बौद्धिकता को ही मानव जीवन के अस्तित्व का आधार मानते थे बाबा साहेब: गणेश दत्त पाठक
सिवान के अयोध्यापुरी स्थित पाठक आईएएस संस्थान पर बाबा साहेब डॉक्टर भीम राव आंबेडकर की जयंती पर विशेष परिचर्चा का आयोजन
श्रीनारद मीडिया‚ सीवान (बिहार)
भारतीय संविधान के निर्माता बाबा साहेब डॉक्टर भीम राव आंबेडकर बौद्धिकता को मानव के अस्तित्व का आधार मानते थे। उनका मानना था कि बौद्धिकता से ही विचार मंथन को बल मिलता है। विचार का प्रचार प्रसार होने से ही बौद्धिक मंथन को आधार प्राप्त होता है। देश के विकास से पहले अपने बुद्धि का विकास एक अनिवार्य तत्व है। लोकतांत्रिक परिवेश में बुद्धिमता का आधार एक अनिवार्य तथ्य हो जाता है।
क्योंकि जन सामान्य के निर्णय लेने का आधार यदि बौद्धिकता होगी तो लोकतंत्र के लिए इससे बेहतर कुछ भी नहीं हो सकता है। ये बातें सिवान के अयोध्यापुरी स्थित पाठक आईएएस संस्थान पर बाबा साहेब के जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए शिक्षाविद् श्री गणेश दत्त पाठक ने कही। इस अवसर पर एक विशेष परिचर्चा का आयोजन भी किया गया। जिसमें संस्थान में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करनेवाले अभ्यर्थियों मोहन यादव, रागिनी कुमारी, मीरा कुमारी, रोहन पांडेय, श्वेता दुबे आदि ने भी अपनी भागीदारी निभाई।
इस अवसर पर श्री पाठक ने कहा कि बाबा साहेब ने स्वतंत्रता, समानता और न्याय पर विशेष बल देकर सामाजिक न्याय की प्राप्ति के संदर्भ में विशेष प्रयास किए। बाबा साहेब ज्ञान को ही मानव जिंदगी का आधार मानते थे। इसलिए उन्होंने हर किसी को शिक्षित बनने और संगठित रहने का आह्वान किया।
परिचर्चा में अभ्यर्थी मोहन यादव ने कहा कि बाबा साहेब कहा करते थे कि भारतीय संविधान केवल वकीलों के लिए दस्तावेज मात्र नहीं अपितु जीवन का एक माध्यम भी है। अभ्यर्थी रागिनी कुमारी ने कहा कि बाबा साहेब कहा करते थे कि समाज की प्रगति के डिग्री का पैमाना महिलाओं की प्रगति ही हो सकता है। अभ्यर्थी मीरा कुमारी ने कहा कि बाबा साहेब पुरुषों के समान महिलाओं की शिक्षा पर भी बल देते थे। अभ्यर्थी रोहन पांडेय ने कहा कि बाबा साहेब प्रयासों की सार्थकता और महानता पर बल देते थे । उनका मानना था कि महान प्रयास से बड़ा दुनिया में कुछ भी नहीं हैं।
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