे मेष संक्रांति भी कहते हैं.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आम की बौरियां, कैरियों को पीसकर चटनी बनाना और साथ में सत्तू घोलकर पहले सूर्य देव को चढ़ाना और फिर प्रसाद में ग्रहण करना. ये है दिव्य पर्व सतुआन, जो गर्मी के आ जाने की घोषणा करता है और बताता है कि अब मौसम तेजी से गर्म होगा, आने वाले दिनों में नौतपा होने वाला है, जब खेतों की मिट्टी बिल्कुल सूखकर कड़ी हो जाएगी. मनुष्य जब गर्मी से त्रस्त हो जाएगा, तो ऐसे में सत्तू ही एक ऐसा खाद्य पदार्थ है जो शीतलता दे पाएगा. बिहार की लोक संस्कृति में यह प्रकृति से जुड़ाव का पर्व है, जो अब सिर्फ बड़े-बुजुर्गों की याद में ही रह गया है.

इसलिए मनाते हैं सतुआन पर्व
उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में 14-15 अप्रैल को सतुआन मनाया जाता है. यह ग्रीष्म ऋतु के स्वागत का पर्व है. इस दिन सूर्यदेव राशि परिवर्तन करते हैं. इसलिए इसे मेष संक्रांति भी कहते हैं. सतुआन के दिन सत्तू खाने की परंपरा बहुत पुराने समय से रही है. यह पर्व कई मायने में महत्वपूर्ण है. इस दिन लोग अपने पूजा घर में मिट्टी या पित्तल के घड़े में आम का पल्लो स्थापित करते हैं. सत्तू, गुड़ और चीनी से पूजा की होती है. पूजा के उपरांत लोग सत्तू, आम प्रसाद के रूप में ग्रहण करते है.

बिहार-झारखंड में मनाते हैं जूड़ शीतल
इसके एक दिन बाद 15 अप्रैल को जूड़ शीतल का त्योहार मनाया जाएगा. 14 अप्रैल को इस दिन पेड़ में बासी जल डालने की भी परंपरा है. जुड़ शीतल का त्योहार बिहार में हर्षोलास के साथ मनाया जाता है. पर्व के एक दिन पहले मिट्टी के घड़े या शंख में जल को ढंककर रखा जाता है, फिर जूड़ शीतल के दिन सुबह उठकर पूरे घर में जल का छींटा देते हैं.  मान्यता है की बासी जल के छींटे से पूरा घर और आंगन शुद्ध हो जाता है.

भगवान सूर्य पूरा करते हैं उत्तरायण की आधी परिक्रमा 

इस दिन वैशाख मास की प्रवृत्ति होती है। इसी संक्रांति पर भगवान सूर्य उत्तरायण की आधी परिक्रमा पूरी करते हैं। पंडित शंकर मिश्र बताते हैं कि इस दिन धर्मघट का दान, पितरों का तर्पण व मधुसूदन भगवान के पूजन का विशेष महत्व है। मेष संक्रांति में चार घंटे पूर्व से चार घंटे बाद तक आठ घंटे का पुण्यकाल रहता है। दूसरे दिन 15 अप्रैल को जूरी शीतला व्रत के नाम से जाना जाता है। इसे अंगप्रदेश में बासी पर्व के नाम से भी जाना जाता है। विष्णु स्मृति में मेष संक्रांति पर्व पर प्रात:स्नान महापातक के नाश करने वाला बताया गया है। इस दिन सत्तू दान करने का विधान है।

दक्षिण भारत में मनाते हैं विषु पर्व
तमिलनाडु और कर्नाटक में 14-15 अप्रैल या सूर्य के राशि परिवर्तन दिवस को विषु कानी पर्व के तौर पर मनाते हैं. यह पर्व भगवान विष्णु को समर्पित है और दक्षिण भारत में नव वर्ष का प्रतीक है. दरअसल विषु कानी पर्व कृषि आधारित पर्व है, जिसमें खेतों में बुआई का उत्सव मनाते हैं. श्रद्धालु सुबह उठकर स्नान-ध्यान के बाद सबसे पहले आस-पास के मंदिर में विष्णु देव प्रतिमा का दर्शन करते हैं और झांकी भी निकालते हैं. घरों में इस दिन नए अनाज से भोजन बनाया जाता है और देव को 14 प्रकार को व्यंजन का भोग लगाते हैं.

Leave a Reply

error: Content is protected !!